बहुत जिया औरों के खातिर,
बहुत पिया है जहर अनादर,
बहुत सहे हैं कांटे हमने,
बहुत सहा है कटु संभाषण।
अंतिम पल है जीवन का ये,
अब तो नारायण जपने दो.. मुझको अपने मे रहने दो।
बचपन गया जवानी आई,
घर मे आई एक लुगाई,
बच्चे हुए बाप बूढे थे,
माता जी ने दया दिखाई।
मेरे दुख सुख मे दोनो थे… साथ नहीं दे पाया भाई।
बच्चे बड़े हुए घर छूटा।
पत्नी छूटी हिम्मत छूटा।
गई जवानी गई नौकरी।
गीता रामायण भी छूटा।
सांस नही है साथ दे रहा .. तुम कहते हो इतना बाकी?
अब न बनाउंगा दो महले,
नही सफाई़ कर पाउंगा।
नही़ रहूंगा घर के भीतर,
अब कही़ ना टिक पाउंगा।
मुझको तीरथ मे बैठा दो… राम नाम तो जप लूं भाई।।
अब न खेत खलिहान संभालूं।
पोता पोती झेल न पाऊं।
नहीं खेला पाने का दम है।
इन्हें गोद भी उठा न पाऊं।।
कितना झेलूं सबका बोझा… दान धर्म कुछ कर पाने दो।
छोड़ दिया जो मन मे जकडा।
नही किसी ने मुझको पकड़ा।
अपने से दुनिया जकड़े था।
मैने उसको कबका छोड़ा।
अब न किसी से मतलब मेरा… मुझको अपने मे जीने दो।
मत मांगो मुझसे आशीषें।
नहीं पुण्य कुछ बचा हुआ है।
पाप ले गए मेरे द्वेषी..
कालापन भी बचा नही़ है।
जो कुछ है तेरा है लेलो… अब अमृत घट पीता हू़ मैं।