कविता : लकड़ी के कीड़े दीमक होते हैं

कर्नल आदि शंकर मिश्र
कर्नल आदि शंकर मिश्र

नेता साँसदगण और मिनिस्टर भी,
संसद में अक्सर सोते पाये जाते हैं,
पाँच वर्ष के बाद नींद खुलती उनकी,
जब जनता से वोट माँगने वे आते हैं।

शिक्षक विद्यार्थी अपनी कक्षा में सोते हैं,
सरकारी कर्मचारी ऑफ़िस में सोते हैं,
अधिकारी कभी कभी ऑफ़िस जाते हैं,
ज़्यादातर अपने बँगले में ही वे सोते हैं।

सबकी नज़र कालोनी के गार्ड पर है,
जो ड्यूटी पर थक कर सो जाता है,
बीमारी में भी वह गरीब ड्यूटी करने,
अच्छी ख़ासी मजबूरी में भी आता है।

लकड़ी के कीड़े जो दीमक होते हैं,
पूरी की पूरी कुर्सी चट कर जाते हैं,
पर कुर्सी पर बैठे इच्छाधारी कीड़े,
पूरे देश को ही चाट कर खा जाते हैं।

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जब सौ पैसे देने होते हैं, तब वह
पाने वाले को पंद्रह पैसे ही देते हैं,
बाक़ी के पिच्चासी पैसे उनकी पॉकेट
में पूरी वफ़ादारी और धौंस से जाते हैं ।

यह कभी किसी बड़े नेता ने माना था,
तो तब में अब में क्या फ़र्क़ हुआ है,
इच्छाधारी इंसानों ने ही आज तलक,
इस भ्रष्टाचार को बनाकर रक्खा है।

एक सोसायटी में चोरी होने का डर
चौकीदार को सोने से मना करता है,
पर देश के चौकिदारों के सो जाने से
आदित्य देश के लुट जाने का ख़तरा है।

इसलिए यही कहना है आदित्य का
चौकीदारो सोवो मत जागते रहो,
कर्णधार हो भारत के इसकी रक्षा के,
भारत के जनमानस के उनकी रक्षा के।

 

 

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