राजेश श्रीवास्तव
उत्तर प्रदेश का बदायूं जिला। अपनी ऐतिहासिकता के साथ-साथ सूफी-संतों, औलियाओं, वलियों और पीरों की भूमि की वजह से मशहूर. प्रोफ़ेसर गोटी जॉन के अनुसार प्राचीन शिलालेखों में इस क्षेत्र का नाम ‘वेदामूथ’ था. वहीं जॉर्ज स्मिथ के अनुसार बदायूं जिले का नाम अहीर राजकुमार बुद्ध के नाम पर रखा गया था. यूपी की बदायूं लोकसभा सीट अपनी विविधता को लिए जानी जाती है. इसे भी समाजवादी पार्टी के गढ़ के रूप में माना जाता है. साल 2019 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने लंबे इंतजार के बाद जीत हासिल की थी, लेकिन इससे पहले इस सीट पर सपा का लगातार दबदबा रहा है.
आज से हजार साल पहले ही यह क्षेत्र ‘वेदामूथ’ हुआ करता था फिर यह क्षेत्र ‘भदाऊंलक’ के नाम से प्रसिद्ध हो गया. धीरे-धीरे ‘भदाऊंलक’ बदायूं हो गया. खास बात यह है कि महमूद गजनवी और मुहम्मद गौरी के समय भी इस क्षेत्र का नाम बदाऊं हुआ करता था. जबकि अकबर के समय आइने-अकबरी में भी इसे बदाऊं ही लिखा गया था. बाद में बदायूं नाम ही प्रचलन में आ गया. साल 1823 में अंग्रेजों ने जिले का मुख्य केंद्र सहसवान को बनाया लेकिन पांच साल बाद 1828 में बदायूं को मुख्यालय में बदल दिया गया.
2019 में परिणाम
बदायूं रुहेलखंड क्षेत्र में आता है. इस क्षेत्र में बदायूं के अलावा बरेली, पीलीभीत, शाहजहांपुर, मुरादाबाद, अमरोहा, संभल, रामपुर और बिजनौर जिले शामिल हैं. बदायूं संसदीय सीट के तहत छह विधानसभा सीटें आती हैं जिसमें बिसौली, बिल्सी, बदायूं, सहसवान, शेखुपुर और दातागंज शामिल हैं. 2022 के चुनाव में चार सीटों पर समाजवादी पार्टी का कब्जा हुआ तो दो सीटों पर BJP ने दबदबा बनाया.
बदायूं लोकसभा सीट पर 2019 के संसदीय चुनाव को देखें तो यह उन सीटों में शामिल रही है कि जहां बीजेपी ने SP के गढ़ से उसकी सीट छीन ली थी. स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी और बीजेपी प्रत्याशी संघमित्रा मौर्य ने सपा प्रत्याशी और सांसद धर्मेंद्र यादव को बेहद कड़े मुकाबले में हराया था. संघमित्रा मौर्य को चुनाव में 511,352 वोट मिले जबकि कड़ी चुनौती पेश करने वाले धर्मेंद्र यादव के खाते में 492,898 वोट आए. संघमित्रा 18,454 मतों से अंतर से चुनाव में जीत हासिल की थी. कांग्रेस के सलीम इकबाल शेरवानी तीसरे नंबर पर रहे.
बदायूं सीट का इतिहास
इस हाई प्रोफाइल सीट तब के चुनाव में वोटर्स ने ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया. यहां 50 फीसदी से भी कम वोट पड़े थे. बदायूं सीट पर कुल 21,99,914 वोटर्स थे जिसमें पुरुष वोटर्स की संख्या 11,99,584 थी, जिसमें महिला वोटर्स की संख्या 10,00,244 थी, इसमें से कुल 10,81,108 (49.5%) वोटर्स ने वोट डाले. नोटा के पक्ष में 8,606 (0.4%) वोट डाले गए.
सपा के गढ़ कहे जाने वाले बदायूं संसदीय सीट के इतिहास को देखें तो यहां पर 1952 में पहली बार चुनाव कराया गया जिसमें कांग्रेस को जीत मिली थी. 1957 में भी कांग्रेस के खाते में यह सीट गई थी. लेकिन 1962 और 1967 में भारतीय जन संघ को यहां पर जीत मिली थी. 2 चुनावों में हार के बाद कांग्रेस ने फिर वापसी की और 1971 में सीट अपने नाम कर लिया. लेकिन 1977 में हुए चुनाव में वह अपनी सीट नहीं बचा सकी. इमरजेंसी के बाद कराए गए इस चुनाव में कांग्रेस को शिकस्त मिली थी. तब भारतीय लोकदल विजयी हुआ था. हालांकि 198० और 1984 में कांग्रेस ने लगातार जीत दर्ज कराई.
साल 1989 के संसदीय चुनाव में जनता दल के नेता शरद यादव यहां से सांसद चुने गए थे. फिर 1991 में बीजेपी ने यहां से अपना खाता खोला. राम लहर के बीच कराए गए लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जीत मिली और स्वामी चिन्मयानन्द यहां से सांसद बने. हालांकि बीजेपी के लिए इस बदायूं सीट पर 2019 तक यह पहली और आखिरी जीत साबित हुई. 1996 से लेकर 2014 तक के हुए चुनाव में बदायूं सीट पर समाजवादी पार्टी का कब्जा बरकरार रहा है. 1984 में कांग्रेस के टिकट पर सांसद बने सलीम इकबाल शेरवानी समाजवादी पार्टी के टिकट पर 1996 से लेकर 2004 तक लगातार चार बार यहां पर विजयी हुए. सलीम इकबाल शेरवानी केंद्र में लंबे समय तक मंत्री रहे हैं.
2009 के चुनाव में समाजवादी पार्टी ने मुलायम सिह यादव के भतीजे धर्मेंद्र यादव को यहां से उतारा. तब धर्मेंद्र यादव ने बीएसपी उम्मीदवार डीपी यादव को हराया था. मुकाबाल कांटे का रहा था और हार-जीत का अंतर महज 32,542 वोटों का ही रहा. इस चुनाव में सलीम इकबाल शेरवानी कांग्रेस के टिकट पर लड़े और तीसरे स्थान पर रहे. 2014 के चुनाव में भी धर्मेंद्र यादव तब यह सीट बचाने में कामयाब रहे जब देश में मोदी लहर थी. धर्मेंद्र ने बीजेपी के वागिश पाठक 1,66,347 मतों के अंतर से हराया था. लेकिन 2019 में बीजेपी ने जबर्दस्त चुनाव प्रचार के दम पर सपा से यह सीट छीन ली. 2०14 की तरह 2019 में भी शेरवानी तीसरे नंबर पर रहे थे.
यादव-मुस्लिम वोटर्स की भूमिका अहम
बदायूं सीट पर यादव और मुस्लिम वोटर्स अहम भूमिका निभाते हैं, लेकिन 2019 में सपा का खेल बिगड़ गया था, और जीत बीजेपी को मिली थी. पिछली हार से सबक लेते हुए सपा इस बार मुस्लिम-यादव योजना के साथ-साथ पीडीए को भी साध रही है. तब के चुनाव में यहां पर यादव वोटर्स की संख्या 4 लाख के करीब थी. जबकि इतनी ही संख्या मुस्लिम वोटर्स की भी रही. ढाई लाख के करीब गैर यादव ओबीसी वोटर्स भी थे. वैश्य और ब्राह्मण वोटर्स के साथ-साथ अनुसूचित जाति के भी वोटर्स मजबूत स्थिति में हैं.
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इस क्षेत्र में अलाउद्दीन खिलजी के परिवार के बनवाए हुए कई मकबरे स्थित हैं. बताया जाता है कि अलाउद्दीन खिलजी ने अपना अंतिम समय बदायूं में ही गुजारा था. मुगल बादशाह अकबर के समय के लेखक अब्दुल कादिर बदायूंनी भी यहीं पर लंबे समय तक रहे. बदायूंनी का मकबरा बदायूं जिले का प्रसिद्ध स्मारकों में से एक माना जाता है. इमादुल्मुल्क की दरगाह (पिसनहारी का गुम्बद) भी यहां की पुराने इमारतों में शामिल है.
लोकसभा चुनाव 2024 का शेड्यूल जारी हो चुका है. 80 लोकसभा सीट वाले उत्तर प्रदेश की बदायूं लोकसभा सीट में सात मई को मतदान होना है. समाजवादी पार्टी ने इस सीट से शिवपाल यादव को टिकट दिया है. बीजेपी ने अब तक यहां उम्मीदवार का ऐलान नहीं किया है. संघमित्रा मौर्य इस सीट से मौजूदा सांसद हैं और पूरी संभावना है कि उन्हें भारतीय जनता पार्टी दूसरी बार टिकट देगी. इस सीट के जातीय समीकरण इसे समाजवादी पार्टी का गढ़ बनाते हैं. ऐसे में शिवपाल को हरा पाना बीजेपी उम्मीदवार के लिए आसान नहीं होगा.
बदायूं में सबसे ज्यादा वोटर यादव समाज के हैं और दूसरे नंबर पर मुस्लिम वोटर हैं. यहां के 5० फीसदी वोटर इन्हीं 2 समुदाय के हैं. अखिलेश ने पहले इस सीट पर धर्मेंद्र यादव को टिकट दिया था, लेकिन बाद में बदलाव किया गया और अब शिवपाल यादव इस सीट से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी हैं.
जातीय समीकरण
बदायूं में सबसे ज्यादा चार लाख यादव वोटर हैं. मुस्लिम वोटरों की संख्या भी 3.5 लाख से ज्यादा है. यहां गैर यादव ओबीसी वोटर करीब 2.5 लाख हैं. वैश्य और ब्राह्मण वोटरों की संख्या भी करीब यहां 2.5 लाख है. इसके अलावा दलित वोटरों की संख्या पौने दो लाख के आसपास है. यादव और मुस्लिम समाजवादी पार्टी के पारंपरिक वोटर माने जाते हैं. इस इलाके में शिवपाल यादव की अच्छी पकड़ है. ऐसे में बीजेपी उम्मीदवार के लिए यहां जीत हासिल करना आसान नहीं होगा.
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6 बार समाजवादी पार्टी के खाते में गई सीट
बदायूं में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार 6 बार चुनाव जीत चुके हैं. यहां 1996 से 2019 तक अखिलेश की पार्टी का कब्जा रहा है. 2019 में बीजेपी की संघमित्रा मौर्य ने जीत हासिल की, लेकिन इस बार फिर समाजवदी पार्टी को जीत मिल सकती है. 2019 में धर्मेंद्र यादव की हार का अंतर बेहद कम था. धर्मेंद्र को 46 फीसदी वोट मिले थे, जबकि संघमित्रा को 47.7 फीसदी वोट मिले थे. कांग्रेस उम्मीदवार के खाते में 4.8 फीसदी वोट गए थे. इस बार समाजवादी पार्टी विपक्षी दलों के I.ग.क.I.इ. गठबंधन का हिस्सा है. ऐसे में कांग्रेस इस सीट पर उम्मीदवार नहीं उतारेगी. अगर कांग्रेस के वोट शिवपाल को मिलते हैं तो उनकी जीत लगभग तय हो जाएगी.
बदायूं सीट से बीजेपी ने उतारा दुर्विजय सिह शाक्य को
भारतीय जनता पार्टी ने बदायूं लोकसभा सीट से मौजूदा सांसद संघमित्रा मौर्या का टिकट काटते हुए अपने युवा और तेजतर्रार ब्रज क्षेत्र के अध्यक्ष दुर्विजय सिह शाक्य को चुनाव मैदान में उतारा है. दुर्विजय सिह का मुकाबला समाजवादी पार्टी के दिग्गज आदित्य यादव से होगा.
दुर्विजय सिह शाक्य का जन्म 12 फरवरी 1977 को जिला बदायूँ के ब्लॉक समरेर के ग्राम ब्राह्मपुर में स्व. वैध रामलाल शाक्य के परिवार में हुआ था. उनकी माताजी स्व. रामकुंवरी का निधन पिछले वर्ष ही हुआ है. वे पांच भाई और तीन नाहनों में सबसे छोटे हैं. उनके भाई देवेंद्र शाक्य गांव ब्रह्मपुर के कई वर्षों से प्रधान भी हैं. उनका भी दातागंज क्षेत्र की राजनीति में बहुत प्रभाव है. गांव ब्रह्मपुर से बेसिक शिक्षा पांचवी तक पढ़ाई पूरी की. उसके बाद वे हायर एजूकेशन के लिए बरेली चले गये. फिर उन्होंने उच्चस्तरीय शिक्षा बीएससी, बीएड, एमए (पोलिटिकल साइंस), लॉ की डिग्री, पीजी डिप्लोमा मॉस कम्युनिकेशन से प्राप्त किया. वे बरेली के विशप मण्डल इण्टर कॉलेज में शिक्षक हैं. उन्होंने अंतर्ज़ातीय विवाह पंजाबी समुदाय की बरेली निवासी मोना भाटिया से किया. मोना भाटिया उच्च प्राथमिक विद्यालय में शिक्षिका के पद पर कार्यरत हैं.
सन 1994 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े। उन्होंने सन 1995 में विद्यार्थी जीवन से ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़कर राजनीति और सामाजिक जीवन की शुरुआत की. वे सन 1995 में सबसे पहले बरेली कॉलेज इकाई के सहमंत्री बने. सन 1997 में बरेली में विद्यार्थी परिषद में महानगर महामंत्री, महानगर उपाध्यक्ष, विभाग संयोजक और प्रदेश सह मंत्री भी रहे. सन 2001 में शाहजहांपुर में विद्यार्थी परिषद के विस्तारक के रूप में कार्य संभाला. उन्होंने सन 2002 से विद्यार्थी परिषद में पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में मुरादाबाद- रामपुर विभाग के संगठन मंत्री का दायित्व संभाला. सन 2002 में राम मंदिर आंदोलन के शिला पूजन कार्यक्रम के दौरान गिरफ्तार हुए और 14 दिन जेल में रहे. सन 2007 में उसहैत विधानसभा से भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव लड़ने के लिए कहा और वह तैयारी के लिए क्षेत्र में आए. उसके बाद उसहैत विधानसभा सीट गठबंधन में चले जाने के कारण चुनाव नहीं लड़े. सन 2007 में भाजपा युवा मोर्चा के क्षेत्रीय अध्यक्ष बने. उन्होंने हजारों यूथ कार्यकर्ताओं को भाजपा युवा मोर्चा से जोड़कर सशक्त टीम तैयार की. सन 2012 में प्रदेश सह संयोजक पिछड़ा प्रकोष्ठ भाजपा बने. सन 2014 में पांचाल क्षेत्र के उपाध्यक्ष बने. सन 2016 में ब्रज क्षेत्र के महामंत्री और सन 2020 उपाध्यक्ष बने.
उसके बाद मार्च 2023 से भाजपा ब्रज क्षेत्र के अध्यक्ष का दायित्व संभाल रहे हैं. अभी हाल ही में दुर्विजय सिह शाक्य के नेतृत्व में संपन्न हुए नगरीय निकाय चुनाव में ब्रज क्षेत्र से अभूतपूर्व परिणाम आए. वे अच्छे संगठनकर्ता और कुशल रणनीतिकार माने जाते हैं. वे मूल रूप से संघ विचारधारा के साथ लंबे समय से राजनीति कर रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी ने बदायूं लोकसभा सीट पर अपने बहुत पुराने निष्ठावान कार्यकताã को प्रत्याशी बनाकर विश्वास जताया है. खास बात यह है कि पिछले काफी समय से बाहरी प्रत्याशी का बदायूं में मुद्दा बना रहता था और बाहरी प्रत्याशी को बदायूं के लोग नहीं पसंद कर रहे थे. यही वजह है कि बदायूं के लोकल को इस बार बीजेपी ने अपना प्रत्याशी बनाकर भेजा है.
बदायूं में बसपा बढ़ाएगी सपा की टेंशन, मुस्लिम खां का नाम फाइनल!
लोकसभा के चुनावी समीकरण दिलचस्प होते नजर आ रहे हैं। भाजपा और सपा में कड़ा मुकाबला होने के बाद अब बसपा के संभावित प्रत्याशी हाजी मुस्लिम खां का नाम की चर्चा शुरू हो गई है। इसके बाद राजनैतिक जानकारों की मानें तो अगर बसपा से हाजी मुस्लिम खां ने नामांकन दाखिल कर दिया तब सपा के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती है। चूंकि बदायूं लोकसभा मुस्लिम और यादव बाहुल्य कहा जाता है। ऐसे में हाजी मुस्लिम खां के पक्ष में मुस्लिम मतदाताओं के रूझान निकलकर सामने आ सकते है। इसका खमियाजा सपा को झेलना पड़ेगा। चर्चा है कि हाजी मुस्लिम खां बीते गुरूवार को बसपा सुप्रीमों मायावती के यहां बुलाए गए और उन्हें बदायूं लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाने के लिए हरी झंडी मिल गई है। बस आधिकारिक घोषणा शेष है।
मुस्लिम खां को लेकर शनिवार से जिले भर के राजनैतिक गलियारों में चर्चा उठी है कि वो बसपा सुप्रीमों मायावती से मिल चुके हैं। उन्होंने मुस्लिम खां पर भरोसा जताते हुए बदायूं लोकसभा सीट से बसपा के बैनर तले चुनाव लड़ने के लिए हरी झंडी दे दी है। अधिकृत तौर पर घोषणा होना बाकी है। इसके बाद राजनीतिक गुणा-भाग का खेल भी जनता के बीच शुरू हो गया है। गौरतलब है कि ककरला निवासी हाजी मुस्लिम खां लगभग तीन दशक से सियासत में सक्रिय भूमिका निभाते चले आए हैं। पहली बार 2002 में हाजी मुस्लिम खां शेखूपुर विधान सभा क्षेत्र से बसपा से चुनाव लड़े, लेकिन जीत नहीं सके। इसके बाद 2007 में चुनाव लड़े और जीत गए।
बदायूं से चुनाव लड़ेंगे शिवपाल के बेटे आदित्य यादव
समाजवादी पार्टी ने लोकसभा चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश में दो और उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की है. पार्टी ने बदायूं लोकसभा सीट से शिवपाल सिह यादव की उम्मीदवारों को बदलते हुए उनके बेटे आदित्य यादव को टिकट दिया है. इसके अलावा सुल्तानपुर लोकसभा सीट से पार्टी ने रामभुआल निषाद को प्रत्याशी घोषित किया है. सपा इन दोनों ही सीटों पर पहले उम्मीदवार घोषित कर चुकी थी.
बदायूं लोकसभा सीट पर शिवपाल से पहले अखिलेश ने अपने चचेरे भाई धर्मेन्द्र यादव को टिकट दिया था. इसका मतलब ये हुआ कि मेरठ की तरह ही बदायूं में समाजवादी पार्टी ने तीन बार टिकट बदले. शिवपाल यादव के बेटे आदित्य पहली बार कोई चुनाव लड़ रहे हैं. पिछली बार इस सीट पर बीजेपी की संघमित्रा मौर्य ने धर्मेंद्र यादव को हरा दिया था. धर्मेंद्र यहां से दो बार लोकसभा के सांसद रह चुके हैं. बदायूं में इस बार बीजेपी की ओर से दुर्विजय सिह शाक्य चुनाव लड़ रहे हैं. आदित्य यादव ने सोमवार को अपना नामांकन दाखिल किया । वहीं, सपा नेता रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव फिरोजाबाद लोकसभा सीट से नामांकन करेंगे. बेटों के नामांकन के दौरान शिवपाल यादव बदायूं में तो रामगोपाल यादव फिरोजाबाद में मौजूद रह सकते हैं. बदायूं और फिरोजाबाद में तीसरे चरण में चुनाव हैं.
शिवपाल खुद चाहते थे आदित्य को मिले टिकट
दरअसल, बदायूं लोकसभा सीट के लिए अखिलेश यादव ने जब से चाचा शिवपाल के नाम का ऐलान किया था तब से ही यहां उम्मीदवार बदलने की चर्चा तेज थी. खुद शिवपाल यादव चाह रहे थे कि बदायूं से उनके बेटे आदित्य यादव को टिकट मिले. इसके लिए कार्यकर्ताओं की राय भी ली गई थी और प्रस्ताव पारित कर अखिलेश यादव के पास भेजा गया था.