कविता: प्रेम की पहचान

कर्नल आदि शंकर मिश्र
कर्नल आदि शंकर मिश्र

कबीर लहरि समंद की,
मोती बिखरे आई ।
बगुला भेद न जानई,
हंसा चुनि-चुनि खाई ॥

समुद्र की उफनती लहरो में क़ीमती
मोती आ आ करके बिखरते रहते हैं,
बगुले को मोती की परख नहीं होती है,
इसलिए उनका भेद नहीं जान पाते हैं ।

हंस मोती चुन लेता है क्योंकि
उसे मोती की पहचान होती है,
प्रेम में ही ईश्वर है, अनुराग एवं
प्रेम से ईश्वर की पहचान होती है।

किसी वस्तु का महत्व भी
तभी समझ में आता है,
जब उसका जानकार उस
वस्तु तक पहुँच पाता है।

प्रेम की परख भी वही
प्रेमी इंसान कर पाता है,
वास्तव में जो प्रेम को
सच में पहचान पाता है।

कविता : कवि की कविता कि सीमा है,

जब तक जीवन है,
संघर्ष करना पड़ेगा,
जब तक प्रेम हैं,
दुर्भाव सहना पड़ेगा,
संघर्ष ही जीवन है,
इसी में सफलता है,
प्रेम व द्वेष पूरक हैं,
इनसे गुजरना पड़ेगा।

पर हाँ! जो बोलते हैं, उन्हें बोलने दो,
हमारे कर्म व भावना सही हों सभी से,
तो प्यार भी सबसे यूँ ही मिलता रहेगा,

भाषा प्रेम की, प्रेम दो तो मिलता रहेगा।

हमारा जीवन इतना प्रभावशाली व
सरस होना चाहिये कि हमें देख कर,
एक निराश व्यक्ति भी आशान्वित हो
जाय सारी निराशा हताशा छोड़ कर।
जीवन का आनंद उसको नहीं मिलता
जो अपनी शर्तों पर जिंदगी जीता है,
औरों के प्रेम में अपनी शर्तें भी बदल
देता है असली आनंद उसे मिलता है।

आदित्य जिन दो हाथों से हम दो
लोगों को भी नहीं हरा सकते हैं,
प्रेम से उन्ही दो हाथों को जोड़कर,
लाखों लोगों का दिल जीत सकते हैं।

 

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