एक प्रश्न ‘क्या भूलूँ क्या याद रखूँ’
अक़्सर अति विचारणीय होता है,
निंदा करने वालों से दूर नहीं रहना,
निंदा पर विचार प्रोत्साहन देता है।
सब कुछ श्रेष्ठ होने की उम्मीद ही
एक सकारात्मक सोच नहीं होती है,
जिस पल जो कुछ होता है की सोच
उस पल के लिए सदा संतोष देती है।
लोग प्रेम भी करते हैं और धोखा भी,
यह कोई बहुत बड़ी बात तो नही है,
ईश्वर की भक्ति में पुण्य और पाप,
दोनो साथ साथ ही तो किए जाते हैं।
मधु शाला में बैठकर ईश्वर को भी
याद करना कोई बुरी बात नहीं है,
बल्कि मंदिर में पूजा के साथ मदिरा
की चाहत रखना बुरी बात होती है।
हम बदसूरत हैं,क्या फ़र्क़ पड़ता है,
इसे सहर्ष स्वीकारना उचित होता है,
हृदय की सुंदरता, सरलता हृदय के
अंदर दूरबीन से कोई नहीं झांकता है।
कसरत कक्ष में जाने से भी बेहतर है,
अपने काम में जा करके मन लगाना,
तंदुरुस्त मसल किसी को नहीं देखना है,
परंतु आपकी दौलत सबको देखना है।
तौलिया हर छोर से एक समान रूप से,
शरीर पोंछने में उपयोग किया जाता है,
क्योंकि कभी नितम्ब पोंछे जाते हैं,
कभी उससे मुँह भी पोंछा जाता है।
बुढ़ापा आता है तो भी उन होंठों की
मुस्कुराहट कभी नही रुकनी चाहिये,
बुढ़ापा महसूस न हो पाये इसलिए
आदित्य अधिक ख़ुश रहना चाहिए।