पहुंच इतनी ऊंची की फिर वहीं पहुंचे

  • जनपद में छह और मंडल में 10 साल पूरे होने पर किया गया था तबादला
  • जेल अफसरों के लिए स्थानांतरण नीति का कोई मायने नहीं

आर के यादव

लखनऊ। प्रदेश कारागार विभाग के अधिकारियोंं की महिमा अपरंपार है। इस विभाग में जुगाड़ और पहुंच हो तो स्थानांतरित किए गए अधिकारी को स्थानांतरित जनपद में ही वापसी कर दी जाती है। हकीकत यह है कि प्रदेश के कारागार विभाग में शासन के स्थानांतरण नीति को कोई मायने नहीं है। यही वजह से नियमों को दर किनार कर पहले तबादला किया जाता है फिर उसी स्थान पर उसे वापस भी कर दिया जाता है। विभाग के अफसर खामी को छिपाने के लिए मेडिकल ग्राउंड पर भेजे जाने की बात स्वीकार कर रहे हैं।

मामला प्रदेश की बुलंदशहर जिला जेल का हैं। इस जेल में डिप्टी जेलर नीरज श्रीवास्तव तैनात है। जनपद में छह साल और मंडल के 10 साल पूरा होने के बाद बीते स्थानांतरण सत्र में जेल मुख्यालय के अधिकारियों ने डिप्टी जेलर का तबादला अम्बेडकरनगर जिला जेल में कर दिया गया। पिछले लंबे समय से पश्चिम की कमाऊ जेलों पर तैनात रहने वाले डिप्टी जेलर नीरज श्रीवास्तव को पूर्व की जेल में भेजा गया। पिछले स्थानांतरण सत्र में मंडल की सर्वाधिक कमाऊ कही जाने वाली गाजियाबाद जेल से उन्हें बुलंदशहर जेल में तैनात किया गया था।

सूत्रों का कहना है कि बुलंदशहर से अम्बेडकर नगर स्थानांतरित किए गए डिप्टी जेलर ने कार्यभार संभालने के बाद से वापसी के प्रयास शुरू कर दिए थे। करीब डेढ़ माह तक अम्बेडकर नगर जेल में रहने के दौरान ही उन्होंने जेल मुख्यालय के अधिकारियों से सेटिंग-गेटिंग शुरू कर दी। नतीजा यह हुआ कि अगस्त माह के मध्य में अम्बेडकर जिला जेल स्थानांतरित किए डिप्टी जेलर ने जुगाड़ और ऊंची पहुंचे का लाभ उठाते हुए अपने आप को अम्बेडकर नगर जिला से बुलंदशहर जेल पर संबद्ध करा ही लिया। बताया गया है कि मेडिकल का आधार बताकर संबद्ध हुए इस डिप्टी जेलर की स्थानांतरित जेल में वापसी का मामला विभागीय अधिकारियों में चर्चा का विषय बना हुआ है। उधर इस संबंध में जब बुलंदशहर जेल अधीक्षक राजेंद्र कुमार जायसवाल से बातचीत की गई तो उन्होंने डिप्टी जेलर नीरज श्रीवास्तव के बुलंदशहर से अटैचमेंट की बात का स्वीकार किया। मेडिकल के आधार पर हुए अटैचमेंट के सवाल को वह टाल गए। जेल मुख्यालय के अधिकारियों ने इसे आला अफसरों का मामला बताते हुए कोई भी टिप्पणी करने से साफ इनकार कर दिया।

जेल अफसरों को दोषी का निर्दाेष ठहराने में महारत हासिल

जेल विभाग के अफसरों को निर्दोष को दोषी और दोषी को निर्दोष बनाने की महारत हासिल है। मामला पश्चिम की बागपत जेल को है। इस जेल में तीन दिन पहले जेल में बंद एक बंदी के पास पैसा पहुंचाने के नाम पर रिश्वत लेने का वीडियो वायरल हुआ। वीडियो में हेडवार्डर को पैसा लेते हुए दिखाया गया। जेल अधिकारियों ने हेड वार्डर की ओर से पैसा दे रहे व्यक्ति के खिलाफ ही मुकदमा दर्ज कर मामले को रफादफा कर दिया। वहीं दूसरी ओर पिछले चार से हेड वार्डर और प्रभारी डिप्टी जेलर को प्रभार संभालने वाले सुरक्षाकर्मी को सिर्फ इसलिए हटा दिया गया कि उसने एक आरोपी जेलर की मनमानी पर काम करने से इनकार कर दिया। बलिया जेल में उपद्रव के सूत्रधार तत्काली डिप्टी अब जेलर जितेंद्र कश्यप ने डीओ लिखकर उन्हें महाराजगंज जेल से संबद्ध करा दिया। प्रताडि़त हेडवार्डर न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खाने का विवश है। जेल अधीक्षक वीके मिश्रा वीडिया वायरल होने की बात स्वीकार करते औ कोई भी टिप्पणी करने से मना कर दिया।

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