कविता: इदमआशीर्वादमिति

कर्नल आदि शंकर मिश्र
कर्नल आदि शंकर मिश्र

प्रोत्साहन स्वरूप आशीर्वादमिति,

कल्पना तवास्तु शब्दमच ममिति।

स्वांत: सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा,

भाषा निबंधमति मंजुल मातनोति॥

 

गिर गिर कर भी जो उठ खड़ा हो,

वही इन्सान तो मज़बूत होता है,

ठोकरें खाकर भी संभल जाये,

वही व्यक्ति दृढ़ प्रतिज्ञ होता है।

 

यही श्रीमदभगवद्गीता

का ज्ञान कहता है,

त्रेता के श्री राम सीता

का जीवन कहता है।

 

गाँधी का भारत और

बुद्ध का ज्ञान कहता है,

आदित्य जीवन संघर्ष

का एहसास कहता है।

 

ग़ैर जब मुसीबत में हों तो उसका

का आनंद कभी नही लेना चाहिए,

ईश्वर यदि हमें भी वही भेंट कर दे,

तब उसे नहीं स्वयं को ही दोष दें ।

 

क्योंकि ऊपरवाला हमेशा वही

देता है जिसमे हम खुश रहते हैं,

इसीलिये सच्चे लोग ग़ैरों के दुख

में दुःखी व सुख से सुखी होते हैं।

 

ज़्यादातर ख़ामोश रहना भी किसी

सवाल का माकूल जवाब होता है,

आदित्य हँसकर प्रतिक्रिया दे देना,

भी बेहतरीन वातावरण बना देता है।

 

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