Litreture

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काँटा काँटे से निकाला जाता है,

आग इतनी लगी है यहाँ कि, इन्सान इन्सान से जलता है, पूजा तो भगवान की करता हूँ, क़त्ल सुंदर फूलों का होता है। जाता हूँ मंदिर में पुण्य कमाने, पर पाप करके ही तो आता हूँ, गुनाह की क्षमा प्रभु से माँगता हूँ, पर दूसरा गुनाह करके आता हूँ। जीवन एक नाटक बन गया है, […]

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कविता: वक्त ज़रूरत पर जब अकेला पाया

कुछ लोग आगे पीछे रहते हैं, हँसते खेलते समय बिताते हैं, इसका तात्पर्य यह नहीं होता है, कि ऐसे सब लोग सच्चे मित्र हैं। इस बात का ध्यान रखना होगा, कि लोग मीठा मीठा बोलते हैं, सुबह शाम गुण गान करते हैं, अन्त में अपना रंग दिखा देते हैं। मुझे बहुत अच्छा लगता था सभी […]

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कविता : इन्साँ इन्साँ से मिलकर

कर्नल आदि शंकर मिश्र, इन्साँ इन्साँ से मिलकर इन्सानियत सिखलायें, औरों का दुःख देखें पहले, ख़ुद का दुःख दर्द भुलायें। अपने सुख साधन से पहले, औरों के सुख साधन खोजें, प्रेम त्याग का संगम अनुपम, परहित ही हम सबको भाये। हिलमिल कर ऐसी ही ताक़त, आओ बनकर हम दिखलायें, शिकवा गिला सभी मिट जायें, ईर्ष्या […]

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कविता : वो पारखी नज़र कहाँ से लाऊँ

सफलता की कहानी ख़ुशी देती है, पर उसे पढ़ते रहने से क्या फ़ायदा है, यह तो बस एक रास्ता बताती है, सफलता अक्सर अहंकार बढ़ाती है। असफल प्रयास हौंसला देते हैं, निरन्तरता से अनुभव मिलते हैं, असफलता कई राहें दिखाती है, सफलता के द्वार तक ले जाती है। पूर्ण विराम से किसी सत्य तथ्य का […]

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वस्त्र परमात्मा है, अन्न भगवान है

हमारी छोटी आँखें जो आसमान के तारे देखने की ताक़त रखतीं हैं, जीवन जीने की चाहतें विषमताओं में भी जीवन खुशनुमा बना सकती हैं। जिसे सदा मुस्कुराने की आदत है, उसके सारे दुख ख़ुशी बन जाते हैं, गुज़र जाते हैं ख़ुशनुमा लमहे भी, बंद राहों की तरह रोड़े लग जाते हैं। कहते हैं भूखे भजन […]

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कविता: प्रेम की पहचान

कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई । बगुला भेद न जानई, हंसा चुनि-चुनि खाई ॥ समुद्र की उफनती लहरो में क़ीमती मोती आ आ करके बिखरते रहते हैं, बगुले को मोती की परख नहीं होती है, इसलिए उनका भेद नहीं जान पाते हैं । हंस मोती चुन लेता है क्योंकि उसे मोती की पहचान […]

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कविता : कवि की कविता कि सीमा है,

कवि की कविता की सीमा है, वह जितनी कल्पना करता है, बस उतना ही तो कह पाता है, शेष सभीअनकहा रह जाता है। मन जब खोया खोया लगता है, तब तन भी मुरझाया सा लगता है, पर खोया कभी कहाँ मिल पाता है, बस मिला हुआ भी खो जाता है । मानव जीवन में तो […]

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कविता : एक तीर से दो शिकार

एक तीर से दो शिकार करने की कुछ लोगों की कैसी आदत होती है, वह शायद भूल जाते हैं कि इससे सांप तो नही मरता पर लाठी टूट जाती है। कुछ लोग मीठा मीठा बोलने की प्रायः कोशिश भी करते हैं, पर उनके श्रीमुख से मीठा कम कड़वा कड़वा ही बाहर आता है। ध्यानाकर्षण, प्रेमाकर्षण […]

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कविता : अभिमान शोभा नहीं देता है,

ज़िन्दगी का तराना कभी भी अपना स्वरूप बदल देता है, इसलिए हमें किसी तरह का अभिमान शोभा नहीं देता है। जब सफलता बुलंदियों पर पहुँचा देती है, अच्छी बात है, उसके बाद गुनाह करना तो, इंसान का बहुत बड़ा पाप है। सारे विवाद खत्म करने के लिये आसान प्रक्रिया अपनानी चाहिए, हमारी गलती नही भी […]

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कविता: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में,

दुनिया का सम्मान है नारी, धरती माँ रूप का है नारी, लक्ष्मी जी स्वरूप है नारी, माँ दुर्गा का शौर्य है नारी । दुनिया की पहचान है नारी, घर परिवार की शान है नारी, माता, बहन, पत्नी, बेटी बनकर हर परिवार का अभिमान है नारी । नारी तो साक्षात श्रद्धा शक्ति स्वरूपा है, बहन, बुआ, […]

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