घाघरा से गोमती तक लखीमपुर-खीरी की जमीन को चूमती हैं। यूपी का इकलौता नेशनल पार्क दुधवा यहां है। पौराणिकता रामायण काल से जुड़ती है, जो यहां स्थित गोला गोकर्णनाथ को छोटी काशी की संज्ञा देती है। हरियाली से इसका नाता यूं समझ लीजिए कि नाम में खीरी लगने का एक संदर्भ यहा ‘खैर’ के पेड़ों की तादाद से जुड़ता है। गन्ने की मिठास भी भरपूर है। हालांकि, पिछले ढाई साल से यह सीट किसान आंदोलन के दौरान हुए तिकुनिया कांड से चर्चा में हैं। हालांकि, यहां के सियासी मिजाज में स्थायित्व है। खीरी की जनता को जो खरा लगा, उसका दामन उसने बार-बार जीत से भरा है।
राजेश श्रीवास्तव की रिपोर्ट…
लखनऊ। आजादी के बाद साल 1957 में खीरी में पहला लोकसभा चुनाव हुआ। कांग्रेस से अलग हुए जेबी कृपलानी, नरेंद्र देव, जयप्रकाश नारायण आदि ने मिलकर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी बनाई। पूरे देश में पार्टी को 19 सीटें मिलीं। इसमें एक सीट खीरी भी थी। हालांकि, खीरी कांग्रेस की लहर में भीगने से खुद को लंबे समय तक रोक नहीं सकी। 1962 से 71 तक कांग्रेस से बालगोविद वर्मा ने हैट्रिक लगाई। साल 1977 में कांग्रेस विरोधी हवा में जीत जनता पार्टी के सूरत बहादुर शाह को मिली। 80 के दशक में फिर बालगोविद ने कांग्रेस की झोली में सीट डाल दी और चौथी बार जीत दिलाई। जीत के कुछ महीनों बाद उनका निधन हो गया। उपचुनाव में उनकी पत्नी ऊषा वर्मा जीतीं। सियायत में यह विरासत और मजबूत हो गई। 1984 और 1989 में भी ऊषा को कांग्रेस के टिकट पर जीत मिली।
90 के दशक में मंडल-कमंडल के माहौल में खीरी में पहली बार गेंदालाल कन्नौजिया ने कमल खिलाया। 96 में जनता ने फिर भाजपा को मौका दिया। कमंडल के बाद यहां बारी आई ‘मंडल’ की। सपा 1992 में अस्तित्व में आई थी। साल 1991 में कांग्रेस से हारने के बाद ऊषा भी सपाई हो गईं। वर्ष 1996 में महज 5444 वोट से वह चौथी बार जीतने से रह गई थीं। साल 1998 में सपा ने ऊषा के बेटे रविप्रकाश वर्मा को टिकट दिया और खीरी में पहली बार साइकल दौड़ी। अपने पिता व मां की तरह रवि ने भी जीत की हैट्रिक लगाई। हालांकि, 99 में जीत का अंतर महज 4500 रहा। 2004 में भाजपा ने हिदुत्व व सामाजिक समीकरण दोनों साधने के लिए यहां से विनय कटियार को लड़ाया, लेकिन वह तीसरे नंबर पर खिसक गए।
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उत्तर प्रदेश के एकमात्र नेशनल पार्क (दुधवा) और क्षेत्रफल के मामले में प्रदेश के सबसे बड़े लखीमपुर खीरी जिले के तहत दो संसदीय सीटें आती हैं। इस जिले से सांसद और केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के बेटे की ओर से अक्टूबर 2021 में किसान आंदोलन के दौरान किसानों पर गाड़ी चढ़ा देने और हिसा में कई लोगों के मारे जाने की वजह से खीरी क्षेत्र काफी चर्चा में आया था। जिले के तहत खीरी और धौरहरा दो संसदीय सीटें आती हैं, जिसमें खीरी संसदीय सीट बेहद अहम है। यहां से केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी सांसद हैं। लखीमपुर कांड के बाद इस बार चुनाव पर सभी की नजर है। ऐतिहासिक रूप से अहम माने जा रहे लखीमपुर खीरी जिला लखनऊ मंडल का एक हिस्सा है। दुधवा नेशनल पार्क, लखीमपुर खीरी में है और यहां पर बाघ, तेंदुए, दलदल हिरण, हेपीड खरगोश और बंगाली फूलों समेत कई दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियों का घर है। खीरी सीट के तहत 5 विधानसभा सीटें आती हैं जिसमें पलिया, निघासन, गोला गोरखनाथ, लखीमपुर और श्रीनगर सीटें शामिल हैं। इन सभी पांच सीटों पर 2022 के विधानसभा चुनाव में BJP को जीत मिली है, ऐसे में यह क्षेत्र भाजपा के दबदबे वाला माना जाता है।
साल 2017 के चुनाव में भी यहां पर बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया था। 2019 के खीरी संसदीय सीट पर हुए चुनाव को देखें तो यहां पर बीजेपी के अजय मिश्रा टेनी उम्मीदवार थे जिनके सामने समाजवादी पार्टी ने डॉक्टर पूर्वी वर्मा को उतारा था। पूर्वी एक राजनीतक परिवार से नाता रखती हैं। उनके पिता समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता रहे हैं और 1998 से 2009 तक लगातार तीन बार खीरी के सांसद चुने गए। चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के बीच गठबंधन हुआ जिसमें यह सीट सपा के हिस्से में आई थी। हालांकि मुकाबला एकतरफा रहा। अजय मिश्रा ने 609,589 वोट हासिल किए, जबकि डॉक्टर पूर्वी वर्मा को महज 390,782 वोट मिले। अजय मिश्रा ने 218,807 मतों के अंतर से यह चुनाव जीत लिया। खीरी संसदीय सीट पर तब के चुनाव में कुल वोटर्स की संख्या 17,29,085 थी जिसमें पुरुष वोटर्स की संख्या 9,28,009 थी जबकि महिला वोटर्स की संख्या 8,01,034 थी। इसमें से कुल 11,36,660 (66.2%) वोटर्स ने वोट डाले। चुनाव में के पक्ष में कुल 8,750 (0.5%) वोट पड़े थे।
कांग्रेस की वापसी, भाजपा का परचम
खीरी में कांग्रेस को जनता ने 20 साल बाद फिर मौका दिया। 2009 में यहां चौतरफा मुकाबला हुआ। खास बात यह है कि जमानत बचाने के लिए जरूरी 1/6 फीसदी वोट किसी भी उम्मीदवार को नहीं मिल सके। महज 14.26% वोट पाकर कांग्रेस के जफर अली नकवी सांसद बने। चूंकि उन्हें जीत मिली थी इसलिए उनकी जमानत बच गई। बाकी उम्मीदवारों को 11% से 14% के बीच वोट मिले। हालांकि, इस चुनाव के बाद खीरी ने नजदीकी लड़ाइयों से दूरी बना ली।
दूसरे, लगभग चार दशक में जिस वर्मा परिवार को 10 बार चुनकर जनता ने संसद भेजा, वर्ष 2009 के बाद उस परिवार से किसी और चेहरे को लोकसभा में एंट्री नहीं मिल सकी। 2014 में रवि को दूसरी बार हार मिली। 2019 में इस सियासी परिवार से एक और एंट्री हुई। रवि की बेटी पूर्वी वर्मा सपा-बसपा गठबंधन की उम्मीदवार बनीं, लेकिन उनकी उम्मीद परवान नहीं चढ़ सकी। 2009 में तीसरे नंबर पर रहे अजय कुमार मिश्रा टेनी को 2014 में 1.10 लाख वोटों से जीत मिली। 2019 में सपा-बसपा एक साथ आए तो टेनी की जीत का अंतर दोगुना (2।18 लाख वोट) हो गया। हालांकि, वोट शेयर के मामले में यहां सबसे बड़ी जीत का रेकॉर्ड ऊषा वर्मा के नाम है। साल 1984 में उन्हें 72% वोट मिले थे। इस सीट से हालांकि अब तक बसपा को मौका नहीं मिला है। 2004 में वह 12 हजार वोटों के नजदीकी अंतर से पिछड़ गई थी।
अजय मिश्रा टेनी को दूसरी बार जीतने का इनाम मिला। जुलाई 2021 में मोदी मंत्रिमंडल के विस्तार में टेनी को केंद्रीय गृह राज्यमंत्री बना दिया गया। मंत्री बनने के बाद तीन महीने ही खीरी के निघासन विधानसभा क्षेत्र के तिकुनिया में हुई घटना से पूरे देश की सियासत उबल गई। उस समय कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली में धरना चल रहा था। तिकुनिया में इसके समर्थन में प्रदर्शन था। इस दौरान अजय के बेटे आशीष मिश्रा की गाड़ी से कुचलकर चार किसान मारे गए, भड़की हिसा में कुल आठ लोगों की मौत हुई। किसान संगठनों से लेकर विपक्ष तक का नया केंद्र तिकुनिया हो गया। लेकिन, खीरी की सियासी तासीर नहीं बदली। 2022 में प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए। खीरी लोकसभा सीट के पांचों विधानसभा क्षेत्रों सहित जिले की सभी 8 विधानसभा सीटों पर भाजपा जीती। सबसे बड़ी जीत उस निघासन में मिली, जहां पर यह घटना घटी थी। भाजपा की राजनीतिक जमीन भी सुरक्षित रही, टेनी का मंत्री पद भी। अब उन्हें फिर भाजपा ने टिकट टे दिया है।
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हैट्रिक रोकने की लड़ाई
खीरी की पांचों विधानसभा सीटों पलिया, लखीमपुर, निघासन, गोला गोकर्णनाथ और श्रीनगर (एसी) पर भाजपा काबिज है। यहां का सामाजिक समीकरण देखें तो ब्राह्मण, दलित और कुर्मी वोटर राजनीति की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं। तीन लाख के करीब मुस्लिम वोटर भी हैं। पलिया में सिखों की भी प्रभावी आबादी है। इस समय ब्लॉक, जिला पंचायत से लेकर जिले की हर अहम कुर्सी पर भाजपा का कब्जा है। हालांकि, उम्मीदों की डोर रामलहर और मोदी का गारंटी से ही जुड़ी है, जिससे जातीय गणित तोड़ जीत की केमिस्ट्री बनाने का सपना रणनीतिकार पाले हुए हैं। विपक्षी गठबंधन में यह सीट सपा के खाते में है, जिसने कुर्मी बिरादरी से उत्कर्ष वर्मा को प्रत्याशी बनाकर समीकरण साधने की कोशिश की है। सपा छोड़कर कांग्रेस में गए रवि वर्मा अपने बेटी पूर्वी के लिए टिकट मांग रहे थे, लेकिन सपा ने सीट नहीं छोड़ी। अब अगर उनका परिवार मैदान में नहीं उतरता तो 43 साल में पहली बार चुनावी लड़ाई से बाहर रहेगा। इस सियासी परिवार का रुख भी वोटों को प्रभावित कर सकता है। बसपा को अभी चेहरा तय करना है।
खीरी सीट का संसदीय इतिहास
लखीमपुर खीरी जिले के तहत आने वाली खीरी संसदीय सीट के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो एक समय यह कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी। लेकिन 1990 के बाद के दौर में यहां पर ज्यादातर समय मुकाबला बीजेपी और सपा के बीच होती रही है। अब तक यहां हुए 19 लोकसभा चुनावों में से 8 बार कांग्रेस को जीत मिली है जबकि 3 बार बीजेपी को जीत मिली तो हैट्रिक जीत के साथ समाजवादी पार्टी ने 3 बार जीत हासिल की। कांग्रेस के टिकट पर बालगोविद वर्मा चार बार (1962, 1967, 1971 और 1980) सांसद चुने गए। फिर 1980 में उनके निधन के बाद यहां हुए उपचुनाव में बालगोविद की विधवा उषा वर्मा कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरीं और विजयी रहीं। उषा 1984 और 1989 में भी विजयी रहीं। 1991 और 1996 के चुनाव में बीजेपी को जीत मिली। फिर 1998, 1999 और 2004 के चुनाव में सपा को जीत मिली। रवि प्रकाश वर्मा ने यहां पर जीत की हैट्रिक बनाई। 2009 में कांग्रेस के जफर अली नकवी ने जीत हासिल की।
खीरी सीट का जातिगत समीकरण
साल 2014 के लोकसभा चुनावों में मोदी लहर के बीच बीजेपी को यहां भी फायदा मिला और उसके उम्मीदवार अजय मिश्र ने 37 फीसदी वोट हासिल किए और बसपा के अरविद गिरी को 1,10,274 मतों के अंतर से हरा दिया। बाद में अरविद गिरी बीजेपी में आ गए और वह वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में गोला विधानसभा से चुनाव जीत गए। साल 2019 के चुनाव में बीजेपी के टिकट पर अजय मिश्रा फिर से चुनाव जीत गए। इस बार उन्होंने पूर्वी वर्मा को 2,18,807 मतों के अंतर से हराया।
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बसपा का खीरी सीट पर भी अब तक खाता नहीं खुल सका है। साल 2019 के चुनाव में बसपा का सपा के साथ गठबंधन था, ऐसे में यहां से सपा का उम्मीदवार उतरा। जबकि इससे पहले के तीन लोकसभा चुनाव (1999, 2004 और 2009) में बसपा दूसरे पायदान पर रही थी। मुकाबला कांटे का रहा था। ऐसे में इस बार वह कड़ी चुनौती पेश कर सकती है। खीरी संसदीय सीट के जातिगत समीकरण पर नजर डाली जाए तो यहां अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के वोटर्स की अच्छी खासी संख्या है। यहां पर भी करीब 20 फीसदी मुस्लिम वोटर्स हैं। लखीमपुर खीरी जिला उत्तर में मोहन नदी से घिरा हुआ है, और यह नदी इसे नेपाल से अलग करती है। लखीमपुर में कई नदियां शारदा, घाघरा, कोरियाला, गोमती, कथाना, सरयू और मोहना जैसी नदियां बहती हैं। लंबे संघर्ष के बाद ब्रिटिश अधिकारियों ने 1858 के अंत तक इस पर नियंत्रण हासिल कर लिया और एकल जिले के मुख्यालय का गठन कर दिया। जिसे बाद में लखमलपुर में स्थानांतरित कर दिया गया।
खीरी लोकसभा सीट पर 35 साल तक वर्मा परिवार का रहा कब्जा
खीरी लोकसभा सीट पर वर्ष 1952 में पहला चुनाव हुआ था। तब रामेश्वर प्रसाद नेवटिया सांसद बने। इसके बाद 1956 में दूसरे चुनाव में कुंवर खुशवक्त राय चुने गए थे। तीसरे चुनाव 1962 में बाल गोविद वर्मा ने कांग्रेस से चुनाव लड़ा और प्रसोपा के कुंवर खुशवक्त राय को हराकर चुनाव जीता। इसके बाद उन्होंने लगातार तीन बार चुनाव जीता। 1977 तक सांसद की कुर्सी पर विराजमान रहे। वर्ष 1977 में जब फिर चुनाव हुए तो बाल गोविद को जनता पार्टी के प्रत्याशी सूरत बहादुर ने हरा दिया।
इसके बाद अगला चुनाव 1980 में हुआ, जिसमें एक बार फिर से बाल गोविद वर्मा ने किस्मत अजमाई और जनता पार्टी के सूरत बहादुर शाह को हराकर सांसद बने, लेकिन दुर्भाग्य यह रहा है कि शपथ ग्रहण से पूर्व ही उनका देहांत हो गया। ऐसे में 1980 में इस सीट पर हुए उपचुनाव में बाल गोविद की पत्नी ऊषा वर्मा चुनाव मैदान में उतरीं और जनता पार्टी के डॉ। जय शंकर बाजपेई को पराजित कर इस सीट की पहली महिला सांसद बनीं। इसके बाद वह लगातार तीन बार चुनाव जीतीं। वर्ष 1991 के चुनाव में ऊषा वर्मा ने फिर से किस्मत अजमाई, लेकिन भाजपा उम्मीदवार गेंदनलाल कनौजिया ने इनको हरा दिया। गेंदनलाल दो बार सांसदी का चुनाव जीते।
पिता स्व. बाल गोविद, मां ऊषा वर्मा के तीन-तीन बार संसद बनने के बाद उनके बेटे रवि प्रकाश वर्मा की राजनीति में एंट्री हुई। 1998 में बेटे रवि प्रकाश वर्मा ने सपा सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा। पहले ही प्रयास में चुनाव जीतकर संसद पहुंच गए, लेकिन अगले ही साल 1999 में किसी वजह से लोकसभा भंग हो गई। ऐसे में 1999 में फिर से चुनाव हुआ और उसमें फिर से रवि प्रकाश वर्मा जीत गए। 2004 के चुनाव में रवि प्रकाश वर्मा ने तीसरी बार चुनाव जीता। जब 2009 में लोकसभा सीट पर चुनाव हुआ तो चौथी बार में हार गए। वर्ष 2009 के चुनाव में जफर अली नकवी ने कांग्रेस से चुनाव जीता था।
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खीरी संसदीय सीट का हाल
विधानसभा पुरुष महिला थर्ड जेंडर कुल
पलिया 193321 173018 4 366343
निघासन 188373 162933 0 351306
गोला गोकर्णनाथ 211418 190917 24 402359
श्रीनगर 173998 152150 4 326152
लखीमपुर 220534 195765 10 416309
खीरी लोकसभा सीट एक नजर में:
कुल वोटर : 18.62 लाख
पुरुष : 9.87 लाख
महिला : 8.75 लाख
साल 2019 का परिणाम:
अजय मिश्रा ‘टेनी’ भाजपा 6,09,589
पूर्वी वर्मा सपा 3,90,782
जफर अली कांग्रेस 92,155
वर्ष 2014 का परिणाम :
अजय मिश्रा टेनी भाजपा 3,98,578
अरविद गिरि बसपा 2,88,304
जफर अली कांग्रेस 1,83,940
रवि प्रकाश वर्मा सपा 1,60,112
साल 2009 का परिणाम:
जफर अली कांग्रेस 1,84,980
इलयास आजमी बसपा 1,76,200
अजय मिश्रा टेनी भाजपा 1,62,841
रवि प्रकाश वर्मा सपा 1,53,484