Litreture
कविता : लिखा परदेश किस्मत में वतन की याद क्या करना,
ग़रीबी में पला था सूखी रोटियाँ खाकर, बचपन से जवानी तक रहा था औरों का चाकर, क़िस्मत में लिखा था मेहनत मज़दूरी करना, ज़िन्दगी बीतती है ग़रीबों की झोपड़ी में रहकर। कहाँ से लाये वो दौलत जिसका पेट बिन निवाला है, दो जून की रोटी मात्र भर सपना जिसे उसने पाला है, नहीं देखा कभी […]
Read Moreकविता : सीमा का प्रहरी, वह सबका रक्षक
- Nayalook
- March 3, 2023
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सबसे बेहतर रंग की तलाश में, काले, सफ़ेद कोट हमने पहना, जय होवे अधिवक्ता साहब की, जय होवे चिकित्सक साहब की। उसके जजबात की कोई कद्र नहीं, उस सैनिक को तो होता है मरना, जिसने थी ओजी, चितक़बरी वर्दी, युवापन से पूरी जवानी भर पहना। कविता : औषधि होता है सबकी मदद करना देश की […]
Read Moreकविता : औषधि होता है सबकी मदद करना
केवल गोली, टेबलेट, कैप्सूल या इंजेक्शन ही औषधि नहीं होते हैं, रात में जल्दी सोना, ब्रह्ममुहूर्त में जल्दी उठना औषधि से होते हैं। रोज़ व्यायाम, ध्यान मनन करना, योग, प्राणायाम, उपवास करना, हँसना, हँसाना और खुश रहना भी, औषधि होता है सबकी मदद करना। अनुशासित जीवन चर्या, ख़ान पान शुद्ध रखना, सकारात्मक सोच रखना, प्रकृति […]
Read Moreकविता : आधुनिकता ने ढीट बना डाला है,
- Nayalook
- February 28, 2023
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माता पिता बच्चे का तुतलाना भी कैसे पूरी तरह समझ लेते हैं, बच्चा माँगे तोतली बोली में जो, माता-पिता वह सब लाकर देते हैं। पिता गोद में ले, कंधे पर बैठाकर घुमाने बच्चों को ले कर जाता है, घोड़ा घोड़ी ख़ुद बनकर पीठ पर, बैठाकर ख़ुद सवारी बन जाता है। कविता : सम्भाल लेते हैं […]
Read Moreकविता : सम्भाल लेते हैं हमारी हर व्यवस्था
शिक्षा, विनम्रता, बुद्धि, साहस, सद्कर्म, सत्य व ईश्वर में आस्था, मुसीबत में हमारे ख़ुद के यह सद्गुण, सम्भाल लेते हैं हमारी हर व्यवस्था। जो सफलता प्राप्त कर लेता है, वह शान्तचित्त रह मुस्कुराता है, मुस्कुराने से समस्या हल हो जाती है, और शांति से समस्या दूर रहती है। इंसान प्रेम की मूर्ति हो, खूबसूरत हो, […]
Read Moreओशो वाणी जानिए क्या होता है ढाई आखर के प्रेम का मर्म
छोटा सा ‘प्रेम’ शब्द है–ढ़ाई आखर प्रेम के… कोई बड़ा शब्द नहीं है, छोटा सा। ‘इक लफ्जे-मोहब्बत का अदना ये फसाना है!’ उसकी छोटी सी कहानी है, मगर उससे बड़ी और कोई कहानी नहीं। उस छोटे से शब्द में सब समा गया है–सारे शास्त्र! कबीर ने कहाः ढाई आखर प्रेम के, पढ़ै सो पंडित होय। […]
Read Moreकविता : समालोचना उसका हक़ होता है,
कविता की रचना जब कोई कवि अपनी कल्पना में जाकर करता है, यदि पाठक रचना में गलती खोजे, समालोचना उसका हक़ होता है। बिना गलती के गलती खोजे यह, बिगड़ी आदत के कारण होता है, लेकिन ख़ुद जब वह लिखना चाहे, एक पंक्ति पूरी नहीं लिख पाता है। निंदा और समालोचना, सोचने और समझने के […]
Read Moreकविता : हम या आप कौन हैं,
अपना हाथ देखूँ, हाथ अपना है, पर स्वयं तो हाथ नहीं हूँ मैं, ऐसे ही अपना पैर देखूँ, पर पैर भी स्वयं नहीं हूँ मैं, अपना सिर भी देखूँ, पर सिर भी स्वयं नहीं हूँ मैं, अपना तन भी देखूँ, तो तन भी स्वयं नहीं हूँ मैं। अपना मन देखूँ, पर मन भी खुद नहीं […]
Read Moreकविता : परंपरा व आस्था पर प्रहार
परंपरा व आस्था पर प्रहार, सरेआम आधुनिक भारत में, अपने ही लोगों के द्वारा देखा, वो रौंद गये एक लक्ष्मण रेखा। होली के पहले ही होली जैसे, मानस पृष्ट धूधू कर जला दिया, भारतीय सनातन संस्कृति को, अधर्मियों ने पैरों से कुचल दिया। जिस मानस पर गौरव हम करते हैं, उसकी सारी मर्यादा ही भूल […]
Read Moreकविता : भेड़िया आया-भेड़िया आया
- Nayalook
- February 21, 2023
- belief
- emotion
- greed
- infatuation
- story
- Wolf
सच बोलना मूलभूत प्रकृति व संवेदनशील सहज प्रवृत्ति है, झूठ सुनकर यदि हमें दुख होता है, ऐसे झूठ से ग़ैर को भी दुख होता है। जिस प्रकार झूठ सुनकर हमारी ख़ुद की भावना आहत होती है, वैसे ही हमारा झूठ सुनकर औरों की भावना अत्यंत कष्ट पाती है। बचपन में हम झूठ नहीं बोलते हैं, […]
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