कविता : हे पाहि पाहि दातार हरे

कर्नल आदि शंकर मिश्र
कर्नल आदि शंकर मिश्र

हे भोलेनाथ कृपालु हरे,
शिव शम्भू हे औढरदानी।
दयालु हृदय हे करुणाकर,
महादेव की अकथ कहानी॥

निमिषमात्र, नवनिधि दाता हैं,
दयानिधि भोले हैं महा दानी।
शशि शेखर जय त्रिशूलधर,
जय प्रेमस्वरूप, गिराज्ञानी॥

महा अकिंचन जनमन रंजन
शिव परम पूज्य, हे उदार हरे।
गोतीत हरे, पार्वतीपति हर हर,
हे शंकर शम्भो, दातार हरे ॥

आशुतोष अवढ़र दानी प्रभु
माया मोह निद्रा से बचा लेना।
व्यसनों की विषम वेदना मुझसे
हे नाथों के नाथ छुड़ा देना ॥

जीवन अमृत की एक बूँद से
यह जीवन मुक्त बना देना।
परम ज्ञान के हे आकर शिव,
निज चरणों में मुझे बिठा लेना॥

दे दो अनपायनी भक्ति प्रभो,
संसार से पूर्ण विरक्ति प्रभो।
परम पिता परमात्मा हे, दे दो
अपने चरणों की अनुरक्ति प्रभो॥

आदित्य की दीन दशा पर
प्रभु बरसा दो शिव कृपा हरे,
पार्वती पति हर उमा कान्त,
हे पाहि पाहि दातार हरे॥

 

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