योगीजी की साफगोयी के बाद मुबाहिसा की गुंजाइश है नहीं!

के. विक्रम राव 

योगी आदित्यनाथ जी ने मुल्लाओं से अनुरोध किया है कि ऐतिहासिक गलती को सुधारें। बात एक सप्ताह पुरानी हो गई है (31 जुलाई 2023)। मगर लगता है कि वे लोग अभी अपनी जिद और जज्बे से उबर नहीं पाए हैं। हठ पर अड़े हैं। ढाई सदी पूर्व एक स्कॉटिश कवि सर विलियम ड्रमंड ने लिखा था : “जो तर्क को नहीं स्वीकारता, वह दुराग्रही है। जो तर्क कर नहीं सकता, वह मूर्ख है। जो तर्क करने का साहस नहीं रखता, वह गुलाम है।” अर्थात इन मुल्लों को अभी अहसास नहीं हो पा रहा है कि भारत में अब न मुगल हैं, न ब्रिटिश रहे और न नेहरू का राज ही बचा है जो उनकी खुशामद किया करते थे। उल्लाप करते थे। अकीदतमंदों की भांति अब आस्थावानों के साथ भी बराबर का इंसाफ किया जाएगा। बिना लाग लपेट के। इसीलिए मुख्यमंत्री की अपील बड़ी गौरतलब है, वक्त की पुकार भी।

योगीजी की टिप्पणी के ठीक बाद बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद नहीं, बल्कि भगवान शिव का मंदिर है। बाबा बागेश्वर ने उक्त बात मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में कही है। वहां बाबा का दरबार लगा है। धीरेंद्र शास्त्री ने कहा कि हमें जातिवाद को हटाकर सभी को एक करना है। भारत में रहने वाले सभी लोग सनातनी हैं। इस्लामी तंजीमों और दानीश्वरों को इस काषायधारी सन्यासी के परामर्श पर तवज्जो (ध्यान) देना चाहिए। फिर उनकी बातों पर तवक्को (भरोसा) रखें। तवक्कुल (अल्लाह की मर्जी) पर यकीन रखें। यूं भी भारत का पुरातत्व सर्वेक्षण निदेशालय तो साबित कर ही देगा कि ज्ञानवापी इल्म का पुराना कुआं हैं, जहां डमरू, त्रिशूल, कई श्लोक पाए गए हैं। याद कीजिये अयोध्या में वाराह की मूर्ति की। कहीं मस्जिद तले सुअर की प्रतिमा होती है ? वह केवल बुतखाने में होती है। मस्जिद में ? तोबा, तोबा ! और वह भी निषिद्ध, वर्जित चौपाये वाली!

योगी आदित्यनाथजी के तर्कों और सबूतों पर गौर करना चाहिए। मुख्यमंत्री ने कहा था : “कोर्ट ने कमिश्नर की खोजी रपट में पाया कि ज्ञानवापी के अंदर भौतिक और अन्य पुरातत्विक साक्ष्य हैं इनको नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। ज्ञानवापी के भीतर हाथी के सूंड़, त्रिशूल, पान, घंटियां दिखीं। मुख्य गुंबद के नीचे दक्षिणी खंभे पर स्वस्तिक का चिन्ह मिला। ज्ञानवापी के प्रथम गेट के पास तीन डमरु के चिन्ह मिले। तहखाने में मलबा पड़ा था, वहां पड़े पत्थरों पर मंदिर जैसी कलाकृतियां थीं।

अब मुसलमानों का यह दावा है कि वह त्रिशूल नहीं है, अरबी लिपि में “अल्लाह” लिखा है। ऐसा भद्दा मजाक किसी को भी नहीं करना चाहिए। साधारण व्यक्ति भी इन आकृतियों को देखकर स्पष्ट कह सकता है कि दोनों में बड़ा फर्क है। लेशमात्र सादृश्य भी नहीं नजर आता। फिर क्यों ऐसा झूठ ? कौन किसे बेवकूफ बना रहे हैं ? आखिर क्यों? इसलिए योगी आदित्यनाथजी की अपील ध्यान देने के योग्य है। मुख्यमंत्रीजी ने एक टीवी इंटरव्यू में मुस्लिम समाज से कहा : “ज्ञानवापी के प्राचीन प्रमाणों को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। ये ऐतिहासिक सबूत हैं। वहां की दीवारें हकीकत बयां कर रही हैं। आज हमें विकास के बारे में बात करनी चाहिए। पाकिस्तान की दुर्दशा हम सब देख सकते हैं, जो दूसरों का बुरा चाहेंगे, वे स्वयं कष्ट सहेंगे। आज पाकिस्तान में जो कुछ भी हो रहा है, वह उनके किए का ही नतीजा है। आज पाकिस्तान भुखमरी से परेशान है और अपनी करतूतों से जूझ रहा है, इसीलिए हमें अपनी पिछली गलतियां नहीं दोहरानी चाहिए।

योगी आदित्यनाथजी बतला चुके हैं कि ज्ञानवापी का मतलब “इल्म के कुएं से है।” अर्थात सिद्ध शैव आस्थालय। तर्क ही इस कुएं में प्रवेश की सीढ़ी है, इस ज्ञान की तह तक पहुंचने हेतु। अब मुसलमान यदि कुतर्क का आसरा लें जो कैसे वाजिब होगा? हिंदूजन ज्ञानवापी का गंगा के पानी से जलाभिषेक करेंगे। सनातन पद्धति यही है। भगवान विश्वेश्वर की आराधना होगी। विश्व वैदिक सनातन संघ ने योगी आदित्यनाथ द्वारा ज्ञानवापी पर की गई टिप्पणी का भरपूर स्वागत किया है। पर इतना जरूर कहा कि मुसलमानों से अपील मुख्यमंत्री को पहले ही करनी चाहिए थी। देर से सही, दुरुस्त ही है। किन्तु अब सबकुछ मस्जिदवालों की समझ पर निर्भर है : भविष्य का दारोमदार।

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