सारे पर्वत माणिक्य नहीं देते हैं,
सारे हाथी गजमुक्त नहीं रखते हैं,
चन्दन सब बागों में नहीं मिलता है,
सज्जन इंसान सर्वत्र कहाँ होते हैं।
हर नेता ईमानदार नहीं होता है,
हर नेता बेईमान भी नहीं होता है,
हर अफ़सर कर्तव्यपरायणता में,
हर समय तल्लीन नहीं होता है।
सारे राजा राजा जैसे जनता के
सच्चे सीधे जनसेवक नहीं होते हैं,
धर्म के कर्णधार जो कहलाते हैं,
सब धर्म के पालक नहीं होते हैं।
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उगता और अस्त होता दिनकर,
जैसे दोनों समय स्वर्णिम होता है,
महान व्यक्ति भी वैसे ही अच्छे व
बुरे समय में एक समान रहता है।
सत्ता का शासक ताक़तवर होता है,
ऐश्वर्य और यश का गर्व उसे होता है,
लोगों की भीड़ के वह आगे चलता है,
पर अंत समय कोई साथ न जाता है।
अन्ततोगत्वा यही नियति सब की
आदित्य अन्त समय नियत होती है,
ईश्वर की प्रतीक्षा कोई चाहे न करे,
पर ईश्वर की गति ही प्राप्त होती है।