ए अहमद सौदागर
लखनऊ। जरायम की दुनिया में कदम रखने वाले बख्शी भंडारी, श्रीप्रकाश शुक्ला, मुन्ना बजरंगी, मुख्तार अंसारी, रमेश कालिया या फिर भरी अदालत में हुई जीवा की हत्या। यह तो महज बानगी भर नाम हैं और भी यूपी में कुछ ऐसे नाम अपराध की दुनिया में शामिल हैं जिसके नाम ज़ुबान पर आते ही आज भी लोग सिहर उठते हैं।
- पुरानी फाइलों पर एक नजर
- मुख्तार ने सौंपा काम और बन गया था मुन्ना से बजरंगी
वाक्या कुछ दशक पहले की शुरुआत का है। बागपत जेल में मारे गए मुन्ना बजरंगी कभी बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी का करीबी माना जाता था। बताया जा रहा है कि बाहुबली मुख्तार अंसारी की सह पर मुन्ना बजरंगी ने करीब दो दशकों में अपराध की दुनिया में अपनी अलग बादशाहत कायम कर ली थी। मुन्ना भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के मामले में सलाखों के पीछे बंद था। इसी बीच बागपत जेल के भीतर नौ जुलाई 2018 को फि़ल्मी अंदाज में बदमाशों ने मुन्ना बजरंगी के सीने में गोलियों की बौछार कर मौत की नींद सुला दिया।
चाक-चौबंद व्यवस्था कहे जाने वाली बागपत जेल में मर्डर की खबर मिलते ही पूरे पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया और आनन-फानन में आलाधिकारी मौके पर पहुंचे, लेकर इससे पहले जेल की दीवारें खून से लाल हो चुकी थी। कई दशक पहले से बांदा जेल में बंद माफिया मुख्तार अंसारी की हुई मौत के बाद उसकी जीवनी प्रकाश में आई कि वह किसी आम घराने से ताल्लुक नहीं बल्कि उस परिवार से था जिसके नाना स्वतंत्रता सेनानी थे।
मुख्तार और मुन्ना की कहानी पर भी एक नजर
पढ़ाई में नहीं लगा मन ये बातें उस खूंखार की है जो जनपद जौनपुर के पूरेदयाल गांव निवासी मुन्ना बजरंगी का असली नाम प्रेम प्रकाश सिंह था। बताते चलें कि 1997 में जन्मे प्रेम प्रकाश को पिता पारसनाथ सिंह पढ़ा-लिखा कर बड़ा आदमी बनाना चाहते थे, लेकिन मुन्ना का मन पढ़ाई में कभी नहीं लगा। पांचवीं कक्षा के बाद मुन्ना ने पढ़ाई छोड़ दी थी। बताया जा रहा है कि शुरुआत से ही जिद्दी और अड़ियल मुन्ना को कई ऐसे शौक लग गए जो उसे अपराध की दुनिया की ओर लेते चले गए और एक दिन बागपत जेल में जरायम की दुनिया में कदम रखने वाला मुन्ना बजरंगी बदमाशों का ही निशाना बन गया।
और एक नजर पहले गजराज फिर मुख्तार…
अपराध की दुनिया में अपनी पहचान बनाने के लिए मुन्ना बजरंगी ने सबसे पहले जौनपुर के स्थानीय माफिया गजराज सिंह का हाथ थामा। बताया जा रहा है कि वर्ष 1984 में गजराज के इशारे पर मुन्ना ने एक व्यापारी को मौत के घाट उतारा। 80 के दशक में जौनपुर के भाजपा नेता रामचंद्र सिंह की हत्या कर पूर्वांचल में सनसनी फैला दी। बताया जा रहा है कि इसके बाद 90 के दशक में मुन्ना बजरंगी ने मुख्तार अंसारी का दामन थामा और उस गैंग में शामिल हो गया।
भाजपा नेता कृष्णानंद राय की हत्या
मुख्तार अंसारी का गैंग संचालित तो जनपद मऊ से हो रहा था, लेकिन उसकी धमक और असर पूरे पूर्वांचल के अलावा यूपी के कई जिलों में था। मुख्तार के इशारे पर मुन्ना सरकारी ठेकों का काम देखना शुरू कर दिया। उस की बात पर गौर करें तो पूर्वांचल में सरकारी ठेकों और वसूली पर मुख्तार का कब्जा था। यह वही दौर था जब भाजपा विधायक कृष्णानंद राय तेजी से उभर रहे थे और देखते ही देखते कृष्णानंद राय पूर्वांचल में मुख्तार के लिए चुनौती बनने लगे। कृष्णानंद राय के ऊपर पूर्वांचल के माफिया ब्रजेश सिंह का हाथ था। बताया जा रहा है कि उसी के संरक्षण में कृष्णानंद राय का सरकारी ठेकों में हस्तक्षेप शुरू हो गया। कृष्णानंद राय का बढ़ता प्रभाव मुख्तार को रास नहीं आ रहा था। मुख्तार ने कृष्णानंद राय को खत्म करने की जिम्मेदारी मुन्ना बजरंगी को सौंप दी।
बताया जा रहा है कि फरमान मिलने के बाद मुन्ना बजरंगी ने लखनऊ की अदालत में मारे गए संजीव जीवा व अन्य साथियों के साथ 29 नवंबर 2005 को गाजीपुर के भंवर कौल थाना क्षेत्र के गंधौर में भाजपा विधायक कृष्णानंद राय को दिनदहाड़े मौत की नींद सुला दिया। बताया जा रहा है कि मुन्ना ने साथियों के साथ विधायक कृष्णानंद राय की दो गाड़ियों पर छह एके- 47 राइफलों से चार सौ से अधिक गोलियां चलाई। इस हत्याकांड में कृष्णानंद राय के साथ मुहम्मदाबाद के पूर्व ब्लाक प्रमुख श्यामा शंकर राय, भांवर कोल के मंडल अध्यक्ष रमेश राय, अखिलेश राय, शेषनाथ पटेल, मुन्ना यादव और गनर निर्भय नारायण उपाध्याय की जानें गईं थीं।
मुख्तार के दुश्मन नंबर-1 और माफिया डॉन बृजेश सिंह के जिगरी दोस्त त्रिभुवन की अपराध कुंडली
गाजीपुर जिले के सैदपुर मुड़ियार निवासी माफिया डॉन त्रिभुवन सिंह है. वही त्रिभुवन सिंह, जिन्होंने किसी जमाने में पिता और पुलिस में हवलदार रहे भाई के कत्ल का हिसाब बराबर करने के लिए, मुख्तार अंसारी कंपनी के गुंडों के ऊपर ही गोलियां झोंक दी थीं। वो भी पुलिस की खाकी वर्दी पहनकर. कहते तो यह भी हैं कि त्रिभुवन सिंह और बृजेश सिंह ने जहां अपनों की हत्याओं का बदला लेने के लिए जरायम की जिंदगी के जंजालों में उलझना कुबूल किया। वहीं मुख्तार अंसारी ने जरायम की दुनिया में कूदकर, गैरों की गाढ़ी कमाई लूट-खसोट, कत्ल-ए-आम से हथियाकर, खुद को धन्ना सेठ बना डालने के लिए पांव रखा था।
अपराध की दुनिया में त्रिभुवन सिंह भी कूदे और मुख्तार अंसारी भी. मगर, दोनों की नियत में खोट या कहिए फर्क साफ और एकदम अलग नजर आता था। एक अपनी इज्जत, खुद की और अपनों की जिंदगी महफूज रखने की जंग में, जरायम की दुनिया के झंझावतों में फंसता चला गया तो वहीं दूसरा यानी मुख्तार अंसारी लूट-खसोट, धोखाधड़ी से अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए।