मिश्रिख लोकसभाः भाजपा ने सांसद का टिकट काट बचाई अपनी सीट, विपक्षी दलों के सामने अब बड़ी चुनौती

  • सुरक्षित सीट पर लड़ाई की सम्भावनाएं तेज, सपा-बसपा भी जीत के लिए कर रही जीतोड़ मेहनत

 महर्षि दधीचि की नगरी के नाम से मशहूर मिश्रिख उत्तर प्रदेश की एक सुरक्षित लोकसभा सीट है। एक जमाने में यहां कांग्रेस का दबदबा था लेकिन बीते दो चुनाव से बीजेपी को यहां से जीत मिल रही है। सीतापुर, हरदोई और कानपुर जिलों की कुछ विधानसभाओं को मिलाकर मिश्रिख की लोकसभा सीट बनती है। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर तकरीबन 32 फीसदी एससी वोटर्स हैं। फिलहाल, यहां से बीजेपी के अशोक रावत सांसद हैं, जो पहले बसपा में भी रह चुके हैं। आइए जानते हैं सीट का पूरा विवरण नया लुक और सरिता प्रवाह ब्यूरो के रिपोर्टरों से…

लखनऊ। मिश्रिख सीट सीतापुर की मिश्रिख विधानसभा, हरदोई की बालामऊ, मल्लावां और संडीला तथा कानपुर की बिल्हौल विधानसभा सीट को मिलाकर बनाई गई है। साल 1962 में अस्तित्व में आई मिश्रिख की सीट पर पहली विजय जनसंघ के गोकरण प्रसाद को मिली थी। इसके बाद साल 1967 में कांग्रेस ने जनसंघ का रास्ता रोक दिया। हाथ के साथी बनकर संकटा प्रसाद ने यहां जीत दर्ज की। 1971 के चुनाव में संकटा प्रसाद ने अपनी जीत दोहरा दी। इमरजेंसी के बाद साल 1977 में जब चुनाव हुए तब हेमवंती नंदन बहुगुणा गुट के नेता रामलाल राही ने कांग्रेस के संकटा प्रसाद को चुनाव हरा दिया। वह भारतीय लोकदल के टिकट पर चुनाव लड़े थे। हालांकि, जीत के बाद वह भी कांग्रेस में शामिल हो गए। 1980 के चुनाव में कांग्रेस ने राही को ही मिश्रिख से टिकट दिया। वह जीत भी गए और 1991 तक उनका विजय अभियान जारी रहा। साल 1996 में पहली बार भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट पर जीत दर्ज की। इसके बाद मिश्रिख में कांग्रेस का स्वर्णकाल समाप्त हो गया।

बीजेपी का कब्जा

साल 1998 में बसपा ने भाजपा से यह सीट छीन ली। रमाशंकर भार्गव सांसद बने। 1999 में सपा प्रत्याशी सुशीला सरोज ने भार्गव को अपदस्थ कर दिया और सांसद बनीं। इसके बाद बसपा ने अशोक रावत को टिकट दिया और उन्होंने इस भरोसे को साकार करते हुए साल 2004 और 2009 में लगातार जीत दर्ज की। हालांकि, 2014 की मोदी लहर से वह नहीं बच पाए। बीजेपी की डॉ। अंजू बाला ने उन्हें चुनाव हरा दिया और सांसद बनी। साल 2019 के चुनाव में अशोक रावत बसपा छोड़ भाजपा में आ गए। उन्होंने यहां से फिर जीत दर्ज कर ली और सांसद बन गए। फिलहाल, वही इस सीट पर सांसद हैं।

जातीय समीकरण

मिश्रिख लोकसभा सीट पर अनुसूचित जाति के वोटर्स ज्यादा हैं। पासी वोटों की अधिकता होने के नाते ज्यादातर पार्टियां यहां से पासवान प्रत्याशी को ही खड़ा करती हैं। ओबीसी में कुर्मी, गड़रिया, काछी, कहार और यादव भी काफी मात्रा में हैं। 25 लाख 66 हजार 927 वोटर्स वाली इस सीट की 90 फीसदी आबादी ग्रामीण है। ग्रामीण मतदाता ही मिश्रिख की सत्ता का फैसला करते हैं। इंडिया गठबंधन से सपा ने यहां से रामपाल राजवंशी को उम्मीदवार उतारा है। वहीं भाजपा ने अशोक रावत पर ही भरोसा जताया है।

पिछले चुनाव का हाल

मिश्रिख से साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जीत मिली थी। यहां से 13 उम्मीदवार मैदान में थे। भाजपा के अशोक रावत और बसपा की नीलू सत्यार्थी के बीच मुख्य मुकाबला माना जा रहा था। अशोक रावत को पांच लाख 34 हजार वोट मिले थे। वहीं नीलू सत्यार्थी को चार लाख 33 हजार वोटों से संतोष करना पड़ा था। कांग्रेस की मंजरी राही को 26 हजार वोट ही मिल पाए।  2019 के लोकसभा चुनाव में मिश्रिख संसदीय सीट पर बीजेपी ने अशोक कुमार रावत को मैदान में उतारा तो उनके सामने बहुजन समाज पार्टी के डॉक्टर नीलू सत्यार्थी थे। चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच चुनावी तालमेल थे जिसमें यह बसपा के पास आई थी। कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही थी।

उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक हलचल बनी हुई है। सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी समेत सभी प्रमुख दल प्रदेश में बड़ी जीत हासिल करने की जुगत में लगे हैं। दधीचि की नगरी और राजधानी लखनऊ से सटा हरदोई जिला भी बेहद अहम क्षेत्र है। जिले के तहत दो संसदीय सीटें पड़ती है, एक हरदोई सदर लोकसभा सीट दूसरा, मिश्रिख लोकसभा सीट। अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व मिश्रिख सीट पर अभी भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है।

मिश्रिख संसदीय क्षेत्र को हरदोई, सीतापुर और कानपुर जिले की विधानसभा सीटों को मिलाकर बनाया गया है। इसमें सीतापुर की मिश्रिख विधानसभा सीट, कानपुर की बिल्हौर और हरदोई जिले की बालामऊ, मल्लावां तथा संडीला विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। हरदोई संसदीय सीट की तरह यहां पर भी सभी पांचों सीट पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है। एक समय यह सीट कांग्रेस के कब्जे में रहा करती थी। लेकिन 1990 के बाद इस सीट का इतिहास बदलता चला गया।

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में मिश्रिख संसदीय सीट के परिणाम को देखें तो यहां पर बीजेपी ने अशोक कुमार रावत को मैदान में उतारा तो उनके सामने बहुजन समाज पार्टी के डॉक्टर नीलू सत्यार्थी थे। चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच चुनावी तालमेल थे जिसमें यह बसपा के पास आई थी। हालांकि साझे में चुनाव लड़ने का बसपा को कोई फायदा नहीं मिला। कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही थी।

चुनाव में बीजेपी के अशोक कुमार रावत को 534,429 वोट मिले तो नीलू सत्यार्थी को 433,757 वोट मिले थे। तीसरे नंबर पर रहने वाली कांग्रेस के प्रत्याशी को महज 26,505 वोट मिले थे। अशोक ने 100,672 मतों के अंतर से यह चुनाव जीता था। तब के चुनाव में मिश्रिख सीट पर कुल वोटर्स की संख्या 17,62,049 थी, जिसमें पुरुष वोटर्स की संख्या 9,61,523 थी तो महिला वोटर्स की संख्या 8,00,458 थी। इसमें से कुल 10,26,668 वोटर्स ने वोट डाले। गग्Tइ के पक्ष में 10,181 (0।6%) वोट पड़े थे।

मिश्रिख सीट का राजनीतिक इतिहास

अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व मिश्रिख सीट के संसदीय इतिहास की बात करें तो यहां 1990 के बाद यहां पर बीजेपी और बसपा का दबदबा दिखा है, जबकि इससे पहले कांग्रेस का दबदबा रहा करता था। इस संसदीय क्षेत्र का निर्माण 1962 में हुआ था। यहां पर हुए पहले चुनाव में गोकरण प्रसाद (जनसंघ) को जीत मिली थी। फिर 1967 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के संकटा प्रसाद विजयी होकर संसद पहुंचे। 1971 के चुनाव में भी वह विजयी रहे।

इंदिरा गांधी की ओर से लगाए गए कुख्यात इमरजेंसी के बाद 1977 में कराए गए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। तब यहां से हेमवती नंदन बहुगुणा गुट के नेता रामलाल राही ने जीत हासिल की थी। उन्होंने कांग्रेस के संकटा प्रसाद को हराया था। हालांकि बाद में रामलाल राही भी कांग्रेस में आ गए और 1980 के लोकसभा चुनाव में भी वह विजयी रहे। 1984 में कांग्रेस के टिकट पर फिर से संकटा प्रसाद विजयी हुए। 1989 और 1991 के आम चुनावों में कांग्रेस ने रामलाल राही को उतारा और दोनों ही बार विजयी हुए। केंद्र में नरसिम्हा राव की सरकार में राही को केंद्रीय मंत्री बनाया गया।

पासी बिरादरी की निर्णायक भूमिका

1996 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यहां से जीत की शुरुआत की। तब परागीलाल चौधरी ने जीत हासिल की थी। 1998 के चुनाव में बसपा के रमाशंकर भार्गव को जीत मिली। 1999 के लोकसभा चुनाव में सुशीला सरोज (समाजवादी पार्टी) विजयी हुईं। 2004 और 2009 के आम चुनाव में बीएसपी के अशोक कुमार रावत लगातार दो बार सांसद चुने गए। 2014 के चुनाव में मोदी लहर में बीजेपी ने इस सीट पर भी जीत हासिल कर ली। तब डॉ। अंजूबाला यहां से सांसद चुनी गई थीं। हालांकि 2019 के चुनाव में बीजेपी ने सांसद अंजबूाला की जगह अशोक रावत को मैदान में उतारा और वह भी विजयी रहे। रावत पहले बसपा के टिकट पर सांसद रहे थे।

मिश्रिख संसदीय सीट भी अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट है, लेकिन यहां पर चुनाव में सवर्ण और पिछड़ी जातियों का भी असर दिखता है। हालांकि पासी बिरादरी वोटर्स निर्णायक भूमिका में रहते हैं, ऐसे में इसी बिरादरी के नेताओं को ज्यादा मौके मिलते हैं। इस क्षेत्र में हत्या हरण तीर्थ लोगों के बीच खासा प्रसिद्ध है। पिहानी में धोबिया आश्रम भी बेहद चर्चित है।

मिश्रिख लोकसभा सीट पर वर्ष 2014 में हुए आम चुनाव के दौरान 1725589 मतदाता दर्ज थे। उस चुनाव में बसपा के प्रत्याशी अंजू बाला ने कुल 412575 वोट हासिल कर जीत दर्ज की थी। उन्हें लोकसभा क्षेत्र के कुल मतदाताओं में से 23.91 प्रतिशत ने समर्थन दिया था, और उन्हें उस चुनाव में डाले गए वोटों में से 41.33 प्रतिशत वोट मिले थे। उधर, दूसरे स्थान पर रहे थे बसपा के उम्मीदवार अशोक कुमार रावत, जिन्हें 325212 मतदाताओं का समर्थन हासिल हो सका था, जो लोकसभा सीट के कुल वोटरों का 18.85 फीसदी था और कुल वोटों का 32.58 परसेंट रहा था। लोकसभा चुनाव 2014 में इस संसदीय सीट पर जीत का अंतर 87363 रहा था।

उससे भी पहले, उत्तर प्रदेश राज्य की मिसरिख संसदीय सीट पर वर्ष 2009 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान 1464770 मतदाता मौजूद थे, जिनमें से बसपा उम्मीदवार अशोक कुमार रावत ने 207627 वोट पाकर जीत हासिल की थी। अशोक कुमार रावत को लोकसभा क्षेत्र के कुल मतदाताओं में से 14.17 प्रतिशत वोटरों का समर्थन हासिल हुआ था, जबकि चुनाव में डाले गए वोटों में से 34.17 परसेंट वोट उन्हें मिले थे। दूसरी तरफ, उस चुनाव में दूसरे स्थान पर सपा पार्टी के उम्मीदवार श्याम प्रकाश रहे थे, जिन्हें 184335 मतदाताओं का साथ मिल सका था। यह लोकसभा सीट के कुल वोटरों का 12.58 फीसद था और कुल वोटों का 30.34 प्रतिशत था। लोकसभा चुनाव 2009 में इस संसदीय सीट पर जीत का अंतर 23292 रहा था।

कहीं न बन जाएं दिलजले या जुड़ न जाएं रिश्ते

सपा संगीता राजवंशी को प्रत्याशी बनाए रखती या फिर पूर्व सांसद राम शंकर भार्गव को टिकट देती है। यह पार्टी के निर्णय पर ही पता चलेगा, लेकिन घमासान में दो बातें सामने आई हैं। सपा के दिग्गज नेता पूर्व मंत्री रामपाल राजवंशी इससे नाराज बताए जा रहे हैं। कहीं ऐसा न हो कि दल से मिला धोखा उन्हें दिल जला न बना दे। वहीं दूसरी तरफ देखा जाए तो भाजपा प्रत्याशी सांसद अशोक रावत के भाई सांडी विधायक प्रभाष कुमार के रामपाल राजवंशी के ससुर हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि ऐसा भी हो सकता है कि दल से टूटा दिल रिश्तों को न जोड़ दे।

वर्ष 1998 में राम शंकर भार्गव रहे थे सांसद

सपा से नामांकन पत्र लेने वाले पूर्व सांसद राम शंकर भार्गव सीतापुर के रहने वाले हैं और 1998 में बसपा से मिश्रिख के सांसद भी रह चुके हैं। यह अलग बात है कि एक वर्ष बाद ही चुनाव हो गया था और वह कुछ दिन के लिए ही सांसद रह पाए थे।

मिश्रिख से अहिरवार होंगे बसपा प्रत्याशी

काफी लंबे इंतजार के बाद बहुजन समाज पार्टी ने हरदोई व मिश्रिख लोकसभा क्षेत्र में प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। बहुजन समाज पार्टी ने लखनऊ मंडल के प्रभारी भीमराव अंबेडकर को हरदोई लोकसभा क्षेत्र से अपना प्रत्याशी बनाया है। वहीं मिश्रिख लोकसभा क्षेत्र से बीआर अहिरवार बसपा के उम्मीदवार होंगे । बताते चले की बसपा के प्रत्याशी अब तक घोषित नहीं हुए थे ,जबकि भाजपा के प्रत्याशी नामांकन कर चुके हैं। सपा के प्रत्याशी भी काफी समय से जनसंपर्क कर रहे हैं लेकिन बसपा अपने पत्ते खोल नहीं रही थी। अब जब नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो गई है। तब बसपा ने अपने दोनों प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। एक समय था जब प्रदेश में बसपा का डंका बजता था टिकट पाने के लिए प्रत्याशी लाइन लगाए रहते थे ,लेकिन अब बसपा का टिकट लेने वाला कोई नहीं है। हालात यह हैं कि अब जिला मुख्यालय पर बसपा का कार्यालय तक कहीं नहीं दिखाई पड़ रहा।

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