- BJP को फायदा पहुंचाने के लिए BSP ने उतारा है मुस्लिम कैंडिडेट
- कुर्मी बिरादरी के पंकज का साथ छोड़कर सजातीय वीरेंद्र के साथ जा सकते हैं मतदाता
महराजगंज। महराजगंज संसदीय सीट पर आखिरी चरण में मतदान है। यह लोकसभा सीट जनसांख्यिकी विविधताओं से भरी है और चुनावी नजरिए से यह उत्तर प्रदेश में अहम है। यहां से यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा भी जुड़ी हुई है। इस सीट पर सभी दलों ने अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं। भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने अपने मौजूदा सांसद व केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री पर फिर दांव लगाया है। वे यहां से छः बार से सांसद हैं। दो बार उन्हें हार का मुंह भी देखना पड़ा है। इंडिया गठबंधन से कांग्रेस ने फरेंदा के विधायक वीरेंद्र चौधरी को मैदान में उतारा है, जबकि बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने अपनी इंडिया गठबंधन को कमजोर करने की नीति के तहत असम में कारोबार कर रहे एक मुस्लिम को उम्मीदवार बनाया है। इस तरह मुख्य दलों के दो उम्मीदवारों के बीच मुकाबला है। BSP की कोशिश होगी कि वह इंडिया गठबंधन उम्मीदवार को अधिक से अधिक कितना नुकसान पंहुचा पा रही है। जनता की जुबान पर फिलहाल दो ही नाम है। गठबंधन उम्मीदवार वीरेंद्र चौधरी तथा भाजपा के पंकज चौधरी।
इस संसदीय सीट का जो जातीय समीकरण है वह ब्राम्हण, मुस्लिम, यादव और कुर्मी बाहुल्य है। इसके अलावा वैश्य, लोनिया, चौहान, चौरसिया दलित, धूरिया आदि जातियां जब एक जुट होती हैं तो उनकी भूमिका भी निर्णायक हो जाती है। गठबंधन उम्मीदवार की ताकत यादव, मुस्लिम यानी MY गठबंधन हैं। कुर्मी बिरादरी जो पंकज चौधरी के साथ होती थी, उसमें जबर्दस्त सेंधमारी हुई है। वे बहुत तेजी से बीरेंद्र चौधरी के साथ जुट रही है। जहां तक ब्राम्हण वोटरों का सवाल है तो गैर भाजपा ब्राम्हण नेता बीरेंद्र चौधरी के साथ लामबंद हो रहे हैं।
वीरेंद्र को पूर्व में BSP में रहने का लाभ मिल रहा है। दूसरी और दलितों में बाबा साहेब के संविधान की रक्षा का जुनून है। वे बसपा से कटने लगे हैं। सवर्ण समुदायों में ब्राह्मण मतदाता यहां 12 प्रतिशत हैं। क्षत्रियों और कायस्थों का एक छोटा प्रतिशत भी यहां रहता है। दलित आबादी में जाटवों के अलावा धोबी और पासी भी शामिल हैं। मुस्लिम मतदाता भी यहां संख्यात्मक रूप से ठीक हैं और अनुसूचित जनजाति की दो जातियां भी इस जिले में निवास करती हैं।
साल 2019 के आम चुनाव में यहां बड़ी रोचक जंग देखने को मिली थी। BJP के पंकज चौधरी ने पिछले चुनाव में 3,40,424 मतों के अंतर से जीत दर्ज़ की, उन्हें 7,26,349 वोट मिले। चौधरी ने SP के उम्मीदवार अखिलेश सिंह को हराया जिन्हें 3,85,925 वोट मिले। यहां पिछले चुनाव में 64.68% मतदान हुआ था। इस बार मतदाताओं में खासा उत्साह है और वे लोकतंत्र में वोटों की ताकत दिखाने को और ज़्यादा जागरूक हैं। वहीं BJP के शीर्ष नेताओं के स्तरहीन भाषणों का प्रवुद्ध वर्ग में रिएक्शन देखने को मिल रहा है। भाजपा के शीर्ष नेताओं का ध्रुवीकरण के हथकंडे फेल हो रहे हैं।
हिंदू महिलाओं के मंगलसूत्र छीनने वाला मोदी का भाषण उल्टा पड़ रहा है। वहीं योगी के शरियत संबंधी बयान की भी आलोचना खूब हो रही है। गठबंधन उम्मीदवार की संघर्षशीलता और ईमानदारी की भी चर्चा हर ओर है। इस तरह देखें तो 2014 और 2019 जैसा भाजपा का माहौल इस बार नहीं दिख रहा। युवाओं में रोजगार को लेकर बात हो रही है। मंहगाई पर भी लोग लामबंद हो रहे हैं। यद्यपि कि चुनावी माहौल किसके पक्ष में है,यह कहना मुश्किल है लेकिन यह साफ दिख रहा है कि लोग अब मंदिर मस्जिद, काशी मथुरा, हिंदू मुसलमान सुनते-सुनते थक चुके हैं।
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बड़ा ही शानदार इतिहास है महराजगंज का…
यह कभी कोशल राज्य का अंग था। नवाबों से पहले राजपूतों का शासन था। यह धरती भगवान बुद्ध के ननिहाल से जुड़ी है। ब्रितानी हुकूमत के खिलाफ बगावत में लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा भी लिया। आजादी के बाद स्वतन्त्रता सेनानी सिब्बन लाल सक्सेना की अगुवाई में महराजगंज की धरती ने संघर्ष का फलसफा ठीक से सीखा। सक्सेना जीवन भर दलितों, शोषितों के उत्थान के लिए संघर्ष करते रहे। उन्होंने इस सीट से चार बार जीत हासिल कर एक रिकॉर्ड बनाया था। लेकिन अब यह रिकार्ड मौजूदा सांसद पंकज चौधरी के नाम है, जो अब छह बार यहां से जीत चुके हैं। आजादी के बाद वर्ष 1952 में हुए पहले आम सभा चुनाव में सक्सेना पहली बार निर्दल प्रत्याशी के रूप में सांसद निर्वाचित हुए थे। दूसरे चुनाव में भी निर्दल प्रत्याशी के रूप में जीत हासिल की। साल 1971 में भी निर्दल और अंतिम बार वर्ष 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर रघुबर प्रसाद को हराकर सांसद बने।
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