

हृदय और मस्तिष्क दोनों ही
उस परमात्मा के घर होते हैं,
कूड़े करकट से मत भरिये,
इन्हें स्वच्छ रखिये रखिये॥
प्रभु का घर यह पावन मन,
दुरभाव-द्वेष न इसमें भरिये,
फिर से नर देह मिले न मिले,
प्रभु नाम यहाँ धरिये धरिये॥
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श्रुतियुक्त नीति अपनाइयेगा,
सत्कर्म धर्म सदा करिये करिये,
मुख में सियाराम सदा शुभ है,
हरि नाम सदा जपिये जपिये॥
जायका भक्ति की दौलत का
मोहब्बत से ज़्यादा लजीज है,
इश्क उस प्रभू से जब हो जाये,
तो दुनिया दौलत तजिये तजिये॥
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ओम् जय जय श्री हरि श्री हर,
विनती उनकी, पूजा उनकी,
नित प्रति मिलकर तन मन से
आदित्य सदा करिये करिये॥