भीड़ बचपन से ही बच्चों को पकड़ लेती है और उसे कौवा बनाने लगती है,
मैंने सुना है, एक हंस जा रहा था उड़ता हुआ अपनी हंसनी के साथ, कि रात थक गया था, एक वृक्ष पर बसेरा किया,। कौवे का दिल आ गया उसकी हंसनी पर। स्वाभाविक। सोचा होगा कौवे ने: हेमामालिनी को कहां उड़ाए ले जा रहे हैं! बच्चू, अब बचकर निकल न सकोगे! कौओं का ही डेरा … Continue reading भीड़ बचपन से ही बच्चों को पकड़ लेती है और उसे कौवा बनाने लगती है,
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