हरदोई लोकसभाः क्या भाजपा की हैट्रिक की राह में आएगा इंडिया गठबंधन?

उत्तर प्रदेश का हरदोई पौराणिक नगरी है। यहां भगवान विष्णु ने दो बार जन्म लिया। पहला वामन अवतार के रूप में तो दूसरी बार नरसिंह भगवान के रूप में। पौराणिक कथाओं के अनुसार, पूर्व में राक्षसराज हिरण्यकश्यप यहां का राजा था और तब हरदोई का नाम हरिद्रोही था। वह भगवान विष्णु का शत्रु था, लेकिन उसका पुत्र प्रहलाद विष्णु का उपासक था, इसलिए वह प्रहलाद को मारना चाहता था। उसने अपनी बहन होलिका जिसे वरदान था कि वह आग में नहीं जलेगी, की गोद में प्रहलाद को बैठाकर मारना चाहा, लेकिन होलिका जल गई और प्रहलाद बच गए। इसके बाद यहां का नाम हरदोई हो गया। अंग्रेजों के शासन काल में जिला मुख्यालय मल्लावां हुआ करता था, जो अब हरदोई में है।

राजधानी लखनऊ से हरदोई की सीमा सटी हुई है। इसलिए राजनीतिक क्षेत्र के लिहाज से यह जिला बेहद अहम है। यहां कुल आठ विधानसभा हैं, जो दो संसदीय क्षेत्र में शामिल हैं। हरदोई सदर में पांच विधानसभा क्षेत्र और मिश्रिख लोकसभा सीट के अंतर्गत तीन विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। हरदोई सदर लोकसभा सीट की बात करें तो यह आजादी के बाद से आज तक अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व है। यह सीट कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी। इस सीट पर छह बार कांग्रेस, तीन बार समाजवादी पार्टी (सपा) और चार बार भारतीय जनता पार्टी (BJP) जीती है। जनसंघ प्रत्याशी ने भी इस सीट पर जीत दर्ज की थी। लखनऊ मंडल के तहत आने वाले हरदोई जिले की सीमा उत्तर में शाहजहांपुर और लखीमपुर खीरी, लखनऊ, तो दक्षिण में उन्नाव, पश्चिम में कानपुर और फर्रुखाबाद से जुड़ी हुई है तो पूर्व की ओर गोमती नदी जिले को सीतापुर से अलग करती है। हरदोई जिले में आठ विधानसभा सीटें आती हैं जिसमें हरदोई सदर लोकसभा सीट के तहत पांच विधानसभा सीटें जिसमें सवायजपुर, शाहाबाद, हरदोई सदर, गोपामऊ (एससी) और सांडी (एससी) सीट शामिल हैं। इन सभी पांचों सीट पर बीजेपी का कब्जा है। तीन सीटें मिश्रिख लोकसभा क्षेत्र में पड़ती हैं।

पिछले तीन दशकों से यहां पर बीजेपी नेता नरेश अग्रवाल और उनके खानदान का दबदबा है। हरदोई सदर विधानसभा सीट पर अधिकतर उनके परिवार का ही कब्जा रहा है। इस सीट पर एक बार उनके पिता श्रीशचंद अग्रवाल, सात बार नरेश और चार बार उनके पुत्र नितिन, जो वर्तमान में आबकारी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) हैं, जीत चुके हैं। हरदोई लोकसभा सीट एक बार नरेश अग्रवाल की बनाई लोकतांत्रिक कांग्रेस के खाते में भी जा चुकी है। नरेश की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि लहर किसी भी पार्टी की हो, लेकिन उन्होंने जिस प्रत्याशी को जिताने की ठानी उसको जिताकर कर ही दम लिया। नरेश अग्रवाल के लिए कहा जाता है कि वह सत्ता से दूर नहीं रह सकते, इसलिए वह हर दल में रह चुके हैं और अब बीजेपी में हैं।

छेदालाल बने थे पहले सांसद

साल 1952 में हुए चुनाव में कांग्रेस के छेदालाल गुप्ता पहली बार चुने गए थे। वर्ष 1957 में जनसंघ ने इस सीट पर कब्जा जमाया। 1957 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने फिर कब्जा जमाया और छेदालाल ने जीत दर्ज की। इसके बाद 1062,1967 और 1971 में कांग्रेस के किदर लाल ने हैट्रिक लगाई। 1977 में जनता पार्टी के परमाई लाल ने जीत जीत दर्ज की। 1980 कांग्रेस के मन्नीलाल और 1984 में कांग्रेस के किदर लाल जीते। 1989 में यहां जनता दल के परमाई लाल और 1990 में जनता दल के ही चौधरी चांदराम जीते। 1991 में BJP ने पहली बार यहां से जीत हासिल की और जयप्रकाश रावत संसद पहुंचे। 1996 में भी जयप्रकाश भाजपा प्रत्याशी के रूप में विजयी हुए। 1998 में सपा का उदय हुआ और पार्टी प्रत्याशी ऊषा वर्मा पहली बार सांसद चुनी गईं। 1999 में लोकतांत्रिक कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में जयप्रकाश रावत ने जीत दर्ज की। 2004 और 2009 में सपा की ऊषा वर्मा ने जीत दर्ज की। 2014 में बीजेपी ने अंशुल वर्मा को इस सीट से उतारा और शानदार जीत दर्ज की। 2019 में बीजेपी ने सिटिंग सांसद अंशुल वर्मा का टिकट काटकर जयप्रकाश रावत पर दांव लगाया और यह सफल रहा और जयप्रकाश ने जीत दर्ज की।

वर्तमान में भाजपा के जयप्रकाश रावत हैं सांसद

जयप्रकाश ने हरदोई से पहला चुनाव 1991 में भाजपा के टिकट पर लड़ा था और जीत दर्ज करते हुए इस सीट पर पहली बात पार्टी का झंडा लहराया था। 1996 में वे दोबारा BJP के टिकट पर लड़े और शानदार जीत दर्ज की। 1998 में वे सपा की ऊषा वर्मा से हार गए लेकिन 1999 में वे नरेश अग्रवाल की लोकतांत्रिक कांग्रेस से लड़े और जीत दर्ज की। 2019 में भाजपा ने उन्हें अपने सिटिग सांसद अंशुल वर्मा का टिकट काटकर उन्हें लड़ाया और उन्होंने जीत हासिल की।

इसलिए इस सीट पर मजबूत है बीजेपी

हरदोई लोकसभा में जिले की पांच विधानसभा क्षेत्र सवायजपुर, शाहाबाद,हरदोई सदर, गोपामऊ (सुरक्षित) व सांडी (सुरक्षित) आते हैं। इस सभी सीटों पर बीजेपी का कब्जा है। वहीं, नरेश अग्रवाल भी इस बार बीजेपी खेमे में हैं। लेकिन अब देखने वाली बात यह होगी कि पार्टी जयप्रकाश रावत को फिर मौका देगी या किसी अन्य पर दांव खेलेगी। पूर्व सांसद अंशुल वर्मा जिनका टिकट 2019 में बीजेपी ने काट दिया था और तब वे सपा में चले गए थे, उन्होंने ने भी घर वापसी कर ली है। वह भी इस सीट से दावेदारी करेंगे। इसके अलावा भी कई नेता टिकट की रेस में हैं।

बड़ी रोचक रही है हरदोई की लड़ाई

2019 के लोकसभा चुनाव में हरदोई सदर सीट के परिणाम को देखें तो तब यहां पर बीजेपी के जय प्रकाश और सपा की उषा वर्मा के बीच मुकाबला हुआ था। इस चुनाव में सपा और बसपा के बीच चुनावी गठबंधन था और समझौते के तहत यह सीट SP के खाते में आई। हालांकि गठबंधन को चुनाव में फायदा नहीं मिला। जय प्रकाश को 568,143 वोट मिले तो उषा वर्मा के खाते में 435,669 वोट आए। जय प्रकाश ने 132,474 मतों के अंतर से यह चुनाव अपने नाम किया था। तब हरदोई संसदीय सीट पर कुल वोटर्स की संख्या 17,75,274 थी जिसमें पुरुषों की संख्या 9,66,959 थी तो महिलाओं की संख्या 8,08,261 थी। इसमें से कुल 10,57,558 वोटर्स ने वोट डाले। चुनाव में नोटा के खाते में 11,024 वोट आए थे।

हरदोई सीट का संसदीय इतिहास

अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व इस सीट के राजनीतिक इतिहास को देखें तो कभी यहां पर कांग्रेस का कब्जा हुआ करता था, लेकिन अब उसे 40 साल से यहां पर अपनी पहली जीत का इंतजार है। 1990 के दशक के बाद हरदोई सीट पर बीजेपी और सपा का दबदबा रहा है। 1952 के चुनाव में कांग्रेस के छेदा लाल पहली बार यहां से सांसद चुने गए थे। लेकिन 1957 में जनसंघ के डी शिवादीन ने कब्जा जमाया। हालांकि इसी साल हुए उपचुनाव में कांग्रेस के छेदालाल ने फिर जीत हासिल की। फिर 1962, 1967 और 1971 में भी कांग्रेस के पास ही सीट रही और किदर लाल ने जीत की हैट्रिक लगाई। इमरजेंसी के बाद 1977 में कराए गए चुनाव में जनता पार्टी के परमाई लाल के खाते में जीत गई। 1980 कांग्रेस के टिकट पर मन्नीलाल तो 1984 में किदर लाल चुनाव जीत गए।

साल 1989 में जनता दल के परमाई लाल दूसरी बार विजयी हुए। 1990 के यहां पर उपचुनाव कराया गया जिसमें जनता दल के टिकट पर चौधरी चांद राम को जीत मिली। 1991 में भारतीय जनता पार्टी ने यहां से अपनी जीत का खाता खोला। जयप्रकाश रावत सांसद बने। 1996 में भी जयप्रकाश रावत ही विजयी हुए। लेकिन 1998 के चुनाव में समाजवादी पार्टी की उषा वर्मा ने साइकिल का खाता खुलवा दिया। 1999 में नरेश अग्रवाल की पार्टी अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में जयप्रकाश रावत मैदान में उतरे और विजयी हुए। फिर 2००4 और 2००9 के संसदीय चुनाव में ऊषा वर्मा ने समाजवादी पार्टी को जीत दिलाई।

हरदोई सीट का जातिगत समीकरण

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में देशभर में मोदी लहर की छाप दिखाई जिसका असर हरदोई सीट पर भी दिखा। बीजेपी के अंशुल वर्मा ने 2014 में शानदार जीत हासिल की। उन्होंने 81,343 मतों के अंतर से बसपा के शिव प्रसाद वर्मा को हराया। 2019 के आम चुनाव में बीजेपी ने सांसद अंशुल वर्मा का टिकट काट दिया। कभी बागी हुए जयप्रकाश रावत को बीजेपी ने फिर से मैदान में उतारा और उन्हें जीत मिली। लगातार जीत के लिहाज बीजेपी इस बार हैट्रिक लगाने के मूड में है। यह संसदीय सीट अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व सीट है। यहां पर पासी बिरादरी के वोटर्स चुनाव में अहम भूमिका निभाते हैं। इनके अलावा अगड़ी और पिछड़ी जातियों की भी पकड़ है। यहां की पिछड़ी जातियों में कुर्मी, गड़रिया, यादव और कहार बिरादरी भी अच्छी संख्या में हैं। फिलहाल यह क्षेत्र नरेश अग्रवाल और उनके परिवार के दबदबे की वजह से जाना जाता है। अब नरेश अग्रवाल बीजेपी के साथ हैं और उनके बेटे नितिन अग्रवाल योगी सरकार में मंत्री हैं।

यूपी की एक ऐसी सीट, जहां जीते चाहे कोई हारे चुनाव परिणाम गढ़ेगा सबके लिए रिकॉर्ड

इस बार भाजपा ने हरदोई से चार बार सांसद रहे जय प्रकाश को फिर मैदान में उतारा है तो सपा ने तीन बार सांसद और मंत्री तक रहीं ऊषा वर्मा को फिर प्रत्याशी बनाया। बसपा के पास कोई स्थानीय मजबूत चेहरा नहीं था तो उन्होंने इटावा से भीमराम अंबेडकर को भेजा। चेहरों के इस चुनाव में सभी प्रत्याशियों की प्रतिष्ठा दांव पर है। तीनों प्रत्याशियों में विजयी कोई हो, उसका रिकॉर्ड बनेगा। भाजपा की जीत होती तो जय प्रकाश पांचवीं बार सांसद होंगे। सपा के जीतने पर ऊषा वर्मा चार बार सांसद बनने वाली एक मात्र महिला होंगी। अगर बसपा की जीत पर भीमराम अंबेडकर पहले सांसद होंगे।

लोकसभा चुनाव का माहौल क्या है?

बावन मार्ग पर अस्पताल के बाहर चाय की दुकान पर बैठे संजय, सचिन और नीरज समझाते हैं कि भइया यहां पर चुनाव कभी मुद्दों पर नहीं हुआ। जब विकास दूर था तो भी इस पर बात नहीं होती थी और अब खूब हो चुका, तो भी कोई बात नहीं करता। रही बात चुनाव की तो नेता भले ही जाति का जाल बिछा रहे, लेकिन यह देश के मान और सम्मान का चुनाव है। बावन चौराहे पर योगेंद्र सिह राष्ट्रवाद पर लोगों से बहस कर रहे थे। बोले आप बताओ अगर मोदी में कोई दम नहीं है तो उनसे सब मिलकर क्यों लड़ रहे हैं। हर नेता मोदी का ही नाम क्यों ले रहा है। जगदीशपुर में रियाजुद्दीन और बालकराम यादव से चुनावी माहौल पर बात चले तो गठबंधन को मजबूत बताते हैं, लेकिन अपने आप ही बोल देते हैं कि पता नहीं क्या बात है कि जो भी आता एक बार मोदी का नाम जरूर लेता है।

उसी बीच बालेंद्र सिह तानाशाही की बात कहते हुए नाराजगी दिखाते हैं। लोनार थाने के सामने बैठे लोगों के बीच हाथी पर चर्चा होती दिखी। जानकी प्रसाद बोले कि बहनजी ने जो किया वह कौन कर सका। बरवन मार्ग पर बस के इंतजार में बैठी महिलाओं से चुनावी बात छिड़ी तो रेखा शुक्ला तपाक से बोलीं, कि दोपहरी में हम सब अकेले जा रहे हैं। जरा सा भी डर नहीं लग रहा। ऐसा कभी हुआ। सरकार और नेता ने किया तो कुछ नहीं, बस चुनाव में जाति जोड़ते घूम रहे हैं। सवायजपुर में राजेश्वर सिह मोदी को दमदार पीएम बता रहे थे। बोले, जानवरों ने फसल को बहुत नुकसान पहुंचाया, लेकिन पालने के बाद कुछ जिम्मेदारी हमारी भी है।

सीने में दर्द है लेकिन देश की बात पर सीना चौड़ा हो जाता है। सांडी में घटकना के पास मिले राजेश्वर पाल पीडीए की बात रखते हैं। कहते हैं कि इसके बारे में जो बोलता वही हमारा। वर्ष 2०19 के चुनाव में सपा और बसपा के बीच गठबंधन प्रत्याशी ऊषा वर्मा ने चार लाख 35 हजार 669 मत हासिल किए थे। जबकि कांग्रेस को मात्र 19 हजार 972 वोट मिले थे।

इस बार बसपा अलग से चुनाव लड़ रही है और सपा का गठबंधन कांग्रेस से है। जबकि पहले ही तरह भाजपा इस बार भी अपनी दम पर चुनाव मैदान में है। भाजपा प्रत्याशी 1991 और 1996 में भाजपा से चुनाव जीते थे तो 1999 में लोकतांत्रिक कांग्रेस से भी विजय श्री हासिल कर 2०19 में भाजपा से फिर सांसद बने। सपा प्रत्याशी ऊषा वर्मा 1998 में पहली बार सांसद बनीं फिर 2००4 और 2००9 में जीतीं, जिसके बाद 2०14 में तीसरे स्थान पर पहुंच गईं। 2०19 में बसपा का साथ होने के बाद भी करीब एक लाख 32 हजार मतों से पराजित हुईं। सपा से पारिवारिक रिश्तों से वर्ष 2०22 में उन्होंने सांडी विधान सभा से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गईं। तीन बार लोक सभा और विधान सभा चुनाव हारने के बाद 2०24 का चुनाव उनके लिए प्रतिष्ठा का विषय है। बसपा के लिए तो यह सीट हमेशा प्रतिष्ठा की रही।

खुद को ही वोट नहीं दे पाएंगे मिश्रिख और हरदोई के बसपा प्रत्याशी

हरदोई और मिश्रिख लोकसभा क्षेत्र से इस बार बहुजन समाज पार्टी ने बाहरी प्रत्याशियों पर दांव लगाया है। यही वजह है कि लोकसभा चुनाव में बसपा के दोनों प्रत्याशी जनता से तो खुद को समर्थन देने की अपील करेंगे, लेकिन दोनों ही प्रत्याशी खुद को वोट नहीं दे पाएंगे। हरदोई लोकसभा क्षेत्र से बसपा ने लखनऊ और फैजाबाद मंडल के प्रभारी भीमराव आंबेडकर को प्रत्याशी बनाया है। उन्होंने नामांकन भी दाखिल कर दिया है। नामांकन पत्र के साथ दिए गए शपथ पत्र के मुताबिक भीमराव आंबेडकर इटावा जनपद के मतदाता हैं और वहीं की मतदाता सूची में उनका नाम दर्ज है। मतलब यह कि वह यहां चुनावी घमासान तो करेंगे, लेकिन खुद को वोट नहीं दे पाएंगे। कुछ इसी तरह मिश्रिख से बसपा प्रत्याशी सेवानिवृत्त डीएफओ बीआर अहिरवार भी अपने लिए समर्थन जुटाने की कोशिश करेंगे, लेकिन खुद को वोट नहीं दे पाएंगे। नामांकन पत्र के साथ दाखिल किए गए हलफनामे के मुताबिक बीआर अहिरवार बिठूर विधानसभा क्षेत्र के मतदाता हैं। दरअसल लोकसभा चुनाव की घोषणा होने के बाद से ही दोनों सीटों पर प्रत्याशियों की तलाश बसपा तेजी से कर रही थी। बाद में पार्टी ने निर्णय लिया कि कैडर के लोगों को ही चुनाव मैदान में उतारा जाएगा और यही वजह रही कि पार्टी को यहां से बाहरी प्रत्याशी उतारने पड़े।

यूपी का अनोखा प्रत्याशी, 16 बार मिल चुकी है हार फिर भी 17वीं बार मैदान में

यूपी के हरदोई जिले में 16 बार चुनाव लड़कर हारने का रिकॉर्ड बना चुके शिवकुमार अब 17वीं बार मैदान में हैं। गुरुवार को शिवकुमार ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में अपना पर्चा दाखिल किया। उन्होंने हरदोई सीट से लोकसभा प्रत्याशी के रूप में अपना नामांकन दाखिल किया है। उनका कहना है कि जनता उनको हर बार बढ़कर मत देती है, उनका सम्मान रखती हैष अगर मौका दिया तो जनता के लिए बहुत कुछ करेंगे। शहर कोतवाली क्षेत्र के मन्नापुरवा के रहने वाले शिव कुमार का कहना है कि वह हारने के बाद भी चुनाव लड़ते रहेंगे, क्योंकि जनता उनका सम्मान बरकरार रखती है।

किस चुनाव में कितनी बार प्रत्याशी बने

शिवकुमार ने कहा कि इस बार अगर वह जीतते हैं तो लोकसभा के लोगों की हर समस्या का समाधान कराएंगे। वह जनता के साथ खड़े रहेंगे। शिवकुमार ने प्रत्येक बार निर्दलीय होकर चुनाव लड़ा है। शिवकुमार अब तक तीन बार ग्राम प्रधान का चुनाव, तीन बार जिला पंचायत का चुनाव, सात विधानसभा चुनाव और अब तक चौथी बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। उनका कहना है कि उनके मुद्दे क्या है अगर वह बता देंगे तो लोग नकल कर लेंगे।

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