कविता : पर अब उमर का भी तक़ाज़ा है,

कर्नल आदि शंकर मिश्र
कर्नल आदि शंकर मिश्र

भाई ऐसी क्या बात कर दिया,
मेरा सदा से स्वभाव ही है ऐसा,
पर अब उमर का भी तक़ाज़ा है,
वर्ना अपना शौर्य भी दिखा देता।

ईश्वर की मर्ज़ी में ही देखिये,
रहती हमारी सबकी मर्ज़ी है,
कोई भी नहीं कुछ कर पाता है,
बस उसी मालिक की मर्ज़ी है।

यह नितांत सत्य है हर किसी को,
हम आप खुश नहीं रख सकते हैं,
कहीं न कहीं किसी न किसी को
हमसे आपसे कोई नाखुशी होगी।

और हर कोई हमारी आप की बात
से सहमत भी तो नहीं हो सकता है,
कहीं न कहीं, किसी न किसी को,
हम आप से असहमति भी तो होगी।

आदित्य हर किसी की बात पर,
प्रतिक्रिया देना आवश्यक नहीं है,
कुछ बातों पर हमें ध्यान न देकर,
चुप रहकर बात का जवाब देना है।

 

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