ईश्वर का दर्शन और सन्त का मार्ग
दर्शन जीवन को आलोकित करते हैं,
ईश्वर दर्शन हो जायँ तो आत्मशुद्धि,
संतों के दर्शन हों तो मन शुद्ध होते हैं।
एक भोला भाला सामान्य इंसान ही
जीवन का असल आनंद ले सकता है,
बहुत ही ज्यादा समझदार व्यक्ति तो
फायदे नुकसान में ही उलझा रहता है।
बोझ तो सिर्फ हमारी इच्छाओं का है,
जिन्हें बिलकुल ही कम कर देना चाहिये,
बाकी ज़िंदगी बिलकुल हल्की फुल्की है,
इसका आनन्द जीवन भर लेना चाहिये।
दूध का बर्तन यदि साफ़ नही होता है,
उसमें दूध डाल कर उबालने से पहले,
उस को अच्छे से साफ़ किया जाता है,
तभी दूध पूरा दिन शुद्ध रह सकता है।
सच्चे संतो का उपदेश यही होता है,
मन की चिंताओं का कूड़ा – कचरा,
और बुरे संस्कारों का जो गोबर भरा है,
उसे निज मन से निष्कासित करना है।
उपदेश का अमृत पान करना है,
अपना मन पहले शुद्ध करना है,
संस्कार शुद्ध अपने यदि करना है,
तो कुसंस्कारों का त्याग करना है।
आदित्य सच्चे सुख का आनंद लेना है,
तो नकारात्मक सोच त्याग करना है,
अपनी सोच सकारात्मक रखना है,
सकारात्मकता से ही कार्य करना है।