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- योगी की असल परीक्षा उनके घर में, बस्ती, आज़मगढ़, अम्बेडकरनगर, मऊ और ग़ाज़ीपुर में बीजेपी को जिताना बड़ी चुनौती
काम नहीं आ रहा विकास का अलाप, - रंग लाएगी बहुलता इलाके की एक जुटता पहल
- एकता देख महागठबंधन की जगी उम्मीद, कई सीटों पर मन सकता है जीत का जश्न
ए अहमद सौदागर
लखनऊ। अभी कुछ दिनों पहले की ही बात है। सूबे में विधानसभा चुनाव हो रहे थे, बीजेपी के ख़िलाफ़ स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान और ओमप्रकाश राजभर सरीखे कई नेता प्रचार कर रहे थे। लेकिन योगी के क़ानून-व्यवस्था की ऐसी आंधी बही कि रिकार्ड सीटों के साथ वो दूसरी बार सूबे के मुख्यमंत्री बने। लेकिन इस आंधी के बीच भी पूर्वांचल की कई सीटों और दो ज़िलों में एक भी बीजेपी सीट नहीं निकाल सकी। वो ज़िला है- आज़मगढ़ और अम्बेडकरनगर। यहाँ से एक भी सीट भाजपा को मयस्सर नहीं हुई।बताते चलें कि साल 2017 में जब योगी आदित्यनाथ यूपी के सीएम बने थे, तब भी भाजपा ने 403 सीटों में 325 सीटों पर फ़तह किया था।
इस बार चुनाव थोड़ा सा अलग है। साल 2014 की तरह मोदी ब्रांड नहीं चल रहा है। वर्ष 2019 की तरह मोदी लहर नहीं बह रही है। हां, मोदी गारंटी ज़रूर चला रहे हैं, लेकिन पूरब की ज़मीन पर चलती नहीं दिख रही है। महागठबंधन के करीब सभी प्रत्याशियों एवं कार्यकर्ताओं में उत्साह है, लेकिन ‘अबकी बार फिर चार सौ पार’ का नारा सुनते ही जहां एक ओर विपक्षी दलों में खलबली मची हुई है। वहीं निजी चैनलों के चिल्ल-पों सुनकर महागठबंधन के नेताओं के दिलों में तसल्ली है कि वे चुनाव जीत रहे हैं।
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चुनाव के बीच “चुनावी प्रक्रिया” पर बेवजह संदेह पैदा करना ठीक नहीं
पूर्वांचल में घोसी लोकसभा क्षेत्र की बात करें तो अधिकतर मतदाता भाजपा को नकारती नजर आ रहे हैं, गाजीपुर, बलिया, आजमगढ़ व मऊ का भी यही हाल नज़र आ रहा है। बहुलता और एकजुटता की चर्चाओं ने विपक्षी दलों की चिंता कम की है। 80 सीटों वाले राज्य में पूर्वांचल की सीटें अहम मानी जाती है कि यहां कई ऐसे नाम हैं जो जातीय समीकरण पर भरोसा रखते हैं।घोसी लोकसभा क्षेत्र में किन्नर समाज भी भाजपा के खिलाफ मैदान में उतरकर बोल रहा है कि अबकी बार वे खुलकर गठबंधन का प्रचार-प्रसार करेंगे।
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घोसी से विधानसभा का उपचुनाव हारकर भी एमएलसी फिर कैबिनेट मंत्री बनने वाले दारा सिंह की क्षेत्र में पकड़ बिल्कुल कमजोर पड़ गई है। कांग्रेस से सपा, सपा से बसपा, बसपा से भाजपा, भाजपा से दूसरी बार सपा और अब एक बार फिर भाजपा में वापस लौटने के बाद दारा सिंह चौहान पर दल-बदल की राजनीति का बड़ा ठप्पा जनता से चस्पा कर दिया है। दारा ने घोसी चुनाव में हार के पहले पत्रकारों से कहा था कि जनता का समर्थन तब भी मिल रहा था, अब भी मिल रहा है। घोसी की जनता नाराज़ नहीं है और सभी कार्यकर्ता खुश हैं। पूरी पार्टी के लोग खुश हैं। आम जनता खुश है। लेकिन खुश इतनी हुई कि उन्हें विधानसभा के उपचुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा।
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कुछ ऐसा ही हाल पीले गमछाधारी और योगी सरकार के पंचायती राज मंत्री ओम प्रकाश राजभर का है। साल दो साल पहले की बात करें तो सुहेलदेव भारतीय समाज के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर सीना तान खड़े होकर विधानसभा चुनाव में खड़े हुए। लेकिन पलड़ा भारी देख लोकसभा चुनाव से पहले ही भाजपा का दामन थाम लिया और पूर्वांचल के राजभर बिरादरी के मतदाताओं को अपने पाले में लेने का ठेका ले लिया। ओमप्रकाश राजभर का दल-बदलू रवैया देख फिलहाल पूर्वांचल के राजभर बिरादरी ख़ासा नाराज दिख रही है और कहते फिरते हैं कि वह तो मौसम विज्ञानी हो गया है। अपनी बिरादरी में ही लगातार उपेक्षित हो रहे राजभर की ज़ुबान भी अब लगातार फिसल रही है। वो कुछ भी अनाप-शनाप बयानबाज़ी कर रहे हैं। ओम प्रकाश राजभर के यादवों के ख़िलाफ़ विवादित बयान और साल 2022 में सपा के साथ रहते हुए दिए गए उनके योगी और मोदी विरोधी बयानों को लोगों ने अभी भी दिल में बिठाया हुआ है। यानी दोनों तरफ़ के लोग राजभर से नाखुश हैं।
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योगी के जनाधार की भी होगी असल परीक्षा
पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान आज़मगढ़ और अम्बेडकरनगर में एक भी सीट न जीत पाने का मलाल योगी आदित्यनाथ को ज़रूर होगा। क्योंकि दोनों ही ज़िले उनके गोरखपुर ज़िले से सटे हुए हैं। ग़ौरतलब है कि आज़मगढ़ और अम्बेडकरनगर की सीमाएँ गोरखपुर ज़िले की सीमा से सटी हुई हैं। ऐसे में अगर पूरे पूर्वांचल से बीजेपी को शिकस्त मिली तो योगी की छवि को भी करारा धक्का लगेगा। टिकट रिपीट होने के कारण बस्ती से हरीश द्विवेदी और डुमरियागंज से जगदम्बिका पाल को भी हार मिलती दिखाई दे रही है। बताते चलें कि मोदी-योगी लहर के बावजूद साल 2022 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के महेंद्र यादव (बस्ती सदर), राजेंद्र चौधरी (रूधौली), कवींद्र चौधरी (कप्तानगंज) और दूधराम (महादेवा) से जीत गए थे। सवाल उठता है कि जिस सांसद के क्षेत्र की पाँच विधानसभा सीट से चार में हार मिली हो तो उसे लोकसभा में जीत कैसे मिल सकती है?
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आज़मगढ़ को सपा ने बनाया गढ़
सैफ़ई के बाद आजमगढ़ को भी समाजवादी पार्टी का गढ़ कहा जाता है। सपा यहीं से पूर्वांचल की दिशा तय करती है। इस बार सपा ने धमेंद्र यादव को फिर प्रत्याशी घोषित कर दिया है। पिछली बार हुए उपचुनाव में सपा मुखिया के चचेरे भाई और तीन बार के पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव को भोजपुरी स्टार दिनेश लाल यादव यानी निरहुआ से हार का सामना करना पड़ा था। वह क़रीब साढ़े आठ हज़ार वोटों से चुनाव हार गए थे। बताते चलें कि मुलायम सिंह यादव की सरकार के दौरान साल 2004 में धर्मेद्र यादव पहली बार मैनपुरी से सांसद चुने गए थे। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में बदायूं लोकसभा सीट से धर्मेंद्र दूसरी बार सांसद बने। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में ज़बरदस्त मोदी लहर के बीच उन्होंने बदायूं से जीत हासिल की। लेकिन 2019 में स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी डा. संघमित्रा मौर्य (बीजेपी) से वो चुनाव हार गए। तब से वो अपने लिए जीत तलाश रहे हैं।
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अम्बेडकरनगर में कुर्मी पड़ सकते हैं भारी
बसपा से निकलकर बीजेपी टीम में शामिल हो चुके रितेश पांडेय भले ही वहाँ से लोकल ब्वॉय हों और रसूखदार भी हों, लेकिन सपा ने लालजी वर्मा को मैदान में उतारकर उनके रास्ते में काँटों का जाल बिछा दिया। कभी बसपा में मायावती के करीबी नेता रहे लालजी वर्मा सपा की साइकिल पर सवार होकर संसद पहुँचना चाह रहे हैं। कुर्मी बिरादरी से ताल्लुक़ रखने वाले लालजी का जनाधार और भी बिरादरी में है। साथ ही कभी बसपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे रामअचल राजभर भी उनके साथ साइकिल पर सवार हैं और उनके लिए वोट माँग रहे हैं, ऐसे में वहाँ से भी भाजपा की जीत बड़ी मुश्किल लग रही है।
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मंगलसूत्र की बात से भड़क रहीं महिलाएँ…
वैसे तो बिजली घरों को रोशन करती रही है, लेकिन सियासत से जुड़ जाए तो ऐसा करंट पैदा करती है कि चुनावी नैया पार लगाने की मजबूत पतवार तक बन जाती है। अब इस बार लोकसभा चुनाव रण में देखें तो कोई महिलाओं के मंगल सूत्र गायब होने की बात कह रहा है तो कोई देश प्रदेश में भरपूर विकास का ढेर लगाने अलाप कर रहा है। हालात को भांपते हुए किसानों को बिजली मुफ्त देने के वायदे कर रहा है। वहीं देश व प्रदेश की सियासत में मंगल सूत्र अब एक अहम मुद्दा बन चुका है। पहली बार महिलाओं के मंगल सूत्र चुनावी मुद्दा बनी और सियासत में उसका करंट अब तक दौड़ रहा है।
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