Litreture
कविता : जब तक परिवार से जुड़ा रहता है
- Nayalook
- October 20, 2022
- Behavior
- Confidence
- plants
- rituals
- words
शब्द व व्यवहार ही मनुष्य की असली पहचान होते हैं, चेहरा व ऐश्वर्य तो आज हैं, शायद कल नहीं रह पाते हैं। तकलीफ़ें और मुसीबतें ईश्वर निर्मित प्रयोगशालाओं में तैयार की जाती हैं, मनुष्य का आत्मविश्वास और उसकी योग्यता भी वहाँ ही परखी जाती है । चिंता करना व फ़िक्र करना दोनो अलग अलग अभिप्राय […]
Read Moreकविता : भूखे भजन न होहिं गोपाला
भूखे भजन न होहिं गोपाला। ले तेरी कंठी ले तेरी माला ॥ कोई कैसे यह बात मान ले। कोई कैसे कोई वृत रख ले। आज निर्जला वृत है महिलाओं का, पूरा दिन परिवृता वह निराहार रहेंगी, भूखी दिन भर रहकर पति की रक्षा का वह दिन भर ईश्वर का भजन करेंगी। खुद वह भूखी प्यासी […]
Read Moreकविता : कद्र सद्गुणों, सत्कर्मों से होती है
हर व्यक्ति में कुछ अच्छाइयाँ व कुछ न कुछ बुराइयाँ होती ही हैं, जो तराश कर आगे ले आता है, उसको अच्छाइयाँ नज़र आती हैं। पैसा, ग़ैर की पसंद व बीते कल की, कमियाँ इंसान को नियंत्रित करती हैं, जिसे बुराइयों की तलाश होती है, उसे बस ख़ामियाँ ही नज़र आती हैं। पेंड़ पौधों की […]
Read Moreपेंड़ पौधों की काट छाँट व मानव जीवन का परिमार्जन
जब पेंड़ और पौधों की ज़रूरत के अनुसार ही काट-छाँट की जाती है, उनका वृद्धि, विकास होने लगता है, यह उनकी जड़ें भी मजबूत करता है। निर्जीव शाखायें काट दी जाती हैं, तब उनकी हरियाली भी बढ़ती है नई शाखायें पनपने भी लगती हैं, और एक वृक्ष की शक्ल मिलती है। मानव जीवन भी कुछ […]
Read Moreकविता : मदद करना सामाजिक दायित्व
कभी कभी मैं भिक्षुक बन जाता हूँ, अपने लिये नहीं पर मैं कुछ माँगता हूँ, सबके लिये सबकी मदद के लिये, कुछ न कुछ कभी कभी माँग लेता हूँ। कभी कुछ सामूहिक याचना करता हूँ, कभी सबके, कभी जनहित के लिये, अक्सर मैं हर किसी से मदद माँगता हूँ, कोई मदद करे न करे पर […]
Read Moreइतने राम कहाँ से लाऊँ
कितने रावण आज जलेंगे, कितनी बाहें आज कटेंगी, किस लंका को आग लगेगी, गली गली रावण जलते हैं, हर गाँव शहर लंका जलती है, इतने रावण कहाँ से आये, इतने राम कहाँ से लाऊँ । नशा कर रहा बच्चा, बूढ़ा, रावण बन कर हर वो दौड़ा, गली गली में खुले हैं ठेके, हर दुकान में […]
Read Moreधरती पुत्र मुलायम सिंह नहीं रहे,
आज तो आसमान भी खूब रोया है, आखिर धरती पुत्र अपना जो खोया है, मुलायम सिंह यादव आज नहीं रहे हैं, समाजवादी बड़े नेता हमें छोड़ गये हैं। मुलायम सिंह जी की राजनीति सबको साथ ले चलने वाली थी, आरम्भ से ही एक ज़मीनी नेता थे, उनके तो हिंदू-मुस्लिम भाई भाई थे। उनके अचानक जाने […]
Read More“विश्व डाक दिवस” के अवसर पर: डाकिया डाक लाया
डाकिया बाबू ही वो कहलाता था, इस शब्द से तो हमारी जिंदगी का, नित-प्रति उठते-बैठते का नाता था, पोस्टमैन घर का ही एक हिस्सा था। अब पोस्ट मैन कभी कभी दिखता है, उसका काम तो मोबाइल ने पूरी तरह ख़त्म कर दिया है उसे भुलवा दिया है, उसका इंतज़ार ही ख़त्म कर दिया है। सबको […]
Read Moreकविता : पतवार संभाल के चलाना पड़ता है
धूप छाँव से डरने वाले कृषक की फसल बो कर तैयार कहाँ होती है, डर डर तैराकी की कोशिश करने वाले की नदिया पार कहाँ होती है। हवाई जहाज़ उड़ाना सीखने वाले पाइलट को दिल थामना पड़ता है, नदी में नौका खेने वाले नाविक को, पतवार सम्भाल के चलाना पड़ता है। पिपीलिका दाने ले लेकर […]
Read Moreमेरी रचनायें मेरी कवितायें,मन की पुकार
जब तक साँस है तब तक आस है, प्रेम है प्यार है संघर्ष और खटास है, मेल है मिलाप है, दुआ और श्राप है, बुराई भी भलाई भी और संताप है । भाव हैं, कुभाव है, स्नेह, दुर्भाव हैं, हार है, जीत है, मंज़िल है पड़ाव हैं, मिलन है विरह है, घर व वनवास है, […]
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