जैसे मोदी अपनी डिग्री छुपाते हैं, संघ गांधी जी की हत्या में अपनी भूमिका छुपाता है,
लखनऊ। संविधान की जगह अगर मनुस्मृति लागू करनी है तो समानता और बंधुत्व पर आधारित इस्लाम और मुगल शासन के इतिहास को पाठ्यक्रम से हटाना संघ के लिए बहुत ज़रूरी है। ताकि दलितों और पिछड़ों के जहन में ऐसे किसी अतीत का उदाहरण ही न रह जाए जहाँ उन्हें मानव होने का सम्मान मिला हो। जिस तरह मोदी अपनी डिग्री छुपाते फिरते हैं वैसे ही संघ ने गांधी की हत्या में अपनी भूमिका को छुपाने के लिए पाठ्यक्रम से इस तथ्य को हटवाया है कि गांधी की हत्या के बाद उस पर प्रतिबंध लगा था। ये बातें अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहीं।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि संघ मुगलों से इसलिए चिढ़ता है कि मुगलों के दौर में ही मदरसे जैसे सर्व शिक्षा के केंद्र स्थापित हुए थे जहाँ दलितों को भी पढ़ने का अधिकार मिला जिनके लिए उससे पहले शिक्षा वर्जित थी। मुगलकाल में पढ़ने का अधिकार पाए दलितों की तीसरी-चौथी पीढी से ही ज्योतिबा फुले और अम्बेडकर जैसे दलित चिंतक पैदा हुए। इनमें से फुले ने मनुवाद के खिलाफ़ गुलामगिरी जैसी किताब लिखी और अम्बेडकर जी ने मनुस्मृति का दहन किया।
उन्होंने कहा कि मुगलों का इतिहास छात्रों को समावेशी बनाता है क्योंकि उन्हें यह पता चलता है कि अकबर के 9 रत्नों में कई हिंदू विद्वान भी थे या औरंगजेब के शासन में 30 प्रतिशत अहम ओहदों पर हिंदू राजा थे। उन्हें 1604-05 में अकबर के शासन के 50 साल पूरे होने पर राम और सीता की तस्वीर वाले सिक्के की फोटो भी दिखती थी जिसपर राम राज लिखा हुआ था। उन्हें यह भी जानकारी मिलती थी कि मुगलों के शासनकाल में दुनिया के कुल जीडीपी का 25 प्रतिशत भारत का होता था।
ये सब पढ़ कर छात्रों के मन में RSS के कथित राम राज्य के दावों पर सवाल उठते हैं। इसीलिए मुगलों का इतिहास पाठ्यक्रम से हटाया गया है। यह योगी सरकार के डर को दिखाता है। इसलिए यह मुगलों के इतिहास पर हमला नहीं है बल्कि भारत के समृद्ध ज्ञान परंपरा पर हमला है। उन्होंने कहा कि कम पढ़े लिखे और फ़र्ज़ी डिग्री वाले शासक पढ़े-लिखे लोगों को दुश्मन मानते हैं। मोदी और योगी को लगता है कि इतिहास की सही जानकारी वाले छात्र कांग्रेसी हो जाएंगे इसलिए गलत इतिहास पढ़ाने की साज़िश रची जा रही है।