मैनुपरी लोकसभाः SP के गढ़ में YOGI के मंत्री की प्रतिष्ठा दांव पर

राजेश श्रीवास्तव

मैनपुरी लोकसभा सीट पर बीजेपी ने जयवीर सिह को उम्मीदवार बनाकर एक नया दांव खेला है। पिछले चुनाव में मैनपुरी सीट से मुलायम सिह यादव ने जीत हासिल की थी। यहां BJP  उम्मीदवार SP की डिम्पल यादव को कड़ी टक्कर देने के मूड में है। इस बार डिपल के लिए लड़ाई आसान नहीं है। लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर धुआंधार प्रचार किया जा रहा है। राजनीतिक पार्टियां मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं। कई हाई प्रोफाइल सीटों पर लड़ाई दिलचस्प हो रही है, जिसमें उत्तर प्रदेश की मैनपुरी लोकसभा सीट भी शामिल है। यहां समाजवादी पार्टी (SP) ने डिम्पल यादव को टिकट दिया है। वह मुलायम सिह यादव की बहू और सपा प्रमुख अखिलेश यादव की पत्नी हैं। डिम्पल के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने अपने दिग्गज नेता जयवीर सिह ठाकुर को उतारा है, जिसके बाद सियासी लड़ाई बेहद कठिन हो गई है।

मौजूदा समय में जयवीर सिह मैनपुरी सदर सीट से विधायक हैं। उन्होंने विधानसभा चुनाव में सपा के अभेद्य किले को ढहा दिया, जिसका नतीजा यह हुआ कि पार्टी ने उन्हें योगी आदित्यनाथ सरकार में कैबिनेट मंत्री का पद दिया। वह प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री हैं। अब लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाकर बीजेपी ने बड़ी सियासी चाल चली है क्योंकि जयवीर ठाकुर जाति से आते हैं और इस सीट पर ठाकुर समुदाय की संख्या ठीक-ठाक है। साथ ही साथ ओबीसी वोटर भी अच्छे-खासे हैं। इस चुनाव में BJP का OBC वोटर पर खासा फोकस है।

सपा की साख दांव पर

मैनपुरी सीट पर SP को BJP कड़ी टक्कर देने के मूड में है क्योंकि पार्टी अभी तक एक भी लोकसभा चुनाव यहां से नहीं जीती है। साल 1996 से समाजवादी पार्टी कब्जा जमाए हुए है और खुद सपा के संस्थापक मुलायम सिह यादव यहां से पांच बार चुनाव जीतकर संसद पहुंचे हैं। SP के लिए ये सुरक्षित सीट है, लेकिन इस बार डिम्पल यादव के लिए लड़ाई आसान नहीं है। चुनाव संघर्षपूर्ण होने वाला है। फिलहाल वह इस सीट से सांसद हैं, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने कन्नौज सीट से अपना भाग्य आजमाया था, लेकिन BJP के सुब्रत पाठक से हार का सामना करना पड़ा। पिछले चुनाव में मैनपुरी सीट से मुलायम सिह यादव ने जीत हासिल की थी, लेकिन उनका अक्टूबर 2022 में निधन हो गया। इसके बाद यहां उपचुनाव करवाए गए और सपा ने डिम्पल यादव को चुनावी अखाड़े में उतारा और उन्होंने अपने प्रतिद्बंद्बी व BJP के प्रत्याशी रघुराज प्रताप शाक्य को दो लाख 88 हजार से अधिक वोटों के अंतर से हराया। इस बार सपा की साख दांव पर लगी है। अगर अखिलेश यादव चुनाव नहीं लड़ते हैं तो यूपी की सबसे चर्चित सीट मैनपुरी रहने वाली है।

जयवीर तीन बार चुने गए विधायक

बीजेपी ने जयवीर सिह को उम्मीदवार बनाकर एक नया दांव खेला है। उनका प्रभाव केवल मैनपुरी सीट तक ही सीमित नहीं है बल्कि फिरोजाबाद में निर्वाचन क्षेत्र में भी अच्छी खासी पकड़ है। जयवीर सिह फिरोजाबाद के करहरा गांव के रहने वाले हैं। उनकी राजनीति की शुरुआत यहीं से हुई है। सबसे पहले वह करहरा के ग्राम प्रधान बने। इसके बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गए, जहां वे कई पदों पर रहे हैं। इसके बाद वह मैनपुरी की घिरोर लोकसभा सीट से पहली बार 2002 में विधायक बने और उन्हें 2003 में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई। दूसरी बार साल 2007 में घिरोर सीट से ही जीतकर विधानसभा पहुंचे और राज्यमंत्री बनाए गए। जयवीर सिह सपा और बसपा दोनों ही पार्टियों की सरकारों में मंत्री रहे हैं।

मैनपुरी लोकसभा सीट पर जातिगत समीकरण

मैनपुरी लोकसभा सीट पर जातिगत समीकरण भी खासा दिलचस्प है। यहां यादव समुदाय की संख्या सबसे ज्यादा है, जिसका झुकाव सपा की तरह रहता है। यादव वोटर 4.25 लाख से अधिक हैं। इसके बाद दूसरे नंबर पर शाक्य मतदाता है, जिनकी संख्या करीब 3.25 लाख है। तीसरे नंबर पर ब्राह्मण आते हैं, जोकि 1.20 लाख से अधिक हैं। यहां निर्णायक भूमिका में लोधी वोटर रहते हैं, जिनकी तादाद एक लाख से अधिक है। वहीं, मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 50 से 60 हजार के बीच है।

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मां डिम्पल के प्रचार में पहुंची उनकी पुत्री अदिति, अखिलेश यादव की बिटिया अदिति के फैंस खुश

यूपी में लोकसभा चुनाव के सियासी रण में अब मैनपुरी लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी के पक्ष में डिपल यादव की बेटी ने प्रचार की कमान संभाली है। मैनपुरी लोकसभा सीट से अपनी मां को चुनाव जिताने के लिए अब डिपल यादव की बेटी अदिति यादव प्रचार अभियान में जुट गई हैं। मैनपुरी में अदिति यादव ने डिपल यादव के पक्ष में प्रचार किया। आपको बता दें डिपल यादव की बेटी अदिति यादव लंदन में रहकर पढ़ाई कर रही हैं और वे अभी छुट्टियों पर अपने घर आई हुई हैं। अदिति को देखने के लिए वोटर्स अति उत्साहित हैं। बेटी अदिति यादव के साथ डिपल यादव भी चुनाव की तैयारियों में जुटी हुई हैं। चुनाव तैयारियों के क्रम में सपा प्रत्याशी ने एक चुनावी सभा को संबोधित किया। जनसभा को संबोधित करते हुए डिपल यादव ने बीजेपी पर जोरदार हमला बोला है। मैनपुरी में सपा उम्मीदवार डिपल यादव ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि, जब इंडिया गठबंधन का जब गठन हुआ था तो उस समय सबसे ज्यादा कोई परेशान हुआ था तो वह भाजपा थी। डिपल यादव ने आगे कहा कि, जहां पर गवर्मेंट ऑफ इंडिया लिखा जा रहा था तो इंडिया बोलने में भी हिचकिचा रही थी। इंडिया गठबंधन पूरी मजबूती के साथ देश में चुनाव लड़ रहे हैं। लोगों का समर्थन इंडिया गठबंधन को मिल रहा है। यूपी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों को लेकर किये सवाल उन्होंने कहा कि, BJP ने वादा किया था की हर व्यक्ति के खाते में 14 लाख रुपये आएंगे, हर साल दो करोड़ लोगों को रोजगार दिया जाएगा,गैस सिलेंडर बहुत सस्ते और मुफ्त मिलेंगे, पेट्रोल-डीजल के दाम कम किए जाएंगे, सहित किसानों के मुद्दों पर केंद्र सरकार को नाकाम बताया हैं। उन्होंने कहा कि, बीजेपी का हार डर सता रहा है, लोग समझ रहे हैं कि भाजपा की कथनी और करनी में फर्क है।

बसपा ने बिगाड़ा जातीय समीकरण का खेल

मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र में चुनावी रण को बिसात बिछ चुकी है। इस क्षेत्र को समाजवादी पार्टी (SP) का गढ़ कहा जाता है। बीते 28 बरसों से यहां की चुनावी रेस में साइकिल ही सबसे आगे रही। BJP के पर्यटन मंत्री जयवीर सिह के मैदान में आते ही चुनाव अंगड़ाई लेने लगा है। BSP ने शाक्य चेहरे गुलशन देव शाक्य को मैदान में उतार जातीय समीकरणों को गड़बड़ा दिया है।

बीते 28 सालों से यहां की चुनावी रेस में साइकिल ही सबसे आगे रही। नीले खेमे का ‘हाथी’ जीत की दौड़ में जब भी शामिल हुआ, थककर पिछड़ गया। ‘कमल’ ने भी कई बार खिलने की कोशिश, परंतु जीत की सुगंध नहीं बिखेर सका। जीत का रिकॉर्ड कायम रखने को सपा ने अखिलेश यादव की पत्नी डिपल यादव पर दूसरी बार दांव लगाया है। इससे पहले वह उपचुनाव में सांसद बनी थीं। सियासी विरासत को बनाए रखने के लिए वे जमकर पसीना बहा रही हैं। 2019 में वोट प्रतिशत की बड़ी उछाल लगा चुकी BJP पूरे उत्साह में है। भाजपा के पर्यटन मंत्री जयवीर सिह के मैदान में आते ही चुनाव अंगड़ाई लेने लगा है। BSP ने शाक्य चेहरे गुलशन देव शाक्य को मैदान में उतार जातीय समीकरणों को गड़बड़ा दिया है। ऐसे में मैनपुरी के चुनावी मन में घमासान मच गया है। लोकसभा क्षेत्र में चार लाख से अधिक यादव मतदाता हैं। इनके बाद शाक्य मतदाता ढाई लाख से अधिक हैं। यादवों के लगभग पूरे समर्थन और अन्य जातियों के साथ से सपा के प्रत्याशी विरोधियों को धूल चटाते रहे। हालांकि बीते कुछ सालों में सपा की जीत का यह समीकरण काफी कमजोर पड़ा है। SP भी इस मुश्किल को समझ रही है। ऐसे में उसकी सबसे पहली कोशिश शाक्य मतदाताओं में बड़ी सेंध लगाने की है।

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2022 में उपचुनाव से पहले पूर्व मंत्री आलोक शाक्य को जिलाध्यक्ष बनाकर यह दांव खेला गया था। इस बार सपा ने नजदीकी जिले एटा में शाक्य प्रत्याशी को मैदान में उतारा है। इसके अलावा पार्टी अन्य जातियों के अपने नेताओं को प्रचार में उतारने की रूपरेखा भी तैयार कर रही है। बीते एक माह से खुद डिपल यादव प्रचार अभियान में लगी हैं। गांव-गांव चौपालों में नेताजी के पुराने नाते को याद दिला रही हैं। भोगांव निवासी कृष्ण स्वरूप शाक्य कहते हैं कि मैनपुरी क्षेत्र का सैफई परिवार से गहरा नाता है। बहुत से लोग जातीय समीकरणों से ऊपर उठकर उनका साथ देते हैं।

मैनपुरी सीट पर मुलायम परिवार का दबदबा, क्या BJP यहां पहली बार खिला पाएगी कमल

उत्तर प्रदेश का मैनपुरी जिला की पहचान न सिर्फ राजनीतिक हैसियत की वजह से होती है बल्कि इस क्षेत्र का पुराना इतिहास रहा है। प्राचीन काल में मैनपुरी कन्नौज साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था। बाद में 1857 की आजादी की पहली जंग में यह शहर भी शामिल हुआ था तब विद्रोह फैलने पर मैनपुरी में तैनात रेजिमेंट ने भी विद्रोह कर दिया। वर्तमान में मैनपुरी सीट मुलायम सिह यादव की कर्मभूमि की वजह से जानी जाती है। वह यहां से 5 बार सांसद चुने हुए। फिलहाल यहां पर मुलायम की बहू डिम्पल यादव लोकसभा सांसद हैं। यहां पर लंबे समय यादव बिरादरी का दबदबा रहा है। मैनपुरी शहर की ऐतिहासिक महत्ता है। 1526 में बाबर के आक्रमण के बाद मैनपुरी मुगलों के अधीन आ गया, लेकिन शेरशाह सूरी के बादशाह बनने के बाद यह शहर फिर अफगान राजवंश के पास अस्थायी रूप से आ गया। लेकिन हुमायूं के बादशाह बनने के बाद यह शहर फिर मुगलों के कंट्रोल में आ गया। 18वीं शताब्दी के खत्म होते-होते मैनपुरी शहर मराठाओं के अधीन आ गया। फिर यह अवध प्रांत का हिस्सा बन गया। 18०1 में जब यह अंग्रेजों के हिस्से में आया तो इटावा जिले का मुख्यालय बना दिया गया। फिलहाल मैनपुरी संसदीय सीट के तहत 5 विधानसभा सीटें (मैनपुरी, भोगांव, किशनी, करहल और जसवंतनगर सीट) आती हैं जिसमें तीन सीटों पर SP का कब्जा है तो दो सीटों पर BJP को जीत मिली। यहां के चर्चित जसवंतनगर सीट पर सपा के टिकट पर शिवपाल सिह यादव विधायक हैं।

2019 में जीतकर मुलायम ने दे दिया इस्तीफा

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में मैनपुरी संसदीय सीट का राजनीतिक इतिहास देखें तो तब यहां पर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिह यादव आखिरी बार चुनाव मैदान में उतरे थे। मुलायम सिह को चुनाव में 524,926 वोट मिले तो बीजेपी के प्रेम सिह शाक्य के खाते में 430,537 वोट आए। मुलायम ने 94,389 मतों के अंतर से यह चुनाव जीत लिया। तब यहां के चुनाव में कुल 16,81,508 वोटर्स थे। इसमें से पुरुष वोटर्स की संख्या 9,13,580 थी तो महिला वोटर्स की संख्या 7,67,869 थी। चुनाव में कुल 9,76,518 (58.5%) वोटर्स ने वोट डाले थे। हालांकि मुलायम सिह यादव के निधन के बाद साल 2022 में मैनपुरी सीट पर उपचुनाव कराया गया। उपचुनाव में मुलायम सिह की बहू और सपा उम्मीदवार डिपल यादव मैदान में उतरीं। कभी खुद को मुलायम और शिवराज सिह यादव के चेला कहने वाले रघुराज सिह शाक्य बीजेपी के टिकट पर मैदान में उतरे। तब चुनाव प्रचार में ‘बहू बनाम चेले’ को लेकर जमकर चर्चा भी हुई। फिलहाल सहानुभूति की लहर और शिवपाल यादव के साथ आ जाने की वजह से आसान जीत डिम्पल के खाते में गई और उन्होंने 2,88,461 मतों के अंतर से चुनाव जीत लिया।

मैनपुरी सीट : मुलायम परिवार की बादशाहत

मैनपुरी सीट के संसदीय इतिहास की बात करें तो यहां पर वर्ष 1952 में पहली बार चुनाव कराया गया और कांग्रेस के खाते (बादशाह गुप्ता) में यह सीट चली गई। साल 1957 में यहां से प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के बंशीदास धनगर विजयी हुए। 1962 के चुनाव में फिर से बादशाह गुप्ता को जीत मिली। 1967 में कांग्रेस के नए प्रत्याशी महाराज सिह मैदान में उतरे और जीत हासिल की। वह फिर से 1971 में भी चुने गए। इमरजेंसी की वजह से यहां पर भी कांग्रेस को झटका लगा। 1977 के चुनाव में जनता पार्टी के रघुनाथ सिह वर्मा ने यहां से जीत हासिल की। वह 198० में भी चुने गए। लेकिन 1984 में कांग्रेस को सहानुभूति की लहर का फायदा मिला और बलराम सिह यादव सांसद चुने गए। साल 1989 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी नेता और विख्यात कवि उदय प्रताप सिह जनता दल के टिकट पर चुने गए। वह 1991 में भी यहां से सांसद बने। 9० के दशक में राम लहर चलने के बाद भी बीजेपी को यहां पर जीत नहीं मिली। 1991 से 1999 तक के चुनावों में बीजेपी को दूसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा था। इस बीच समाजवादी नेता मुलायम सिह यादव समाजवादी पार्टी के साथ मैदान में आए और फिर यह सीट मुलायम परिवार के इर्द-गिदã ही घूमती रही।

मोदी लहर में भी नहीं खिल सका कमल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लहर में भी मैनपुरी था मुलायम सिंह के साथ

मुलायम सिंह यादव 1996 के लोकसभा चुनाव में यहां से उतरे और चुनाव जीत गए। फिर 1998 और 1999 के आम चुनाव में सपा के उम्मीदवार के तौर पर बलराम सिंह यादव को जीत मिली। साल 2004 के चुनाव में मुलायम सिह फिर यहां से जीते थे। लेकिन प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने इस संसदीय सीट को छोड़ दिया। फिर 2004 के उपचुनाव में मुलायम के भतीजे धर्मेंद्र यादव को यहां से जोरदार जीत मिली। 2009 के आम चुनाव में मुलायम सिह फिर से विजयी हुए। फिर 2014 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिह यादव मोदी लहर के बीच अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। लेकिन वह पार्टी की खास रणनीति के तहत मैनपुरी के अलावा आजमगढ़ सीट से भी चुनाव लड़े थे। वह दोनों ही सीटों से विजयी रहे। लेकिन उन्होंने मैनपुरी सीट छोड़ने का फैसला लिया। इस्तीफा देने की वजह से मैनपुरी सीट पर उपचुनाव कराया गया। यहां से फिर मुलायम परिवार के तेज प्रताप सिह यादव को मैदान में उतारा गया और 3,21,249 मतों के अंतर से जीत हासिल करते हुए सांसद बने। वह मुलायम सिह यादव के बड़े भाई रतन सिह यादव के बेटे रणवीर यादव के बेटे हैं। 2019 में भी मुलायम सिह यादव यहां से चुने गए, लेकिन उनका निधन हो जाने की वजह से यहां पर दिसंबर 2022 में उपचुनाव कराया गया और इस बार उनकी बहू डिम्पल यादव के खाते में जीत चली गई।

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यादव परिवार के आगे जातिगत समीकरण फ़ेल

मैनपुरी सीट के जातीगत समीकरण के देखें तो यहां पर इसका कोई खास फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि यहां पर लम्बे समय से मुलायम सिह यादव परिवार का दबदबा रहा है। BJP यहां पर अब तक खाता नहीं खोल सकी है। जबकि कांग्रेस को 40 साल से यहां पर अपनी पहली जीत का इंतजार है। मुलायम सिह खुद पांच बार यहां से चुनाव जीतने में कामयाब रहे हैं। फिलहाल मैनपुरी संसदीय सीट पर पिछड़े वोटर्स की बहुलता रही है। पिछड़े वर्ग के वोटर्स में यादव बिरादरी के वोटर्स की संख्या सबसे अधिक है और 2019 के चुनाव में करीब चार लाख वोटर्स थे। शाक्य वोटर्स भी मजबूत स्थिति में माने जाते हैं। इनके अलावा ठाकुर, ब्राह्मण, जाटव और लोधी राजपूत वोटर्स यहां के चुनाव में अपनी अहम भूमिका निभाते रहे हैं। मुस्लिम वोटर्स की भी संख्या एक लाख से ज्यादा थे।

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