हर व्यक्ति में कुछ अच्छाइयाँ व
कुछ न कुछ बुराइयाँ होती ही हैं,
जो तराश कर आगे ले आता है,
उसको अच्छाइयाँ नज़र आती हैं।
पैसा, ग़ैर की पसंद व बीते कल की,
कमियाँ इंसान को नियंत्रित करती हैं,
जिसे बुराइयों की तलाश होती है,
उसे बस ख़ामियाँ ही नज़र आती हैं।
फूल कितना सुन्दर क्यों न हो परंतु
तारीफ तो उसकी खुशबू से होती है,
इंसान कितना भी बड़ा ओहदेदार हो,
कद्र सद्गुणों व सदकर्मो से होती है।
मानव जीवन ईश्वर की अनमोल देन है,
जीवन किसी भी तरह जिया जा सकता है,
उस पर लक्ष्य निर्धारित कर सम्भावना के
साथ दृष्टि गड़ाये रखना जरूरी होता है।
श्री मद्भगवद्गीता, रामचरित मानस,
ये दो ग्रंथ मानवता वादी चिंतन के,
परम्परा एवं आदर्शों के चित्रण हैं,
मर्यादित जीवन के अनमोल ग्रंथ हैं।
इनका अनुशीलन मानव को कलियुग
में भी सतयुग की राह दिखाता है,
आदित्य जीवन का तिमिर इनके पढ़ने,
सुनने, पालन मात्र से दूर हो जाता है।