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Litreture
कविता : मनसा, वाचा, कर्मणा एक से होंय
बोया पेड़ बबूल तो आम कहाँ से होय मनसा, वाचा, कर्मणा एकै से न होंय, चुनाव में पैसा बहै, बाद वसूली होत, बदलो ऐसे तन्त्र को, इसमें तो है खोट। राजनीति अब भ्रष्ट, हैं बबूल से काँट, इन्हें जड़ से काटिये, काँटे दीजै छाँट, स्वेच्छा सेवा करे जो उसे दो अधिकार, भ्रष्टतन्त्र ये नष्ट हो,ऐसा […]
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