हमारी छोटी आँखें जो आसमान
के तारे देखने की ताक़त रखतीं हैं,
जीवन जीने की चाहतें विषमताओं में भी जीवन खुशनुमा बना सकती हैं।
जिसे सदा मुस्कुराने की आदत है,
उसके सारे दुख ख़ुशी बन जाते हैं,
गुज़र जाते हैं ख़ुशनुमा लमहे भी,
बंद राहों की तरह रोड़े लग जाते हैं।
कहते हैं भूखे भजन न होहिं गोपाला,
भूखे के लिए भोजन ही आध्यात्म है,
वस्त्र परमात्मा है, अन्न भगवान है,
वरना ग़रीब का जीवन बेकार है।
जब गरीब पेट की आग नहीं बुझती,
अध्यात्मिक बात नहीं अच्छी लगती,
भजन के साथ भोजन, तभी भोजन के साथ भजन की बात अच्छी लगती।
भोजन से भौतिक शक्ति, भजन से आध्यात्मिक शक्ति जब मिलती है,
आदित्य तब अनजाने सफ़र में भी भौतिक ऊर्जा प्रोत्साहित करती है।