फसल अवशेष जलाना मतलब किसी बड़े संकट को दावत देना

  • पर्यावरण के साथ-साथ मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी छीन लेती है पराली
  • अगर वैज्ञानिक तरीके से मिट्टी को संवारेंगे तो बढ़ सकता है किसानों का लाभ
  • गर्मी से मर जाते हैं सूक्ष्म जीवाणु, जिससे कम हो जाती है जमीन की उर्वरा शक्ति

मधुकर त्रिपाठी

कुछ दिनों पहले मैं देवरिया जिले से सटे भलुअनी की तरफ से एक गांव की तरफ़ बढ़ रहा था तो देखा कि इस भयानक गर्मी में रोड के दोनों तरफ खेतों में आग जल रही है। आग की लपटें एक खेत से दूसरे खेत में धू धू कर के फैल रही हैं। रास्ते में लोग डर के मारे आग देख अपना रास्ता बदल लेते हैं। मैने भी वही किया। आप को याद होगा कि कुछ साल पहले ऐसी घटनाएं न के बराबर थीं। पहले खेती की तकनीकी अलग थी। बिना दवा के भी अच्छी पैदावार होती थी। इतनी हाईटेक खेती नहीं होती थी लेकिन किसान खुशहाल था। अब का दौर हाईटेक हो गया है। मशीनों ने खेतों पर भी कब्जा कर लिया है। लोग इन मशीनों का प्रयोग भी कर रहे हैं लेकिन जागरूकता के अभाव में कई ऐसी गलतियां कर बैठ रहे हैं जिससे फसल की पैदावार और गुणवत्ता में भी गिरावट देखने को मिल रहा है। कृषि विभाग की भी किसानों को सलाह यही होती है कि गेहूं और अन्य फसल कटने के बाद उनके डंठलों और खेत में पड़े भूसे में हल्की सिंचाई कर जुताई कर दें, जिससे वह मिट्टी में मिल जाएंगे और सड़कर खाद का काम करेंगे।

लाख कड़ाई के बावजूद पराली जलाने के मामलों में कमी देखने को नहीं मिल रहा है। कृषि विभाग ने इसे रोकने के लिए कई जतन किए लेकिन विभाग सफल नहीं हो पा रहा है। विभागीय अधिकारी किसानों को पराली जलाने से हो रहे नुकसान के बारे में जानकारी तो समय समय पर दे रहे हैं लेकिन इसका कोई असर जमीन पर दिखता नजर नहीं आ रहा है। पराली जलाने से खेत तो साफ हो जाता है। लेकिन इससे  मिट्टी की उर्वरा शक्ति का क्षरण तो होता ही है वहीं वायु प्रदूषण में काफी बढ़ोतरी भी होती है। जैविक खाद का निर्माण भी नही हो पाता।

गेहूं की कटाई अब खत्म हो चुकी है। कुछ लोगों ने अपनी फसल को हाथ से काटा है तो वहीं अधिकतर लोगों ने मशीन से अपनी फसलों को कटवाया है। ऐसे में तमाम जगहों पर ऐसा देखा जा रहा है कि गेहूं की कटाई के बाद कई किसान अपने खेतों में ही गेहूं की पराली जला रहे हैं। इतनी भयानक लू और गर्मी में आग तेजी से एक खेत से दूसरे खेत में आग पकड़ ले रहा है जो कि बहुत खतरनाक है। इस पराली को जलाने से किसानों को बड़े नुकसान तो हो ही रहे हैं वहीं वन विभाग के लगाए हुए पेड़ भी उस आग की चपेट में आ जा रहे हैं।

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इससे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है वहीं आस पास खड़ी फसलों में भी आग लगने का खतरा रहता है। कई जगहों पर तो स्थानीय लोगों को दमकल की गाड़ियां भी मंगानी पड़ रही हैं। बता दें कि मशीन से कटाई के बाद गेहूं की बाली के अलावा पूरा पुआल खेत में ही रह जाता है। इसके निस्तारण के लिए किसान इस पुआल को जला दे रहे हैं। आग लगने व हवा के कारण कभी कभी अन्य स्थानों पर भी  आग भड़क उठती है। जानकारों का ऐसा मानना है कि इस तरह आग लगाने से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है वहीं पास खड़ी अन्य हरी फसलों को भी नुकसान पहुंच रहा है।

खेती किसानी से जुड़े कुछ पुराने लोगों का ऐसा मानना है कि गेहूं की पराली को जलाने से मिट्टी का तापमान बढ़ जाता है जिसके कारण मिट्टी में मौजूद सुक्ष्म जीवाणु, केंचुआ आदि मर जाते हैं। इनके मिट्टी में रहने से ही मिट्टी जीवित रहती है। वहीं पराली को जलाने से  मिट्टी की उपज शक्ति खत्म हो जाती है। गेहूं की पराली को जलाने से वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है, जिसके कारण वातावरण प्रदूषित हो जाता है।

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पराली को जलाने से मानव, मवेशी, मिट्टी और पर्यावरण सभी पर खराब असर पड़ता है। कई अध्ययनों में इस बात का खुलासा भी हुआ है कि कई तरह के जीवों के जीवन को नुकसान पहुंच रहा है।  मिट्टी में कई जीव ऐसे भी हैं जो खेती के लिए लाभकारी होते हैं। पराली जलाने से ये जीव आग में जल कर मर जा रहे हैं। बहरहाल देश के कृषि वैज्ञानिक भी इन समस्याओं के समाधान के लिए जुटे हैं। लेकिन इतने से काम नहीं होने वाला। पूरे देश के किसान भाइयों को इसके लिए जागरूक होना पड़ेगा। तभी बात बनेगी।

पराली जलाने से और क्या होती है परेशानी

पराली जलाने की वजह से प्रदूषण की समस्या बढ़ जाती है और इसकी वजह से जमीन भी बंजर होने लगती है। किसानों के द्वारा हर साल पराली जलाने की वजह से मिट्टी में जैविक कार्बन की मात्रा में कमी आ रही है। अगर मिट्टी में जैविक कार्बन की मात्रा में ज्यादा कमी हो जाएगी तो मिट्टी बंजर भी हो सकती है। वहीं किसानों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले रासायनिक खाद भी फसल पर काम करना बंद कर देंगे, इसका फसलों पर विपरीत प्रभाव पड़ने लगेगा। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि पराली या अन्य फसल अवशेषों को जलाने से मिट्टी का तापमान बढ़ जाता है, जिसके कारण मिट्टी में उपलब्ध सूक्ष्म जीवाणु और केचुआ आदि मर जाते हैं। नतीजतन, मिट्टी की उपजाऊ क्षमता कम हो जाती है।

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एक टन पराली जलाने से कितना होता है नुकसान

तीन किलोग्राम पर्टिकुलेट मैटर, 60 किलोग्राम कार्बन मोनोऑक्साइड, 1460 किलोग्राम डाई ऑक्साइड, 199 किलोग्राम राख, दो किलोग्राम सल्फर डाईऑक्साइड निकलता है।

पराली जलाने से होने वाले नुकसान

सांस लेने में दिक्कत, नाक में तकलीफ, आँखों में जलन और गले की समस्या

पहली दिल्ली और NCR के किसान जलाते थे पराली

एक टन पराली मिट्टी में मिलाने से प्राप्त होने वाले पोषक तत्व

नाइट्रोजन: 20 से 30 किलोग्राम, पोटाश: 60 से 100 किलोग्राम, सल्फर: पांच से सात किलोग्राम,    ऑर्गेनिक कार्बन: 600 किलोग्राम

इन कृषि यंत्रों से कर सकते हैं पराली का प्रबंधन

स्ट्रा बेलर, हैप्पी सीडर, जीरो टिलसीड-कम-फर्टिलाइजर ड्रिल, रीपर कम बाइंडर, स्ट्रा रीपर, रोटरी मल्चर

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