मैंने सुना हैः एक आदमी आग खोज रहा था घर में। अंधेरा था, इसलिए निश्चित ही दीया लेकर खोज रहा था! आग की बड़ी जरूरत थी। दीया लेकर आग खोज रहा था।
पड़ोसी हंसने लगा और उसने कहा, ‘तू पागल है! क्योंकि आग तू हाथ में लिए है, अब खोजने की जरूरत क्या है? इस दीये से तो जितनी आग पैदा करनी हो, हो जाएगी।’
तब उसे याद आया।
कई बार तुम्हारे जीवन में ऐसी घटनाएं घट जाती हैं कि तुम चश्मा लगाए–चश्मा खोज रहे हो, चश्मे से ही। नहीं तो तुम खोजोगे ही कैसे? बहुत बार ऐसा हो जाता है कि लिखने-पढ़ने वाले लोग-क्लर्क, मास्टर, लेखक-कलम को कान पर खोंस लेते हैं, फिर खोजने लगते हैं। अब जो कान पर ही खुसी हो, वह खोजने से न मिलेगी।
कथा है मुल्ला नसरुद्दीन के संबंध में कि भागा जा रहा था बाजार से अपने गधे पर।
बड़ी तेजी में था।
बाजार में लोगों ने भी पूछाः ‘नसरुद्दीन इतनी जल्दी कर कहां चले जा रहे हो?’
उसने कहाः ‘अभी मत रोको, लौट कर बताऊंगा।’
लौट कर जब आया तो लोगों ने पूछाः ‘इतनी जल्दी क्या थी?’
उसने कहाः ‘मुझे दूसरे गांव जाना है और मैं अपने गधे को खोजने जा रहा था।
फिर मुझे गांव से बाहर जाकर याद आई कि मैं गधे पर बैठा हुआ हूं!’
नसरुद्दीन ने कहाः ‘खैर, मैं तो नासमझ हूं। लेकिन मूर्खों, तुम्हें तो बताना था! मैं तो गधे पर बैठा था, इसलिए मुझे दिखाई भी नहीं पड़ रहा था! और मेरी नजरें तो आगे लगी थीं। लेकिन तुम्हें तो गधा दिखाई दे रहा था!’
बाजार के लोगों ने कहाः ‘हमें तुमने मौका ही कहां दिया! हमने पूछा भी था कि नसरुद्दीन, कहां जा रहे हो?’
नसरुद्दीन ने कहाः ‘उस वक्त मैं जल्दी में था।’
जीवन की बड़ी से बड़ी पहेली यही है, कि जो कभी हुआ ही नहीं है, वह हो गया लगता है। तुम कभी सोए नहीं, और तुम रोज सो गए लगते हो। तुम कभी मरे नहीं, हर जीवन में तुम मरे हुए लगते हो। तुम कभी जन्मे नहीं, फिर भी कितनी बार तुमने जन्म लिया है! तुम क्षण भर को भी भटके नहीं, और अनंत जन्मों से तुम भटके हुए हो!
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जीवन की बड़ी से बड़ी पहेली यही है कि जो कभी नहीं हुआ है, वह हो गया लगता है।
हिंदुओं ने इस राज को बड़ी गहराई से पकड़ा और उन्होंने कहा कि यह पूरा ‘खेल’ एक बड़ी गहरी मजाक है।
अगर परमात्मा कहीं है, तो उसकी हंसी रुकती ही न होगी। वह हंसता ही चला जा रहा होगा। क्योंकि कितनी गहरी मजाक हो गई।
बुद्ध पुरुष जो भी पा लेते हैं वह उन्होंने सदा से पाया ही हुआ है।
बुद्ध को ज्ञान हुआ तो पूछा किसी ने ‘क्या मिला?’ तो बुद्ध ने कहा, ‘मिला कुछ भी नहीं; जो मिला हुआ था, उसकी स्मृति आ गई। जिसे कभी खोया ही नहीं, उसे पहचान लिया।’
जैसे एक खजाना तुम लेकर चलते हो और रास्ते पर भीख मांग रहे हो।
और जैसे कोई तुम्हें चौंका दे और याद दिला दे कि ‘तुम और भीख मांग रहे हो! पागल हो गए हो! तुम सम्राट हो।’
और तुम्हें याद आ जाए।
परमात्मा सिर्फ याद आ जाने की बात है।
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परमात्मा कहीं और नहीं है; तुम्हारा ‘होना’ ही परमात्मा है। तुम परमात्मा हो।
और इससे ज्यादा पहेली की बात क्या होगी कि परमात्मा, परमात्मा को ही खोजने निकल गया हो!
फिर अगर परमात्मा न मिलता हो, तो आश्चर्य क्या है?
तुम्हें कभी भी परमात्मा न मिलेगा, क्योंकि तुम वही हो।