अग्निपथ स्कीम को लेकर नेपाल में विरोध, क्या चीन की सेना में चले जाएंगे गोरखा?

अग्निपथ का विरोध क्यों कर रहा नेपाल?

क्यों नहीं हो पायी नेपाली गोरखाओं की भर्ती?

अग्निपथ से क्या चीन को मौका मिल गया?

नेपाल में चुनाव बाद क्या बदलेंगे हालात?

उमेश तिवारी

काठमांडू/नेपाल। आज़ादी के वक़्त भारत और ब्रिटेन के बीच गोरखा रेजिमेंट का बंटवारा हुआ। उस समय भारतीय सेना में ऐसी कुल 10 रेजिमेंट थीं। इनमें से 6 भारत के हिस्से आईं और तीन ब्रिटेन के। एक को डिसबैंड कर दिया गया। बाद में इंडियन आर्मी ने एक और गोरखा रेजिमेंट बना ली। पहले इन रेजिमेंट में 90 फीसदी जवान नेपाल के होते थे और भारतीय गोरखा केवल 10 फीसदी। धीरे-धीरे यह अनुपात बदला और आज भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंट में 60 प्रतिशत गोरखा नेपाल डोमेसाइल और 40 प्रतिशत इंडियन डोमेसाइल के होते हैं। अनुपात भले बदल गया, लेकिन आजादी के पहले से जो परंपरा चली आ रही थी वह लगातार जारी रही यानी नेपाली गोरखाओं का इंडियन आर्मी में आना। हालांकि, इस बार अग्निपथ स्कीम के चलते थोड़ी रुकावट जरूर आयी है। नेपाल में इस योजना का विरोध हो रहा है। इसी वजह से नेपाली गोरखाओं की भर्ती इस बार नहीं हो पा रही है। सेना ने नेपाल में भर्ती रैली का आयोजन किया था, लेकिन वहां की सरकार की ओर से इजाज़त नहीं मिली। नेपाल चाहता है कि भारतीय सेना में नेपाली गोरखा कम से कम उतने बरसों के लिए रहें, जितने में उन्हें पेंशन मिल सके। हालांकि नेपाल के लोगों को उम्मीद है कि उनके देश में चुनाव के बाद जब नई सरकार बनेगी, तो इसका हल निकल आएगा। लेकिन, तब तक तो भर्ती नहीं ही हो पाएगी। ऐसे में यह सवाल भी उठने लगे हैं कि अगर भारतीय सेना में नहीं, तो फिर कहां जाएंगे गोरखा? क्या वे चीन का रुख कर सकते हैं।

और चुनाव से इतनी उम्मीद क्यों?

नेपाल में रक्षा और विदेश मामलों के सीनियर जर्नलिस्ट परशुराम काफ्ले कहते हैं, ‘नेपाल में नवंबर में चुनाव हैं। इस वक़्त सत्ता में माओवादी हैं। गठबंधन की सरकार है और विपक्ष में हैं यूएमएल। दोनों ही कम्युनिस्ट पार्टी हैं। साथ ही, दोनों ही पार्टी अग्निपथ स्कीम के खिलाफ हैं। सत्ताधारी पार्टी इसे चुनाव में मुद्दा नहीं बनने देना चाहती, इसलिए भी अग्निपथ को लेकर कोई फैसला नहीं लिया गया है। काफ्ले के मुताबिक, नेपाल सरकार की तरफ से भारत को बता दिया गया है कि चुनाव के बाद ही कोई फैसला लिया जाएगा। साथ ही यह भी आश्वस्त किया गया है कि फैसला पॉजिटिव होगा। भारत सरकार की तरफ से भी कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई गई है।

क्या भारतीय सेना की भर्ती बंद करेगा नेपाल?

काफ्ले कहते हैं कि नेपाल का मूड भारतीय सेना में भर्ती बंद करने का नहीं है। लेकिन फैसला नई सरकार आने पर ही होगा। हो सकता है कि नई सरकार भारत से नेपाली गोरखा के लिए इस स्कीम के रिव्यू की मांग करे। फिर निगोसिएशन हो सकता है। यह भी एक संभावना हो सकती है कि नेपाल सरकार इसे लेकर कुछ न कहे, लेकिन नेपाली युवा चाहें तो भारतीय सेना का हिस्सा बन सकते हैं। भारतीय सेना उनके लिए भारत में ही भर्ती रैली आयोजित करे। हालांकि यह सब अभी चर्चाएं हैं।

क्या नेपाली गोरखा चीन की सेना में जा सकते हैं?

इस सवाल पर परशुराम काफ्ले ने कहा कि नेपाल में इस तरह की कोई भी बातचीत नहीं हो रही। न ही चीन की तरफ से ऐसा कोई संकेत आया है कि वह नेपाली गोरखाओं के लिए अपनी भर्ती खोलने की सोच रहा है। लेकिन, यह साफ़ है कि नेपाल का मूड भारतीय सेना में भर्ती बंद करने का कतई नहीं है। इस पूरे मामले पर सिक्योरिटी एक्सपर्ट मेजर जनरल अशोक कुमार (रिटायर्ड) कहते हैं कि यह नहीं लगता कि भारत अग्निपथ स्कीम को लेकर नेपाली गोरखा के लिए कोई अलग नियम बनाएगा। लेकिन यह हो सकता है कि जब तक नेपाल इसे लेकर फैसला नहीं लेता तब तक गोरखा की खाली जगहों पर दूसरों की भर्ती हो जाए। बाद में जब नेपाल फैसला ले लेगा तो पहले की कमी बाद में ज्यादा भर्ती कर पूरी की जा सकती है। चीन वाले सवाल पर मेजर जनरल अशोक कुमार ने कहा कि ड्रैगन जिस तरह नेपाल को भारत से दूर करने की हर संभव कोशिश कर रहा है।

उससे यह संभावना तो है ही कि नेपाल इस मौके को भी अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश कर सकता है। जहां तक नेपाल के युवाओं का चीन की सेना में जाने का सवाल है तो अभी ऐसा किसी की तरफ से कहा नहीं गया। हालांकि इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। अगर ऐसा हुआ भी तो एकदम कोई बड़ा बदलाव नहीं होगा। क्योंकि ऐसा तो होगा नहीं कि एक साथ नेपाल के सारे युवा चीन की सेना में जाने को तैयार हो जाएं। उन्होंने कहा कि नेपाल भौगोलिक स्थिति और इतिहास के हिसाब से भारत का अत्यंत करीबी है, लेकिन इकॉनमी भी एक अहम फैक्टर होता है। नेपाल में अभी बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो भारतीय सेना से रिटायर्ड हैं और उन्हें पेंशन मिलती है। यह भी भारत के साथ लगाव बने रहने की एक वजह है। जब आर्थिक हित पूरे नहीं होंगे, तो दूसरा देश यानी चीन उन्हें भड़काने की कोशिश कर सकता है।

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