Poetry
कविता : इन्साँ इन्साँ से मिलकर
कर्नल आदि शंकर मिश्र, इन्साँ इन्साँ से मिलकर इन्सानियत सिखलायें, औरों का दुःख देखें पहले, ख़ुद का दुःख दर्द भुलायें। अपने सुख साधन से पहले, औरों के सुख साधन खोजें, प्रेम त्याग का संगम अनुपम, परहित ही हम सबको भाये। हिलमिल कर ऐसी ही ताक़त, आओ बनकर हम दिखलायें, शिकवा गिला सभी मिट जायें, ईर्ष्या […]
Read Moreकविता : लिखा परदेश किस्मत में वतन की याद क्या करना,
ग़रीबी में पला था सूखी रोटियाँ खाकर, बचपन से जवानी तक रहा था औरों का चाकर, क़िस्मत में लिखा था मेहनत मज़दूरी करना, ज़िन्दगी बीतती है ग़रीबों की झोपड़ी में रहकर। कहाँ से लाये वो दौलत जिसका पेट बिन निवाला है, दो जून की रोटी मात्र भर सपना जिसे उसने पाला है, नहीं देखा कभी […]
Read Moreकविता : पुरुष को सजाया स्वयं प्रकृति ने,
पुरुष को सजाया स्वयं प्रकृति ने, स्त्रियाँ तो काँच का टुकड़ा होती हैं, शृंगार की चमक पड़ने पर ही वे सुंदर और खूबसूरत दिखती हैं। परंतु पुरुष वह हीरा होता है, जो अँधेरे में भी चमकता है, उसे शृंगार करने की कभी भी कोई आवश्यकता नहीं होती है। खूबसूरत मोर होता, मोरनी नहीं मोर रंग-बिरंगा […]
Read Moreकविता : सज्जन इंसान सर्वत्र कहाँ होते हैं
सारे पर्वत माणिक्य नहीं देते हैं, सारे हाथी गजमुक्त नहीं रखते हैं, चन्दन सब बागों में नहीं मिलता है, सज्जन इंसान सर्वत्र कहाँ होते हैं। हर नेता ईमानदार नहीं होता है, हर नेता बेईमान भी नहीं होता है, हर अफ़सर कर्तव्यपरायणता में, हर समय तल्लीन नहीं होता है। सारे राजा राजा जैसे जनता के सच्चे […]
Read Moreकविता : क्या भूलें क्या याद रखें
एक प्रश्न ‘क्या भूलूँ क्या याद रखूँ’ अक़्सर अति विचारणीय होता है, निंदा करने वालों से दूर नहीं रहना, निंदा पर विचार प्रोत्साहन देता है। सब कुछ श्रेष्ठ होने की उम्मीद ही एक सकारात्मक सोच नहीं होती है, जिस पल जो कुछ होता है की सोच उस पल के लिए सदा संतोष देती है। लोग […]
Read Moreकविता : समस्यायें व समाधान
अपने मन के विचार और अपनी सोच सबसे बड़ी प्रेरणा होती है, इसीलिए स्वयं प्रेरणा पाने के लिये स्वयं की सोच बड़ी रखनी होती है। जीवन में समस्यायें तो होती हैं पर उनके समाधान भी होते हैं, मित्र, पड़ोसी, रिश्ते नाते और लिबास, निवास बदलते रहते हैं। समस्याओं का फिर भी सामना उठते बैठते हर […]
Read Moreकविता : बोया पेंड़ बबूल का आम कहाँ से होय
करता था सो क्यों किया, अब करि क्यों पछताय। बोया पेड़ बबूल का आम कहां से खाये॥ बुरा मत सोचो, बुरा मत कहो और बुरा मत देखो, गांधी जी के तीनों बानरों, जैसा सबका जीवन होय, किसी का बुरा जो सोचना अपना बुरा ही होय, औरों का भला करो तो, अपना भला भी होय ॥ […]
Read Moreकविता : एक व्यथा कथा
जब मुझे पर्याप्त आत्मविश्वास मिला तो मंच खत्म हो चुका था, जब मुझे हार का यकीन हो गया मैं अप्रत्याशित रूप से जीत गया था। जब मुझे लोगों की जरूरत थी, तब उन्होंने मुझे छोड़ दिया था, जब रोते हुये मेरे आँसू सूख गए तो सहारे के लिए कंधा मिल गया था। जब मैंने नफरत […]
Read Moreकविता : कद्र सद्गुणों, सत्कर्मों से होती है
हर व्यक्ति में कुछ अच्छाइयाँ व कुछ न कुछ बुराइयाँ होती ही हैं, जो तराश कर आगे ले आता है, उसको अच्छाइयाँ नज़र आती हैं। पैसा, ग़ैर की पसंद व बीते कल की, कमियाँ इंसान को नियंत्रित करती हैं, जिसे बुराइयों की तलाश होती है, उसे बस ख़ामियाँ ही नज़र आती हैं। पेंड़ पौधों की […]
Read Moreकविता : मदद करना सामाजिक दायित्व
कभी कभी मैं भिक्षुक बन जाता हूँ, अपने लिये नहीं पर मैं कुछ माँगता हूँ, सबके लिये सबकी मदद के लिये, कुछ न कुछ कभी कभी माँग लेता हूँ। कभी कुछ सामूहिक याचना करता हूँ, कभी सबके, कभी जनहित के लिये, अक्सर मैं हर किसी से मदद माँगता हूँ, कोई मदद करे न करे पर […]
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