कविता : उधार का एहसान

कर्नल आदि शंकर मिश्र
कर्नल आदि शंकर मिश्र

दोस्ती और रिश्तेदारी में उतने पैसे
ही उधार देना चाहिये जितने उधार
देकर बस भूल जाने की सामर्थ्य हो,
दोस्त या रिश्तेदार खोने का मन हो।

हमारी सनातन से पृथा है आयु में
बड़ों को सम्मान किया जाता है,
अब थोड़ा सा फर्क आ गया है,
आय में बड़े का सम्मान होता है।

पर अब आयु और आय में बड़े का
सम्मान नहीं बल्कि अपमान होता है,
आदित्य अब उधार लेकर न देना पड़े,
तभी एहसान भूल अपमान होता है।

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चपातियों पर घी लगाना और
किसी नाम के बाद जी लगाना,
पहला खाने का स्वाद बढ़ाता है,
दूसरा अगले का सम्मान बढ़ाता है।

इंसान जन्म लेकर दो साल का हो,
बोलना व बातें करना सीख जाते हैं,
परंतु कहाँ, कब और क्या बोलना है,
यह सीखने में पूरा जन्म लगा देते हैं।

कबीर दास ने इसी पर कितनी
सटीक व सुंदर बात कही थी कि,
“पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ
पंडित भयो न कोय”।
“ढाई अक्षर प्रेम के पढ़े
सो पंडित होय”॥

परेशान है तो भुक्तभोगी जनता

मस्तिष्क शायद याद न कर पाये
विगत में वास्तव में क्या हुआ था,
हृदय में घर कर जाने वाले भाव
किसी को भी कभी नहीं भूलते।

फूल खिलकर मुरझा जाने के
बाद दुबारा नहीं खिला करते हैं,
मनुष्य जन्म के बाद मृत्यु निश्चित है,
मृत्यु के बाद कहाँ जिया करते हैं ?

जन्म से मृत्यु पर्यन्त मिलने को तो
बहुत लोग मिलते रहते हैं, आदित्य,
पर माता पिता जो सारी ग़लतियाँ
भुला देते हैं, मृत्यु के बाद नहीं मिलते हैं।

 

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