कविता : पुरुष को सजाया स्वयं प्रकृति ने,

कर्नल आदि शंकर मिश्र
कर्नल आदि शंकर मिश्र

पुरुष को सजाया स्वयं प्रकृति ने,
स्त्रियाँ तो काँच का टुकड़ा होती हैं,
शृंगार की चमक पड़ने पर ही वे
सुंदर और खूबसूरत दिखती हैं।

परंतु पुरुष वह हीरा होता है,
जो अँधेरे में भी चमकता है,
उसे शृंगार करने की कभी भी
कोई आवश्यकता नहीं होती है।

खूबसूरत मोर होता, मोरनी नहीं
मोर रंग-बिरंगा और हरे-नीले
रंग से सुंदर सुशोभित होता है,
पर मोरनी काली सफ़ेद होती है।

मोर के पंख होते हैं इसीलिए
उसके पंख मोरपंख कहलाते हैं,
मोरनीपंख नहीं कहते हैं क्योकि
किसी मोरनी के पंख नहीं होते हैं ।

भीड़ बचपन से ही बच्चों को पकड़ लेती है और उसे कौवा बनाने लगती है,

हाथी के दाँत होते, मादा के नहीं,
हांथी के दांत बेशकीमती होते हैं,
नर हाथी मादा हाथी के मुकाबले
देखने में बहुत खूबसूरत होते हैं।

कस्तूरी नर हिरन में पायी जाती है,
मादा हिरन में नहीं पायी जाती है,
मादा हिरन भी तो नर हिरन के
मुकाबले सुन्दर नहीं होती है।

मणि नाग के पास ही होती है,
पर किसी नागिन के पास नहीं,
वह उस नाग की दीवानी होती है,
जिस नाग के पास मणि होती है।

रत्न महासागर में पाये जाते हैं,
नदियो में तो नहीं और अंत में
नदियों को उसी महासागर में
गिर कर मिल जाना पड़ता है।

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संसार के बेशकीमती तत्व इस
प्रकृति ने पुरुषों को ही सौंपे हैं,
प्रकृति ने पुरुष के साथ अन्याय
नहीं किया पूरा न्याय किया है।

नौ महीने माँ के गर्भ में रहने के
बावजूद भी औलाद का नाम व
ख्याति पिता के नाम से होना ही,
संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य है।

आदित्य पुरुष को स्त्रियों की तरह,
श्रृंगार करने की ज़रूरत नहीं है,
क्योंकि पुरुष का शृंगार प्रकृति
ने स्वयं ही ऊपर से करके भेजा है।

 

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