कहते हैं ‘संघर्ष ही तो जीवन है’,
जिसमें भावना नहीं, वह मृत है,
जो हार मान कर चुप हो जाये,
जीवन गतिविधि ठप हो जाये।
ऐसा जीवन मृत प्राय सरिस है,
जिसके अंतर्मन में द्वंद्व नहीं हो,
वह मानव बस जीवित पत्थर है,
जिसमें जिज्ञासा का भाव नहीं हो।
कविताओं के पेजों को हर दिन
सुरुचि पूर्णता से पढ़कर पलटा है,
अपने भाई को प्रोत्साहन देकर,
भाई ने अपनी ख़ुशियाँ बख्शा है।
जीवन की ऐसी आपा धापी में,
कुछ रचनायें यदि लिख पाता हूँ,
सोच और जिज्ञासा को साक्षर,
तब अपने ढंग से मैं कर पाता हूँ।
आशीर्वाद बड़ों का सप्रेम ऐसे ही
आदित्य कवि को मिलता जाये,
जीवन दर्शन की मौलिक रचनाएँ,
आजीवन यूँ ही निर्मित करता जाये।