सपा प्रमुख को पहले अपनी कमजोर कड़ियों को दुरुस्त करना होगा,

डॉ. ओपी मिश्र


आने वाले लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर तथा अधिक से अधिक सीटें जीतने के लक्ष्य को लेकर सपा प्रमुख अखिलेश यादव आजकल भाजपाई किले की कमजोर कड़ियों की तलाश में जुटे हैं। इसमें उन्हें कितनी सफलता मिल रही है या मिलेगी यह तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन सामने वाले से मुकाबला करने के लिए केवल उसकी कमजोर कड़ियों को तलाशने मात्र से सफलता मिलने वाली नहीं। सामने वाले को चित करने के लिए अपने आप को शक्तिशाली बनाना सबसे अधिक आवश्यक है। यानी अपनी कमजोर कड़ियों को दुरस्त करना सबसे ज्यादा आवश्यक है। लेकिन सपा प्रमुख अखिलेश यादव को शायद अपनी कमजोर कड़ियां दिखाई ही नहीं देती है।

सपा प्रमुख को भाजपा के मजबूत किले को ध्वस्त करने के लिए अपने ‘वाररूम’ को शक्तिशाली बनाना होगा। वाररूम में ऐसे लोगों को बैठाना होगा जिनके अंदर सहनशीलता हो, सद्भाव हो, सम्मान का भाव हो तथा लोगों को समझने और परखने की समझ हो। लेकिन सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने ऐसे -ऐसों को बिठा रखे हैं जो स्वयं को ही सर्वगुण संपन्न अर्धष्ठाता समझते हैं। वाररूम के कथित प्रभारी 4:00 बजे के बाद ही कार्यालय आते हैं और पार्टी कार्यकर्ताओं, मीडिया के लोगों तथा जन सामान्य से इस तरह बात करते हैं जैसे भी सपा प्रमुख के ओएसडी नहीं नहीं बल्कि जिलाधिकारी हो। इस बात में कोई दो राय नहीं कि अब लोग भाजपा का विकल्प तलाशने लगे हैं।

लेकिन जब वे सपा के शासनकाल की दादागिरी और गुंडागर्दी की तुलना वर्तमान सरकार की कार्यप्रणाली से करते हैं तो भाजपा का पलड़ा भारी होने लगता है। और मतदाता न चाहते हुए भी कमल के पक्ष में वोट दे देता है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने जिन गंगा राम को अपना निजी सचिव बना रखा है, वे तो अपने को बिजी दिखाने लगते हैं जैसे पीएमओ के मुख्य अधिकारी वही हो। अपनी फरियाद लेकर गया पार्टी कार्यकर्ता मन मसोसकर गंगाराम के कमरे मे 10 मिनट तक खड़े रहने के बाद गाली देता हुआ बाहर निकलता है । क्या इन्हीं लोगों के बल पर सपा प्रमुख भाजपा का मुकाबला करेंगे। क्या ही अच्छा होता कि सपा प्रमुख कारपोरेट ऑफिस की तरह कुछ ऐसे लोगों को प्रमुख स्थानों पर बैठाते जिन्हें गुस्सा न आता हो , मृदुभाषी हो तथा किसी की पीड़ा को गंभीरता से सुनने की ताकत हो। लेकिन चूंकी उन्हें ही बात बात में गुस्सा आ जाता है । मीडिया पर गुस्सा आ जाता है, सवाल पूछने पर गुस्सा आ जाता है।

ऐसे में सपा का क्या हस्र होगा कहा नहीं जा सकता? ऐसे में सपा प्रमुख अखिलेश यादव की तुलना उनके पिता स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव से करने का मन होता है। जब देश में मायावती की सरकार थी और समाजवादी पार्टी के तमाम कार्यकर्ता प्रदर्शन के दौरान हुए लाठीचार्ज में घायल हो गए थे। मैं अपने एक मित्र के साथ 5 विक्रमादित्य मार्ग (नेताजी की कोठी) आया तथा लान में बैठे नेता जी को बताया कि बाहर तमाम चोटिल कार्यकर्ता बैठे हैं। नेता जी ने एक सेकेंड की भी देर नही की और चप्पल पहने बिना ही गेट के बाहर आ गए । कार्यकर्ताओं का हाल-चाल लिया, उनके घर वापसी, उनकी आर्थिक मदद तथा उनके इलाज की तत्काल व्यवस्था करने का आदेश जगजीवन प्रसाद को दिया। यह था उनका व्यक्तित्व और कृतित्व जिसने नेताजी के नाम की सार्थकता को सिद्ध किया।

अब आते हैं वर्तमान संदर्भ में, पिछले सप्ताह मैं पार्टी ऑफिस से निकल कर अपनी गाड़ी की तरफ जा रहा था तो 2 लोग को ऑफिस के बाहर बनी बेंच पर बैठे देखा। जिज्ञासावश या पत्रकारिता दिमाग के चलते पूछ बैठा कहां से आए हैं? कैसे आए हैं ? वे बोले दद्दा से मिलने औरैया से आए थे लेकिन एक सप्ताह हो रहा है अब तक मिल नहीं पाया। जबकि नेताजी के जमाने में ना केवल उसी दिन मिलता था बल्कि वापसी का खर्चा और खाने की व्यवस्था भी हो जाती थी । मैंने कहा अब समय बदल गया है, वे बोले वही तो देख रहा हूं। साथ ही यह भी कहा कि इस तरह दिलों पर राज नहीं किया जा सकता। पार्टी ऑफिस में अक्सर एक विधान परिषद सदस्य भी मौजूद रहते हैं लेकिन उनका मिजाज तो आज तक लोग समझ ही नहीं पाए ।

ऐसा कार्यकर्ताओ और पार्टी पदाधिकारियों का कहना है। मैनपुरी के किसी गांव से आए सुंदर लाल शाम्य तथा अवनीश यादव ने बताया कि चौधरी साहब से कुछ भी पूछो कोई जवाब नहीं देते हैं। कुछ लोगों का कहना था कि चाटुकारो की फौज समाजवादी पार्टी को समाप्त करके ही मानेगी। आजमगढ़ से आए एक साप्ताहिक अखबार के पत्रकार का कहना था कि आशीष यादव ‘सोनू’ ऐसा बिहेव करते हैं जैसे हम उनके नौकर हो। जबकि हमको एक लेख लिखने के लिए कुछ पुराने मैटर की आवश्यकता थी। लेकिन सोनू बाबू सूचना निदेशक की तरह हमारा ही इंटरव्यू लेने लगे। ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या अपनी कमजोर कड़ियों को शक्तिशाली बनाएं आप सामने वाले से मुकाबला कर सकते हैं? शायद नहीं।

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