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कविता : हाँ, तुम मुझे जला न पाओगे

भारत वर्ष की धरती के लोगों, हाँ ! तुम मुझे जला न पाओगे, मैं रावण, जलने को तैयार नहीं हूँ, श्रीराम की स्वीकृति न ले पाओगे। घरों के अंदर बैठकर पहले अंदर पाल रखी उस प्रवृत्ति को जलाओ, जो काम, क्रोध, अहंकार से भरी है, लोभ, मोह, मद, ईर्ष्या,घृणा भरी है। शराब, अफ़ीम, चर्स, स्मैक, […]

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इतने राम कहाँ से लाऊँ

कितने रावण आज जलेंगे, कितनी बाहें आज कटेंगी, किस लंका को आग लगेगी, गली गली रावण जलते हैं, हर गाँव शहर लंका जलती है, इतने रावण कहाँ से आये, इतने राम कहाँ से लाऊँ । नशा कर रहा बच्चा, बूढ़ा, रावण बन कर हर वो दौड़ा, गली गली में खुले हैं ठेके, हर दुकान में […]

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