कितना सुखी है भारत दुनिया में?

के. विक्रम राव
के. विक्रम राव

विश्व के सर्वाधिक दुखी देशों की सूची में भारत सोलहवें पायदान पर है। तालिबान-शासित इस्लामिक अफगानिस्तान इस श्रेणी में शीर्ष पर है। बहुत ही पीड़ित, गमगीन, रंजशुदा, शोकसंतंप्त। संयुक्त-राष्ट्र विश्व खुशहाली रपट-2023, जो 139 देशों की मान्य सूची, को उलटने पर, नकारात्मक तौर पर क्रमबद्ध करने के बाद यही निचोड़ निकला है। चिंता की बात यह है कि पड़ोसी इस्लामी पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल आदि राष्ट्र हमारे विशाल गणराज्य से काफी अधिक सुखी हैं। कम्युनिस्ट चीन भी। संयुक्त राष्ट्र स्थायी विकास नेटवर्क द्वारा गत सप्ताह जारी यह वार्षिक रपट तीन मुख्य संकेतकों : जीवन मूल्यांकन, सकारात्मक मानदंडों और नकारात्मक भावनाओं के आधार पर व्यक्तिपरक-कल्याण को मापता है। फिर रपट को जीडीपी, सामाजिक समर्थन, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और प्रत्येक देश में भ्रष्टाचार के स्तर जैसे कारकों को ध्यान में रखते हुए खुशहाली के स्तरों का मूल्यांकन करता है। लेकिन इस वर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ के सामने रिपोर्ट तैयार करने में एक अनूठी नई चुनौती थी।

दुनिया भर के देशों में चल रहे कोविड-19 महामारी और इसके विनाशकारी प्रभाव वाली। महामारी हमें वैश्विक पर्यावरण के खतरों, सहयोग की तत्काल आवश्यकता और प्रत्येक देश और वैश्विक स्तर पर सहयोग प्राप्त करने की कठिनाइयों की याद दिलाती है। वैश्विक खुशहाली की गत वर्ष वाली रपट याद दिलाती है कि केवल “धन के बजाय कल्याण के लिए लक्ष्य रखना चाहिए। यूं खुशहाल होने की अवस्था या भाव हेतु सब प्रकार के सुख संपन्नता से परिपूरित, वह अनुकूल अनुभव है। संपन्नता, समृद्धि, मालदारी, सुख, चैन, आराम खुशी, प्रसनन्त, हर्ष, उल्लास इत्यादि हों। इसमें भारत की बदहाली अधिक उजागर होती है क्योंकि रूसी हमला झेल रहा यूक्रेन भी हम से अधिक खुशहाल है। हालांकि उत्तरी यूरोप का तिरपन लाख आबादी के हिसाब से (लखनऊ का दो तिहाई वाला) फ़िनलैंड जो भारत के भूभाग का सिर्फ दशांश है भारत से सवा सौ गुना अधिक खुश है। परखने की कसौटियां हैं : वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स को तैयार करने में संयुक्त राष्ट्र छह प्रमुख कारक। इनमें आय, स्वस्थ जीवन की अनुमानित उम्र, सामाजिक सहयोग, स्वतंत्रता, विश्वास और उदारता शामिल हैं।

अब इसी संदर्भ में जरा गौर कीजिए भारत के आला प्रशासनिक अधिकारी रहे विदेश मंत्री एस. जयशंकर के निहायत भोंडे बचाव वाले वक्तव्य पर। वे बोले कि यह वैश्विक खुशहाली का इंडेक्स (अनुक्रमणिक) पूर्णतया सही और यथार्थ वाला नहीं है। उनका आग्रह था : “बेंगलुरु को देखिए कितना संपन्न और सुखी है।” आज इस पूर्व नौकरशाह से जो आज तक एक भी प्रत्यक्ष निर्वाचन में वोट नहीं पाया है, को समझना पड़ेगा कि भारत महानगरों में नहीं बसता है। अटरिया, भिटरिया, बबेरू (बांदा) सरीखे कस्बों में भी संतप्त लोगों रहा करते हैं।

फिनलैंड को सर्वाधिक सुखी राष्ट्र मानने के कई वाजिब कारण हैं। वहां पर्यटक का बटुवा चोरी नहीं होता है। रोम जैसे नहीं जहां यदि आपने सूटकेस फर्श पर रख दिया तो फिर उठा नहीं पाएंगे। उठाईगीर यह काम कर देगा। आगरा-अजमेर की तरह वहां होटल में गौरागी पर्यटकों का शीलहरण नहीं होता। तनिक पड़ताल करें। चूंकि साम्राज्यवादी रहे पश्चिमी यूरोपीय गणराज्यों में मानव द्वारा मानव का शोषण तीव्र होता रहा, तो उल्लास और उत्सव की भावना नदारद तो रहेगी ही। मसलन फिनलैंड में पड़ोसी सोवियत रूस का वर्ग (“वाल्पास”-फिन भाषा में) संघर्ष की भावना प्रचंड थी। अब “मकलिन” (राष्ट्रवादी झुकाव) व्यापा है। परिणाम समक्ष हैं। फिनलैंड की युवा प्रधानमंत्री श्रीमती सान्ना मारिन का प्रसंग याद कर लीजिए। प्रधानमंत्री मरीन के एक वीडियो में विवाद खड़ा कर दिया था। जिसमें वह कुछ लोगों के साथ पार्टी करती नजर आ रही हैं। इस क्लिप को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बड़े पैमाने पर साझा किया गया था। मारीन एक निजी अपार्टमेंट में लोगों के एक समूह के साथ जमकर डांस कर रही हैं। कहा जा रहा है कि वीडियो को शुरू में इंस्टाग्राम स्टोरीज पर अपलोड किया गया था जिसके बाद यह लीक हो गया और वायरल हो गया। आलोचकों का कहना है कि वह पीएम पद के लिए उपयुक्त नहीं है। हालांकि कई लोगों ने सोशल मीडिया पर उनका समर्थन नहीं किया है। विपक्ष उनके इस्तीफे की मांग कर रहा था। उधर, सन्ना मरीन ने कबूला है कि वह अपने दोस्तों के साथ शराब पी रही थीं लेकिन ड्रग्स लेने की बातें गलत हैं। उन्होंने चुनौती दी कि वह ड्रग्स टेस्ट के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि “मेरे पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है। मैंने कभी ड्रग्स नहीं लिया है।” तत्काल पूरे राष्ट्र ने इस महिला प्रधानमंत्री का साथ दिया कि सुख को पाने का उनका मौलिक आधार है। वह सिंहासन पर बनी हुई हैं। इसीलिए वह खुश है।

आज इसी फिनलैंड ने भारत के कुशल श्रमिकों को, अस्पताली नर्सों की अन्य चिकित्सा कर्मियों के लिए द्वार खोल दिए हैं। इस देश की पछ्पन लाख जनसंख्या में आधे से कम ही श्रम क्षेत्र में हैं। अतः मानव श्रम शक्ति का आयात करना पड़ता है। तो सपना तो दिखेगा ही कि भारत कब फिनलैंड जैसे अथवा कम से कम भूटान, बांग्लादेश जैसा प्रमुख देश बनकर संयुक्त राष्ट्र संघ के हसमुख सदस्यों की फेहरिस्त में आएगा ? मोदी सरकार का यह लक्ष्य होना चाहिए। साल भर का वक्त शेष है।

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