कितने रावण आज जलेंगे,
कितनी बाहें आज कटेंगी,
किस लंका को आग लगेगी,
गली गली रावण जलते हैं,
हर गाँव शहर लंका जलती है,
इतने रावण कहाँ से आये,
इतने राम कहाँ से लाऊँ ।
नशा कर रहा बच्चा, बूढ़ा,
रावण बन कर हर वो दौड़ा,
गली गली में खुले हैं ठेके,
हर दुकान में बिकती पुड़िया,
खाकर पीकर राक्षस हैं बनते,
चप्पे चप्पे रावण दिखते,
इतने राम कहाँ से लाऊँ।
नफरत का हर धँधा फैला,
ईर्ष्या द्वेष असर दिखलाता,
गाय हमारी है हिन्दू माता,
बकरा मुसलमान कहलाता।
उनके दुश्मन बनकर लड़ते,
लाठी डण्डे उन्हें चलाऊँ,
इतने राम कहाँ से लाऊँ।
मंदिर में हिंदू हैं मिलते
मस्जिद में मुस्लिम हैं जाते,
ठेके पर जा करके देखो,
तब जाकर इंसान हैं मिलते,
पर वही वहाँ पर नशा हैं करते,
इंसानो! क्या नशा दिखाऊँ,
इतने राम कहाँ से लाऊँ।
सूखे मेवे तो हैं महँगे लगते,
स्मैक, चरस हैं सस्ते लगते,
महँगाई को वो हरदम रोते,
व्हिस्की, ठर्रा, देशी, अंग्रेज़ी,
एकाधिकार करके हैं बैठी,
पी पीकर शैतान बना हूँ,
इतने राम कहाँ से लाऊँ।
यत्र नार्यस्तु पूज्यंते,
रमन्ते तत्र देवता ,
स्त्रियाँ पति को स्वामी हैं कहतीं,
करवा चौथ आदि वृत करतीं,
आओ पुरुषों नशावृत कर लूँ,
नशा रूपी रावण को जलाऊँ,
आदित्य आओ श्रीराम बन जाऊँ।