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Litreture

कविता : मनसा, वाचा, कर्मणा एक से होंय

बोया पेड़ बबूल तो आम कहाँ से होय मनसा, वाचा, कर्मणा एकै से न होंय, चुनाव में पैसा बहै, बाद वसूली होत, बदलो ऐसे तन्त्र को, इसमें तो है खोट। राजनीति अब भ्रष्ट, हैं बबूल से काँट, इन्हें जड़ से काटिये, काँटे दीजै छाँट, स्वेच्छा सेवा करे जो उसे दो अधिकार, भ्रष्टतन्त्र ये नष्ट हो,ऐसा […]

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Litreture

मन, मस्तिष्क और तन निर्मल हों,

आशीर्वाद बडों का मिल जायें, शुभकामना छोटों से मिल जायें, भाई भाई को यही देना सुंदर हैं, भाईचारा भी अच्छे से निभ जाये। यद्यपि बड़ा भाई आदित्य कविता में, जीवन दर्शन की मौलिकता रचता है, कामना यही है कि आजीवन यूँ ही, कवितायें वह निर्मित करता जाए। यूँ ही अपनी रचनाओं के जरिये, वो सुखद […]

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