ओशोवाणी: सही जीवन जीने के लिए कैसे बढ़ाएं कदम, जानें रोचक प्रसंग से,

आदमी चाहे तो पशुओं से नीचे गिर जाए और चाहे तो देवताओं से ऊपर उठ जाए। लेकिन ऊपर उठने में चढ़ाई है और चढ़ाई श्रमपूर्ण है। नीचे उतरने में ढलान है, श्रम नहीं लगता। इसलिए आदमी नीचे की तरफ जाना आसान पाता है। जैसे कि कार अगर पहाड़ी से नीचे की तरफ आ रही हो तो कंजूस आदमी पेट्रोल बंद कर देते हैं। पेट्रोल की जरूरत ही नहीं है, कार अपने से ही चली आती है। ढलान है। लेकिन तुम पेट्रोल बंद करके पहाड़ी नहीं चढ़ सकते; ऊर्जा लगेगी, शक्ति लगेगी, श्रम लगेगा, साधना लगेगी। ऊंचाइयां मांगती हैं साधना। पुण्य मांगते हैं साधना। परमात्मा तक पहुंचना है तो जैसे कोई गौरीशंकर का पर्वत चढ़े। पसीना-पसीना हो जाओगे। खून पसीना बनेगा। कौन उतनी झंझट ले! और अगर कभी कोई झंझट लेने भी लगे तो बाकी नहीं लेने देते, बाकी उसकी टांग पकड़ कर नीचे खींच लेते हैं। वे कहते हैं, कहां जाते हो? पागल हो गए हो! क्योंकि बाकी को भी कष्ट होता है यह देख कर कि कोई ऊपर जाए, कोई हम से ऊपर जाए!

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तुमने कहानियां पढ़ी होंगी, पुराणों में कहानियां हैं, वे इसी की सबूत हैं। उन कहानियों में कोई ऐतिहासिक तथ्य नहीं है, लेकिन प्रतीकात्मक तथ्य तो है ही। सत्य है, तथ्य हो या न हो। पुराणों में कहानियां हैं कि जब भी कोई ऋषि-मुनि दुर्धर्ष तपश्चर्या में ऊपर उठता है, तो इंद्र का सिंहासन डोलने लगता है। अब इंद्र का सिंहासन क्यों डोलने लगता है? इंद्र को क्या पड़ी? घबड़ाहट पैदा होती है कि कहीं यह मेरा पद न ले ले! तो इसको गिराओ, इसको डिगाओ।
तो तुमसे कोई अगर थोड़े ऊपर है, वह धक्का मारेगा कि नीचे जाओ। और जो नीचे हैं, वे तुम्हारी टांग खींचेंगे कि कहां ऊपर जाते हो! भीड़ तुम्हें खींच लेगी अपने में वापस, कि तुम हमसे अपने को ऊंचा समझना चाहते हो? ऊंचे उठना चाहते हो? भीड़ तुम्हारे पंख काट देगी। भीड़ बरदाश्त नहीं करती। भीड़ कभी किसी महामानव को बरदाश्त नहीं करती। महामानव के लिए तो भीड़ गालियां ही देती है, अपमान ही करती है। यही महामानव का भाग्य है, नियति है; उसे गालियां झेलनी पड़ेंगी।

तुम पूछते हो: “जीवन इतना उलटा-उलटा क्यों मालूम होता है?’

मालूम नहीं होता, हमने बना लिया है उलटा-उलटा। हमने सब उपाय करके उलटा-उलटा कर लिया है। आदमी है परमात्मा होने की क्षमता और हम परमात्मा नहीं हो रहे हैं। हम गिर रहे हैं पशुओं से नीचे। हम हो रहे हैं हैवान। परमात्मा होना तो दूर, हम आदमी भी नहीं हो पा रहे हैं। इससे सब उलटा हो गया है। हमारी प्रकृति, हमारा निसर्ग तो चाहता है कि उड़ें, पंख फैलाएं आकाश में! और हमारी व्यवस्था, हमारे स्वार्थ, हमारा समाज, हमारे चारों तरफ की भीड़ चाहती है कि हम नीचे रहें, कहीं ऊंचे न जाएं!

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मेरी लड़की नाच सकती है, गा सकती है और सितार भी बजा सकती है। वह अभिनय करने में कुशल है और वह एक अच्छी तैराक भी है। उसे पिक्चर देखने और उपन्यास पढ़ने का बहुत शौक है। जूडो और कराटे का भी उसे अच्छा ज्ञान है। मेरी लाड़ली बिटिया बड़ी निडर और दुस्साहसी है। वह हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, फ्रेंच और जापानी भाषाएं जानती है तथा जर्मन सीख रही है। पिछले साल वाद-विवाद और बैडमिंटन प्रतियोगिताओं में वह स्वर्ण-पदक जीत चुकी है। वह धाराप्रवाह बोल सकती है। सामाजिक कार्यों में उसका झुकाव है। और अगले लोकसभा चुनाव में वह सूरत क्षेत्र से इलेक्शन लड़ने की तैयारी कर रही है। आप में क्या खूबियां हैं? ढब्बूजी की होने वाली सास ने अपनी सुपुत्री के विषय में विस्तार से बताने के बाद ढब्बूजी से पूछा। बेचारे ढब्बूजी शर्म से सिर झुका कर बोले, जी, मुझे तो सिर्फ खाना पकाना ही आता है और मुझे सर्वश्रेष्ठ भोजन पकाने के लिए कई बार पुरस्कार भी मिले हैं।

जिंदगी हम उलटी किए दे रहे हैं। हमने उलटी कर ली है जिंदगी। स्त्रियां पुरुष होने की कोशिश में लगी हैं और पुरुष स्त्रैण होने की कोशिश में लगे हैं। स्त्रियां दौड़ रही हैं तेजी से कि पुरुष से स्पर्धा करें। और पुरुष धीरे-धीरे बर्तन मल रहा है; भोजन बना रहा है; घर साफ कर रहा है। स्त्रियां सिगरेट पी रही हैं; घुड़सवारी कर रही हैं; जूडो-कराटे की शिक्षा ले रही हैं। स्त्रैणता नष्ट हो रही है। स्त्रैणता चाहती है एक कमनीयता। पुरुष का पुरुषत्व भी नष्ट हो रहा है। सब चीजें उलटी होती जा रही हैं। उलटा कोई परमात्मा नहीं कर रहा है, उलटा हम कर रहे हैं। लड़की बहुत अमीर थी और मुल्ला नसरुद्दीन गरीब, पर ईमानदार। वह उसे पसंद करती थी, पर बस इतना ही, यह मुल्ला भी जानता था। एक रात मौका पाकर मुल्ला बोला, तुम बहुत अमीर हो?

हां–लड़की ने कहा–इस समय मैं एक करोड़ की आसामी हूं। इस समय एक करोड़ रुपया मेरे पास है।

मुझसे शादी करोगी? मुल्ला ने पूछा।

नहीं।

मुझे मालूम था कि तुम यही कहोगी- मुल्ला ठंडी सांस लेता हुआ बोला।

तो फिर तुमने पूछा ही क्यों? लड़की ने मुल्ला से पूछा।

यह देखने के लिए कि आदमी को कैसा लगता है एक करोड़ रुपया गंवा कर, मुल्ला बोला।
उसे भी शादी में उत्सुकता नहीं है। एक करोड़ रुपया गंवा कर कैसा लगता है आदमी को, यह जानने के लिए! वह जो ठंडी सांस ली थी, वह एक करोड़ रुपया गंवाया, उसके लिए ली थी।
लोग धन के लिए प्रेम करेंगे तो सब उलटा हो जाएगा। और लोग धन के लिए ही प्रेम कर रहे हैं। प्रेम के लिए भी पूछने जाते हैं ज्योतिषी से। प्रेम भी मां-बाप तय करते हैं। क्योंकि मां-बाप ज्यादा होशियार हैं। धन, पद, प्रतिष्ठा, सबका इंतजाम करेंगे। प्रेम का भी मौका मनुष्य को सीधा नहीं रह गया। वह भी दूसरे तय कर रहे हैं। और उनके निर्णय के आधार क्या हैं? लड़के के पास कितना धन है, कितनी शिक्षा है? लड़की के पास कितना दहेज है, कितनी शिक्षा है? लड़कियां कालेजों में पढ़ रही हैं केवल इसलिए कि उन्हें अच्छा वर मिल सके; पढ़ाई में किसी की उत्सुकता नहीं है।

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प्रसन्नता साधना और आत्माएं

मैं विश्वविद्यालय में शिक्षक था। मैंने एक लड़की नहीं देखी जिसको पढ़ाई में उत्सुकता हो। उनकी सारी उत्सुकता यह है कि किसी तरह अच्छी डिग्री मिल जाए, प्रथम श्रेणी मिल जाए। और स्वर्ण-पदक मिल जाए तब तो कहना ही क्या! मगर स्वर्ण-पदक, अच्छी डिग्री, पढ़ना-लिखना, इसमें कोई रस नहीं है। रस इस बात में है कि तब वे अच्छा पति फांस सकेंगी। नौकरी उसकी अच्छी होगी। डिप्टी कलेक्टर, कलेक्टर, डाक्टर होगा, इंजीनियर होगा। हम जिंदगी को उलटा किए दे रहे हैं। हमने जिंदगी उलटी कर ली है।

एक युवती ने प्रदर्शनी में एक नये ढंग का कंप्यूटर देखा। प्रदर्शनी के संचालक ने बताया कि यह ऐसा यंत्र है जो इंसान जैसा मस्तिष्क रखता है और यह प्रत्येक प्रश्न का सही उत्तर देने की पूरी क्षमता भी रखता है। युवती तो बहुत प्रभावित हुई। उसने एक कागज पर प्रश्न लिखा: मेरा बाप कहां है? इस प्रश्न को मशीन में डाला गया और एक बटन दबाई गई। तुरंत मशीन में से एक पुर्जा बाहर निकला, जिस पर लिखा था: तुम्हारा बाप बंबई की एक शराब की दुकान में बैठा शराब पी रहा है।

एकदम गलत–युवती बोली–मेरे बाप को मरे तो बीस साल हो गए।

यह मशीन कभी कोई गलती नहीं करती-संचालक ने पूरे विश्वास से कहा-आप इसी प्रश्न को जरा दूसरे ढंग से पूछिए।

इस बार युवती ने अपने प्रश्न को इस प्रकार लिखा: मेरी मां का पति कहां है? फिर से प्रश्न को मशीन में डाला गया और बटन दबाई गई। बटन के दबाते ही फटाक से एक पुर्जा बाहर आया जिस पर लिखा था: तुम्हारी मां के पति को मरे बीस साल हो गए हैं, लेकिन तुम्हारा बाप बंबई की एक शराब की दुकान में बैठा शराब पी रहा है। परमात्मा नहीं कर रहा है जिंदगी को उलटा। परमात्मा को बख्शो, उस पर कृपा करो। उसका तुम्हें कुछ पता भी नहीं है। हमने ही सब गड़बड़ कर लिया है। हमने ही गुड़-गोबर कर लिया है। हमारी जिम्मेवारी है। मनुष्य ने अपने हाथ से ही अपनी जिंदगी पर कालिख पोत ली है, अपने चेहरे पर नकाब लगा लिए हैं, मुखौटे पहन लिए हैं, पाखंडी हो गया है। कुछ कहता है, कुछ करता है। किसी बात का भरोसा नहीं है। उसे खुद अपनी बात का भरोसा नहीं है कि वह जो कह रहा है, उसमें कितनी सचाई है? दूसरों को तो छोड़ दो; तुम जब कुछ कहते हो, बिना सोचे-समझे कहे जा रहे हो। पीछे तुम पछताते हो कि यह मैं क्या कह गया! यह तो मैंने कहना चाहा नहीं था। यह तो मैंने सोचा भी नहीं था कि कहूंगा।

तुम्हें अपना भी पूरा पता नहीं है। तुम्हारे भीतर भी कितना अचेतन कूड़ा-कचरा भरा है, उसका तुम्हें होश नहीं है। वह कूड़ा-कचरा कब तुम्हारे बाहर आ जाता है, तुम्हें पता भी नहीं चलता। तुम क्यों क्रोधित हो गए? तुमने क्यों क्रोध में कुछ कह दिया, कुछ तोड़ दिया, कुछ फोड़ दिया? पीछे तुम खुद ही अपना सिर धुनते हो। तुम कहते हो: मेरे बावजूद यह हो गया, मैं तो करना ही नहीं चाहता था। मनुष्य अगर अपने को न जानता हो तो उलटा हो जाएगा। आत्मज्ञान ही मनुष्य को सीधा रख सकता है। आत्म-अज्ञान में सब उलटा हो जाने वाला है। और हम सब अज्ञानी हैं। मगर कोई मानने को राजी नहीं है कि वह अज्ञानी है। सबको भ्रम है ज्ञानी होने का। और जब अज्ञानी को ज्ञानी होने का भ्रम होता है तो अज्ञान सदा के लिए सुरक्षित हो गया। जब अज्ञानी को इस बात का बोध होता है कि मैं अज्ञानी हूं, तो उसने ज्ञान की तरफ पहला कदम उठाया। क्योंकि यह बहुत बड़ा ज्ञान है जान लेना कि मैं अज्ञानी हूं। यह बड़े से बड़ा जानना है।

परमात्मा की क्या मर्जी है, यह मत पूछो; तुम्हारी क्या मर्जी है, यह पूछो। तुम्हें जीवन को नैसर्गिक, सहज, सरल और सत्य ढंग से जीना है? इसकी फिक्र करो। तुम अपनी फिक्र करो। तुम औरों की फिक्र छोड़ो। क्योंकि तुम नहीं थे, और तो लोग थे ही; तुम कल नहीं हो जाओगे, और लोग जारी रहेंगे। यह दुनिया बड़ी है। इस सारी दुनिया को सीधा करने की चिंता में तुम मत लग जाना। क्योंकि उस तरह की चिंता भी सिर्फ, अपने उलटेपन को न देख पाऊं, इसका उपाय है। तुम अपनी फिक्र कर लो।

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मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन गया एक दुकान पर लिपस्टिक खरीदने। दुकानदार बड़ा हैरान हुआ। बहुत लिपस्टिक खरीदने वाले उसने देखे थे, मगर ऐसा खरीददार नहीं देखा था। वह एक-एक लिपस्टिक को ले और चखे। दुकानदार ने कहा कि बड़े मियां, क्या कर रहे हो? यह कोई लिपस्टिक खरीदने का ढंग है? बहुत खरीददार देखे, जिंदगी मेरी हो गई लिपस्टिक बेचते, यही मेरा धंधा है, तुम पहली दफा आए हो। यह क्या कर रहे हो? मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा कि तुम अपने काम से काम रखो, मुझे मेरा काम करने दो। बीच में बाधा देने की तुम्हें जरूरत नहीं। लिपस्टिक मैं खरीद रहा हूं या तुम? दुकानदार ने कहा, वह तो आप ही खरीद रहे हैं। मगर बेच रहा हूं मैं, तो कम से कम मुझे इतना हक है पूछने का कि यह क्या ढंग है चुनने का? मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा कि यह निजी बात है। तुम नहीं मानते तो बताए देता हूं। लगाएगी तो मेरी पत्नी लिपस्टिक, लेकिन चखना तो मुझको ही पड़ेगा! सो पहले से ही मैं चख रहा हूं। मैं अपनी फिक्र कर रहा हूं।

और मैं भी तुमसे कहता हूं: तुम अपनी फिक्र कर लो। छोड़ो फिक्र दुनिया की कि उलटी है कि सीधी। तुम इतनी फिक्र कर लो कि तुम तो कहीं सिर के बल नहीं खड़े हो! बस तुम अपने को सीधा करने में लग जाओ। और तुम सीधे हो जाओ तो तुम अचानक पाओगे कि तुम्हारे आस-पास की दुनिया भी सीधी होने लगी। हम जैसे होते हैं, हमारे लिए दुनिया वैसी ही हो जाती है। क्योंकि दुनिया हम पर वही लौटा कर बरसा देती है जो हम दुनिया को देते हैं। अगर तुम फूल फेंकोगे दुनिया पर, फूल लौट आएंगे–हजार गुना होकर लौट आएंगे! दुनिया एक प्रतिध्वनि है। और तुम अगर सीधे हो तो तुमसे जो भी आदमी संबंध बनाएगा, वह संबंध बना ही तब सकेगा जब सीधा होगा; उसे सीधा होना ही पड़ेगा, नहीं तो तुमसे संबंध नहीं बन सकेगा। धीरे-धीरे तुम पाओगे तुमसे वे ही लोग संबंध बनाते हैं जो सीधे हैं। पियक्कड़ों के पास पियक्कड़ इकट्ठे होते हैं। जुआरियों के पास जुआरी इकट्ठे हो जाते हैं। संतों के पास, जिनके संतत्व की संभावना है, वे ही लोग खिंचे चले आते हैं। सदगुरु के पास हर कोई नहीं आ जाता। बुद्धों के पास सिर्फ संभावित बुद्ध ही आते हैं।

तुम सीधे हो तो तुम अचानक पाओगे कि तुम्हारे संबंध उन लोगों से होने लगे जो सीधे हैं। कम से कम तुम्हारी छोटी सी दुनिया सीधी हो जाएगी, साफ-सुथरी हो जाएगी। तुम जटिलता छोड़ो। तुम कुटिलता छोड़ो। तुम इरछा-तिरछापन छोड़ो। इतना तो हो सकता है। लेकिन तुम अगर दुनिया को सीधा करने में लग गए तो तुम खुद भी सीधे न हो पाओगे, तुम किसी को सीधा कर भी न पाओगे। तुम्हारा जीवन रेत से तेल निकालने में व्यतीत हो जाएगा, न कभी तेल निकलेगा, न कभी तुम्हें तृप्ति होगी, न कभी तुम अनुभव कर सकोगे कि मैं पा सका वह जो मैंने पाना चाहा था। छोड़ो दुनिया को, अपनी सुध लो!

कहे होत अधीर–(प्रवचन–18)

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