एक बार पुत्र श्री गणेश जी
पिता श्री शिव जी से बोले,
भस्म लगाये, मुंडमाल डाले,
अच्छे नहीं लगते शंकर भोले।
माता गौरी तो हैं अपूर्व सुंदर,
उनके साथ यह रूप भयंकर,
कृपया एक बार आप अपना
भी धारण करें स्वरूप सुंदर।
वास्तविक स्वरूप जो आपका
हम सब शिव भक्त देख सकें,
शिवजी गणेश की इच्छा मान
स्वयं मन ही मन मुस्कुराने लगे।
अपने कक्ष में जाकर शिव जी
सद्यःस्नान के बाद वापस आये,
बिखरी जटाएँ सँवार कर आये,
न मुंडमाल थी न थे भस्म रमाये।
देवी देव यक्ष गन्धर्व और शिवगण
अपलक स्वरूप शिव देखते रह गये,
वह शिव स्वरूप इतना सुंदर था कि
मोहिनी रूप श्रीहरि भी फीके पड़ गये।
शिव शंकर ने अपना सुंदर मनमोहक
स्वरूप यह कभी न प्रकट किया था,
उनका ऐसा अतुलनीय स्वरूप करोड़ों
कामदेवों को भी मलिन कर रहा था।
श्री गणेश स्तब्ध रह गए ऐसे सुंदर
मनमोहक पिता शिव को देखकर,
मस्तक झुकाकर व क्षमा माँग कर,
बोले पूर्व रूप धरने की प्रार्थना कर।
शिव शंकर समझ गए कि अपनी माता
सा सुंदर श्रीगणेश और को न देख सके,
बात पुत्र की मान कर शिवशंकर पुन:
शिवजी अपने रुद्र स्वरूप में लौट सके।
आज भी यही होता है यही होता आया है,
पिता रुद्र बनकर उत्तरदायित्व निभाता है,
परिवार का संरक्षण व मान सम्मान का
ध्यान पिता को ही तो रखना पड़ता है।
माँ सौम्य सरल सुंदर प्यार व स्नेह देती है,
पिता की कठोरता का संतुलन बनाती है,
आदित्य इसीलिए हर माँ प्यार दुलार देने
वाली सुंदरता का स्वरूप कहलाती है।