किया है तो बस निभाने का शौक़ है

कर्नल आदि शंकर मिश्र
कर्नल आदि शंकर मिश्र

दूर क्या हुये हमसे हम को भूल गये,
हमें तो उन्हें याद रखने का शौक़ है,
किसी से वादा तो नहीं किया मैंने,
किया है तो बस निभाने का शौक़ है।

चापलूसी करने से स्वर्ग मिल जाये
तो आज ही सबके सब स्वर्ग चले जायँ,
स्वाभिमान की किसे चिंता है जमाने में,
अभिमान में मस्त हैं, जायँ तो कहाँ जायँ।

कविता : बोया पेंड़ बबूल का आम कहाँ से होय

मानव शरीर सारी गन्दगी का आकर है,
उसी शरीर में मन पवित्र रखना पड़ता है,
परंतु मन शरीर के लिए पागल होता है,
और शरीर अंत में मन को धोखा देता है।

जब समुद्री तूफ़ान आता है तो
सागर सारी मर्यादाएँ तोड़ देता है,
किनारे छोड़ देता है या तोड़ देता है,
कुछ डुबो लेता है या बाहर फेंक देता है।

कविता :  सब ठीक है कहना चाहिए

पर सज्जन व्यक्ति विपत्ति आने पर
भी अपनी कोई मर्यादा नहीं छोड़ते हैं,
अपना चरित्र व चारित्रिक उदारता
का कभी भी परित्याग नहीं करते हैं।

     मन में तनाव होने से केवल समस्याएँ
और विपत्तियाँ ही जन्म ले सकती हैं
समाधान खोजना हैं, तो तनाव त्याग
कर मुस्कुराने की ही ज़रूरत पड़ती है।

ईश्वर सबको एक ही तत्व से बनाता है,
आदित्य फर्क मात्र इतना होता है कि,
कोई कोई बाहर से ख़ूबसूरत होता है,
तो कोई अंदर से भी ख़ूबसूरत होता है।

 

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