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Litreture

कविता: प्रेम की पहचान

कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई । बगुला भेद न जानई, हंसा चुनि-चुनि खाई ॥ समुद्र की उफनती लहरो में क़ीमती मोती आ आ करके बिखरते रहते हैं, बगुले को मोती की परख नहीं होती है, इसलिए उनका भेद नहीं जान पाते हैं । हंस मोती चुन लेता है क्योंकि उसे मोती की पहचान […]

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