कविता : हाँ, तुम मुझे जला न पाओगे

कर्नल आदि शंकर मिश्र
कर्नल आदि शंकर मिश्र

भारत वर्ष की धरती के लोगों,
हाँ ! तुम मुझे जला न पाओगे,
मैं रावण, जलने को तैयार नहीं हूँ,
श्रीराम की स्वीकृति न ले पाओगे।

घरों के अंदर बैठकर पहले अंदर
पाल रखी उस प्रवृत्ति को जलाओ,
जो काम, क्रोध, अहंकार से भरी है,
लोभ, मोह, मद, ईर्ष्या,घृणा भरी है।

शराब, अफ़ीम, चर्स, स्मैक, गुटका,
देशी, अंग्रेज़ी और न जाने क्या क्या,
आज का रावण नशे में मदमस्त है,
नशे रूपी रावण को करिये ध्वस्त है।

मैं महाबली विख्यात पांडित्य पूर्ण
तीनों लोकों का विजेता रावण हूँ,
मुझे जलाने से पहले क्या स्वयं को,
श्री राम बन करके दिखा पाओगे?

रावण की भूमिका में तुम्हीं सब हो,
रावण संहार के पूर्व श्रीराम तो बनो,
सीता अशोक वाटिका में सुरक्षित थीं,
आज उन्हें घर के अंदर सुरक्षित करो।

कभी दहेज के लिए जला दी जाती हैं,
हवस की शिकार बना ली जाती हैं,
परायी ही नहीं, अपनी बहन बेटी भी,
आज रावण से कहीं सुरक्षित नहीं हैं।

श्री राम के हाथों मोक्ष पाने के लिये
मैने त्रेता में सीता का हरण किया था,
मुझे श्री राम के हाथों मृत्यु मिली थी,
और मुझ! रावण को सद्गति मिली थी।

आदित्य रावण ने अहंकार किया था,
उसने पाप बिलकुल नहीं किया था,
आज रावण जिस पाप का भागी है,
संबिधान में उसकी सजा फाँसी है।

 

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