कविता : एक व्यथा कथा

कर्नल आदि शंकर मिश्र
कर्नल आदि शंकर मिश्र

जब मुझे पर्याप्त आत्मविश्वास
मिला तो मंच खत्म हो चुका था,
जब मुझे हार का यकीन हो गया मैं
अप्रत्याशित रूप से जीत गया था।

जब मुझे लोगों की जरूरत थी,
तब उन्होंने मुझे छोड़ दिया था,
जब रोते हुये मेरे आँसू सूख गए तो
सहारे के लिए कंधा मिल गया था।

जब मैंने नफरत की दुनिया में भी
स्वयं से जीना सीख लिया, तब
किसी ने मुझे दिल की गहराई
से प्यार करना शुरु कर दिया।

कविता :  निंदा यानी Critisizm

जब सुबह का इंतजार करते करते मैं
सोने लगा तभी सूरज निकल आया,
कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या
योजना बना रहे हैं, यही समझ आया।

आप कभी नहीं जान पाते कि जीवन
आपके लिए क्या योजना बना रहा,
सफलता दुनिया से परिचय कराती है,
असफलता दुनिया का परिचय कराती है।

हमेशा खुश रहना सीखो क्योंकि
अक्सर जब हम आशा खो देते हैं,
तभी लगता है कि यह अंत है और
तभी भगवान ऊपर से मुस्कराते हैं।

तभी प्रभू कहते हैं कि शांत रहो
वत्स, यह तो सिर्फ एक मोड़ है,
आदित्य अंत नहीं है यह आस्था
विश्वास ही अलौकिक अनन्त हैं।

 

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