स्वतंत्र भारत की 75वीं वर्ष गांठ आत्मसंयम से पनपेगी स्वतंत्रता

बलराम कुमार मणि त्रिपाठी

एक बार मेरे वृद्ध पिता से किसी ने पूछा- आप स्वस्थ हैं? वे बोले हां स्वस्थ हूं। आत्मा सदा स्वस्थ है। आत्मसंयम से ही हम सदा स्वस्थ रहेंगे। मेरा जन्म आजादी मिलने के तत्काल बाद का है। इसलिए उस समय का माहौल बहुत कुछ देखा सुना है। मेरे बाबा आजादी के आंदोलन मे भाग लिए थे‌। पिताजी की पैदाईश 1921की थी। उनसे जो मालूम हुआ और जो देखा उसे भुला पाना संभव नहीं। महात्मा गांधी सुबह‌‌-शाम प्रार्थना करते थे। जिसमे सर्वधर्म प्रार्थना होती.. राम धुन होता.. ईसावास्य उपनिषद के बीस श्लोक होते और सभी के कल्याण की कामना होती। वे नित्य गीता पढ़ते,जिस श्लोक का अर्थ ठीक से समझ मे नहीं आता था,संत विनोबा भावे से समझते। गीता सभी नेताओं की पठनीय पुस्तक थी। वे स्वतंत्रता संग्राम को शांतिपूर्ण,पूर्ण अहिंसक और सत्य पर आधारित बनाने के पक्षधर थे। नित्य प्रार्थना मे निम्न लिखित श्लोक पढ़ा जाता-

अहिंसा सत्य अस्तेय ब्रह्मचर्य असंग्रह।

शरीर‌श्रम अस्वाद सर्वत्र भयवर्जनम्।।

सर्वधर्म समानत्वं स्वदेशी स्पर्श भावना।

विनम्र व्रत निष्ठा से ये एकादश सेव्य हैं।।

इसका अनुपालन सच्ची निष्ठा से कराने की प्रेरणा देते स्वयं भी पालन करते थे।।

सत्य बोलना,धर्म का आचरण करना,सबसे प्रेम करना छुआछूत का भेदभाव न करना, जो कुछ मिले शाकाहारी व स्वास्थ्य वर्द्धक भोजन करना,स्वाद पर ध्यान न देना,नित्य कुछ न कुछ शारीरिक श्रम करना,इन नियमो का यथा संभव पालन होता था। उस समय मेहतरानी शौचालय से शौच कनस्टर मे भर कर दूर गड्ढे में छोड़ने जाती थी,फ्लश नहीं‌ था। अथवा लोग खेतों मे जाते थे।  गांधी जी ने स्वयं शौचालय साफ करना शुरु किया। अथवा खेतों मे जाने की नौबत आती तो खुरपी लेकर जाते,पहले‌ गड्ढा खोदते फिर शौच के बाद उसे मिट्टी से ढक देते। विदेशी वस्त्र जलाने के बाद नित्य चरखा चला कर प्रत्येक गांधी वादी ,वस्त्र स्वावलंबन पहले ही अपना चुके थे। यह कार्य गांव गांव होने‌ लगा था। आजादी के बाद भी हम लोगों के परिवार के सभी सदस्य एक घंटा नित्य चरखा चलाते थे। मेरे घर पर हर सदस्य के लिए अलग अलग चरखा था। सुदर्शन चक्र ,किसान चक्र और अंबर चरखा भी था।

गांधी जी गांव गांव कुटीर उद्योग लगा कर स्व उत्पादन के पक्ष मे थे। ताकि हर हाथ को काम मिले और लोग अपने और अपने परिवार केलिए आवश्यक कमाई स्वत: कर सकें। स्वावलंबी बन सकें। आजादी के बाद पं नेहरू ने पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से बड़े उद्योगों का जाल बिछा दिया‌। अपने  देश मे उच्चशिक्षा की व्यवस्था करा दी। सरकारी स्कूल खुलवा दिये। जगह जगह सरकारी अस्पताल खुले। जहां मुफ्त इलाज होने लगे। सड़कें बनीं, आवागमन के साधन उपलब्ध कराये। भले भारत की आबादी ३२-३३करोड़ थी। लेकिन भगवान भरोसे सब काम थे.. सरकार बदली …अपनी सरकार बनी तो नहरें खुदी,डैम बने तो खेती मे सुधार हुआ। अन्यथा कभी बाढ़ तो कभी सूखा का सामना करने से किसान कम उपज करा पाते थे। संक्रामक रोगो के आक्रमण  मे पूरा पूरा गांव साफ होजाता। तब दवाये इतनी उपलब्ध नहीं थी।

जमींदारो कै पास अधिक खेत थी। पर गरीब किसानो को परेशानी होती। उपज कम होती ,जिसमे कम खेती वाले किसानों की फांकाकसी की भी नौबत आजाती। कटहल के सीजन मे एक समर कटहल खाकर बिता देते। मटर के सीजन मे  भूजा और मटर खाकर पखवारा बिताना पड़ता था। गंजी की फसल होती तो एक वक्त गंजी से कट जाता। पं नेहरु विश्व शक्तियों को पंचशील के सिद़्धांत से जोड़ने के पक्ष मे थे। जीन रुस अमेरिका सबको एक जुट करने में लगे थे। राष्ट्रसंघ के बांदुंग सम्मेलन मे शांति के प्रस्ताव पारित कराया। चीन ने इसके विरुद्ध जकर भारत से युद्ध ठान ली।जिसने प़ नेहरु को आहत किया। हमने भारत चीन की लडाई(1962) का दौर देखा है। सन 1965 मे नेहरु जी के निधन के बाद लालबहादुर शास्त्री  प्रधानमंत्री बने।   उस समय अमेरिका से पीएल 480 गेहूं मंगाना पड़ा था,जो राशन की दुकानों पर मिलता था। तब शास्त्री जी ने ‘जय जवान जय किसान’:का नारा दिया। रेलवे के किनारे की जमीनें और स्कूलों के खेल के मैदान में भी जोत कर गेहूं उगाया गया।

कुछ भी हो देश के हर बाल वृद्ध जवान नर नारी मे देशप्रेम का जज्बा था। नेता पक्ष और विपक्ष के नेताओ का आदर करते थे,वाणी मे संयम था। विपक्ष मे भी जो सुयोग्य था उसे किसी न किसी तरह लोक सभा न सही राज्य सभा मे लाया जाता। विधान सभा और विधान परिषद लोकतंत्र के मंदिर थे‌। आज का परिदृश्य नहीं था और न इस तरह की निम्नस्तर की टिप्पणियां होती थीं। अंत मे भगवान शिव का स्मरण करते भारत के उत्कर्ष की काम़ा करता हूं। मां अन्नपूर्णा सदा यहां के लोगो का भंडार भरे। जय हिंद!

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