कविता : एक तीर से दो शिकार

कर्नल आदि शंकर मिश्र
कर्नल आदि शंकर मिश्र

एक तीर से दो शिकार करने की
कुछ लोगों की कैसी आदत होती है,
वह शायद भूल जाते हैं कि इससे सांप
तो नही मरता पर लाठी टूट जाती है।

कुछ लोग मीठा मीठा बोलने
की प्रायः कोशिश भी करते हैं,
पर उनके श्रीमुख से मीठा कम
कड़वा कड़वा ही बाहर आता है।

ध्यानाकर्षण, प्रेमाकर्षण के साथ ही
प्रशंसाकरण, तीनो किसी को ख़ुश
करने के लिए दिव्यास्त्र जैसे होते हैं,
लोग अक्सर इनसे ही प्रसन्न होते हैं।

कविता : अभिमान शोभा नहीं देता है,

किसी ने कितनी सुंदर बातें कही हैं,
एक समय था जब मंत्र काम करते थे,
फिर समय आया कि तंत्र काम करते थे,
और समय आया कि यंत्र काम करते थे ।

परंतु आज अत्यंत विचित्र समय आया है,
मंत्र, तंत्र, यंत्र नहीं, खड्यंत्र काम करते हैं,
जब तक सत्य निकलकर सामने आता है,
तब तक झूठ दुनिया घूमकर आ जाता है।

मनुष्य के मन की कालिख उसके झूठे
अभिमान को अक्सर बढ़ा देती है,
झूठे अभिमान की शान उस शख़्स को
अपनों के लिए अनजान बना देती है।

शान्ति के समान कोई मंत्र, तंत्र, यंत्र नहीं,
खड्यंत्र नहीं, संतोष जैसा श्रेष्ठ सुख नहीं,
तृष्णा तो मानव मन का बहुत बड़ा रोग है,
आदित्य दया, क्षमा से बड़ा कोई धर्म नहीं।

 

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