बच्चों को बनना पड़ेगा वृद्ध माता-पिता का अभिभावक

नया लुक डेस्क


मैं अपने सात भाई-बहनों में पांचवे नम्बर पर हूं, मां का निधन जब मैं छोटा था तभी हो गया था, पिता सरकारी अधिकारी थे इसलिए पत्रकारिता में मेरी कम आय से शायद खुश भी नहीं रहे हो। उन्हें विदेश जाना और बड़े अधिकारी होना ही रास आता था। बाद में मेरी बड़ी बेटी की बीमारी के चलते मुझे पत्रकारिता छोड़ व्यापार में आना पड़ा। शायद वो इससे खुश थे, यह अलग बात थी कि मैं पत्रकारिता छोडक़र खुश हूं कि नहीं यह मैं आज तक खुद भी नहीं समझ सका। आज मैं इस विषय पर इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि मैं देख रहा हूं कि सोशल मीडिया पर लोग अच्छी-अच्छी बातें लिख देते हैं, उनमें से कई को तो मैं जानता हूं कि वह अपने माता-पिता का किस प्रकार ध्यान रखते हैं।

आइए, अब विषय पर लौटते हैं, आप अपने बच्चे की बातों का बुरा मानते हैं, नहीं न। यदि मैं पूछ लूं क्यों? तो आपका जवाब सीधा होगा….अरे वो मेरे बच्चे हैं। उनकी बात का क्या बुरा मानना। तब आप और आपकी पत्नी क्यों मां-बाप की बात का बुरा मान जाते हैं तो आप कहेंगे… अरे वो हमारी प्राइवेट बातों में टांग अड़ाते हैं। मैं फिर पूछ लूं क्या यह आपके बच्चे नहीं करते हैं तो आप जवाब देंगे …वो हमें बच्चा ही समझते हैं। मैं फिर पूछ लूं आप अपने बच्चे की प्राइवेट बातों में टांग नहीं अड़ाते हैं, आप का जवाब होगा, अरे हम उन्हें नहीं समझाएंगे तो कौन समझाएगा। अब अंतर यही पर समझ लें, आप भी अपने बच्चों के साथ वहीं कर रहे हैं, जो आप के मां-बाप आपके साथ कर रहे हैं। अंतर यह है कि मां-बाप की बातें आपको इसलिए बुरी लग रही है, क्योंकि आप उन्हें अभी भी अभिभावक मान रहे हैं और बच्चों की बात इसलिए बुरी नहीं लग रही है क्योंकि आप अपने को बच्चों का माता-पिता होने के साथ उनका अभिभावक भी मानते हैं। जब आप पूरे घर की देखभाल कर रहे हैं तो आप सबके अभिभावक हैं। वो चाहे आपके बच्चे हों या माता-पिता। जिस दिन आप अपने को अपने बूढ़े माता-पिता का अभिभावक मान लेंगे और उन्हें अपने छोटे बच्चों की तरह समझने लगेंगे आप की सारी तकलीफें दूर हो जाएंगी। मैं यह बात कहीं से सुनी सुनाई नहीं कह रहा हूं, मुझे जानने वाले समझ जाएंगे कि मैंने यह बात अपने जीवन से निकाल कर आपको बताई है।

कई बार देखने में आता है कि 75 वर्ष की आयु तक पहुंच चुके माता-पिता बहुत बोलना शुरू कर देते हैं। दरअसल वह ज्यादा इसलिए बोलते हैं क्योंकि वह आपका ध्यान अपनी ओर खींचना चाहते हैं। यह बिल्कुल वैसे ही है जैसे एक छोटा बच्चा या मानसिक रूप से कमजोर बच्चे कुछ ऊंट-पटाग हरकतें करके लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचते हैं। वो लोग जो 40 से 50 वर्ष की आयु में हैं, वो भी उम्र का एक बड़ा पड़ाव पार कर चुके होते हैं और माता-पिता की हर बात में सलाह देने की बात से उखडऩे लगते हैं, क्योंकि आप अपने से ज्यादा बड़ा सलाहकार किसी को नहीं समझते और बोलते रहने से आपकी भी सुनने की क्षमता कम होती जाती है। आप थके हुए होते हैं। आफिस की टेंशन या काम लिए लौट रहे होते हैं और उनके हालचाल लेने को भी आप चिड़चिडा करके कुछ गलत तरीके से ले लेते हैं।

कभी-कभी ऐसे लोग जिनके माता-पिता ने अभी अपनी जमीन जायदाद का बंटवारा नहीं किया है या उनके नाम नहीं किया है, ऐसे लोग दिखावे के लिए माता-पिता के सामने ऊंची आवाज में नहीं बोलते हैं, लेकिन दिल में जहर भरते ही जाते हैं। उन्हें यही समझना है कि यदि वह एक दो दिन भी बाहर चले जाते हैं। तो उन्हें घर की इतनी ज्यादा याद क्यों आती है? उन्हें घर की याद इसलिए आती है क्योंकि वह अपनी बातो को अपने बच्चों खासतौर पर पत्नी से नहीं कर पाते। कभी-कभी आप अपने दफ्तर की बहुत सारी ऐसी बातें पत्नी को बताते हैं, जिनके बारे में वह नहीं जानती है कि आज दफ्तर में आपके बॉस ने क्या कहा, लेकिन आप बताते रहते हैं कि आपके साथ दफ्तर में आज क्या कुछ गलत हुआ है। (जैसा आप समझते है) वह आप इसलिए बताते हैं, जिससे पत्नी आपकी ‘हां’ में ‘हां’ मिला दे और आप अपने को संतुष्ट कर पाए कि आप सही थे और आफिस में आपका विरोधी गलत। यह सब होने के बाद ही आपको सुकून मिलता है। अब इसी बात को अपने माता-पिता की तरफ लाकर देखिए वो दिन भर घर पर रहते हैं। बच्चों और आपकी पत्नी से तो थोड़ा-थोड़ा करके दिन भर में बात कर ही लेते हैं।

नीतीश की पुलिस सुपर फ्लॉप योगी की पुलिस सुपर कॉप

जब बेटा लौटता है तो वह भी कुछ कहना समझना चाहते हैं। वह बताना चाहते हैं कि उन्होंने कैसे आज अमुक व्यक्ति को अच्छी सलाह दी या उनका कौन पुराना परिचित आज उन्हें सुबह टहलते या बाजार में मिल गया और उसकी लडक़ी की शादी कब हो रही है, वो दहेज में कार दे रहा है। आप सोचने लगते है कि पापा मुझे यह सब क्यों बता रहे हैं। आप झुझलाकर कुछ उल्टा-सीधा बोल देते हैं और बाद में पत्नी पर भी गुस्सा निकाल बैठते हैं। लेकिन आप यह नहीं सोचते कि पत्नी भी तो आपके दफ्तर की बातों पर वैसे ही प्रतिक्रिया दे सकती है।  जैसी आप अपने माता-पिता की बात पर दे रहे थे। आपको भी अपनी पत्नी से कला सीख लेनी चाहिए यदि माता-पिता की बात पर बिना कोई अक्ल लगाए रिलेक्स भाव से आप उनकी बातों पर कोई जानकारी वाला प्रश्न पूछ लेंगे तो वह खुश हो जाएंगे। वैसे ही जैसे आप जब अपनी पत्नी को ऑफिस का किस्सा बता रहे होते हैं तो वह कोई प्रश्न कर देती है…तो अग्रवाल साहब ने क्या कहां। आप उसके प्रश्न पूछने पर कितना आनंद से भर जाते है कि वो आपकी बात को सुन रही है। आप सुबह उठकर थोड़ी देर अखबार पढ़ते हुए माता-पिता के कमरे में जाकर उनकी कुछ बात सुन लेंगे तो आपका कुछ नहीं बिगड़ेगा, लेकिन आपके माता-पिता सुबह की इस दवा से पूरे दिन खुश रहेंगे।

मैं लगभग 25 वर्षों से पत्रकारिता में हूं, जब मैं गाजियाबाद में एक बड़े अखबार में रिपोटिंग का इंचार्ज था तो मेरे पिता सुबह तडक़े ही अखबार पढ़ लिया करते थे। रात में देर से आने के कारण मैं देर से ही सोकर उठता था। इंचार्ज होने के कारण घर में कई अखबार आते ही थे, एक बार उन्होंने मुझे एक खबर के बारे में बताना शुरू किया मैं हां में हां मिलाता चला गया और वह बताते रहे। बात पूरी होने के बाद मेरी पत्नी ने पूछा यह तो आपकी ही लिखी खबर हैं तो मैं हंस दिया और बोला …उन्हें मेरी खबर अच्छी लगी और उन्होंने इतनी महत्वपूर्ण समझी कि यह जानते हुए कि मैं इसी अखबार को निकालता हूं, मुझे बताई मैं यह बताकर कि यह मैंने लिखी है मैं उनका और अपना रोमांच खत्म नहीं करना चाहता था। यहां पर मैने इस किस्से का जिक्र इसलिए किया क्योंकि मैं लोगों से आग्रह करना चाहता हूं कि आपके माता-पिता बड़ी-बड़ी खुशिया नहीं चाहते हैं वो छोटी-छोटी बातों से ही खुश हो जाते हैं।

मुझे बहुत ऐसे सारे लोग मिलते है जो कहते हैं कि हम अपने माता-पिता के अविभावक कैसे बने। माता-पिता खाने में बद-परहेजी करते हैं, कुछ भी खा लेते हैं। बात-बात पर कहने लगते है कि अब तुम हमें सिखाओगे। तुमको हमने ही पाला है। मेरा इस बारे में कहना है कि जब आपका संवाद अपने पैरेंट्स से अच्छा होगा और आप उनका हमेशा खयाल रखेगे ऐसा उन्हें विश्वास होगा तो वह आपकी प्यार भरी डांट को भी स्वीकार कर लेंगे। उदाहरण के लिए यदि आप उनसे कहेंगे कि आप का पेट फला चीज खाने से खराब हो जाता है तो आज से वो चीज घर में कोई नहीं खाएगा। वह अवश्य कहेंगे कि ठीक है मैं नही खाऊंगा घर में बनती रहे। आपको उनकी चिंता है तो डाक्टर को दिखाने ले जाते समय आप कागज पर डॉक्टर के नाम कुछ लिखकर ले जाएं कि पापा पकौडी खा लेते हैं और पेट खराब हो जाता है। डाक्टर बिना उन्हें बताए आपसे उनके सामने कह देगा कि इन्हें पकौड़ी मत खाने दीजिएगा। तब आपके पास डॉक्टर की सलाह नाम का एक हथियार हो जाएगा जिससे आप उनका खयाल अभिभावक बनकर कर सकेंगे। जैसे छोटे बच्चों को हम डॉक्टर के नाम से डराते हैं- ‘यदि तुम आइसक्रीम खाओगे तो डाक्टर अंकल तुम्हे सुई लगा देंगे।’ माता-पिता का अभिभावक बनने के लिए सबसे जरूरी चीज है संवाद। यही वो कड़ी है जिससे आप हमेशा अपने माता-पिता को अपने दिल के करीब रख सकते हैं। संवादहीनता ही सबसे बड़ी समस्या है। मैं देखता हूं कि आज कई परिवारों में बच्चे माता-पिता की थोड़ी सी चुभती बात को अपने दिल में लगाकर बैठ जाते है उनसे वैसा व्यवहार करते है जैसे वो कोई रिश्तेदार हो। ऐसे लोग अपने बच्चों के सामने ही उनके दादा-दादी के बारे में जो बातें करते है उससे वह अपने ही बच्चों को अनजाने में वो शिक्षा दे देते हैं, जिसका परिणाम उन्हें आगे भुगतना पड़ सकता है।

माफिया पर भारी बुल्डोजर बाबा

कई बार लोग मुझे बताते हैं कि वह तो अपने माता-पिता का खयाल करते हैं, लेकिन वह हमेशा उनके भाई या बहनों की तारीफ करते रहते हैं। तो मैं उन्हें समझाता हूं कि कई बार बूढ़े माता-पिता को कहीं न कहीं यह लगता है कि जब एक बच्चा इतना ख्याल रख रहा है तो दूसरे बच्चे हो सकता है इससे भी ज्यादा ख्याल रख सकते हों। दूर के ढोल सुहावने लगते हैं, यह कहावत इस बात पर बिल्कुल सटीक बैठती है। ऐसे में आप जब तक माता-पिता को असलियत से वाकिफ नहीं कराएंगे तब तक उनकी इस आदत में आप सुधार नहीं कर सकते। ऐसे में कभी उनसे यह बात मत कहें कि हम आप का ज्यादा ध्यान रखते हैं। कोशिश करें कि आप उन्हें प्रेरित करें कि कुछ दिन हवा-पानी बदलने के लिए बड़े या छोटे भाई के यहां भी हो आए वो आप को मिस करते होंगे। माता-पिता जो आपके अन्य भाइयों की ताऱीफ में कसीदे पढ़ रहे होंगे, तुरंत ही तैयार हो जाएंगे। यकीन मानिए भले ही आप के भाई उनका कितना भी ख्याल क्यों न रखे थोड़े दिनों में उन्हें आपके घर की याद सताने लगेगी और फिर आपकी यह शिकायत हमेशा के लिए दूर हो जाएगी। बहुत सारे लोगों को अपने बूढ़े माता-पिता से शिकायत रहती है कि वो हमेशा घर पर हर किसी को टोकते रहते हैं, इसका कारण साफ है उनके पास अपना टाइम पास करने के लिए कोई और तरीका नहीं है, आप को सिर्फ इतना करना है कि आप उन्हें किसी ऐसे कार्य में व्यस्त करें, जो उनकी पसंद का हो या उनको किसी संस्था या क्लब में संलग्न करें। आप की थोड़ी देर की मेहनत उनकी और आपकी सारी तकलीफ दूर कर देंगी।

मां के साथ सासु मां का भी रखें ख्याल

जब अपने को माता-पिता का अभिभावक समझें तो पत्नी के साथ के लिए, पत्नी के माता-पिता को भी इज्जत दें। यदि किसी मुकाम पर पत्नी के माता-पिता अकेले हों तो उन्हें घर लाकर अपने माता-पिता की तरह ही इज्जत दें। तभी आपकी पत्नी आपको अपने माता-पिता का अभिभावक बनने में सहायक होगी।

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