अपनी प्यारी मातृभाषा हिंदी के
आलिंगन से हम दूर चले आये हैं।
इसके मूल रूप से बहकते हुये,
अंग्रेज़ी के प्रभाव में भरमाये हैं ।
इतनी सुंदर देवनागरी लिपि को
छोड़, रोमन में लिखना सीख गये,
दूर निकल आये इतना कि सब,
मूल रूप में हिंदी लिखना भूल गये।
शिक्षा पद्धति मैकाले की थोपी गई,
गुरूकुल की शालायें भी बंद हुईं ।
ब्रिटिश प्रणाली छल बल से देकर,
सामाजिक महिमा मर्यादा ध्वस्त हुई।
आज ज़रूरी है मूल रूप फिर पाने का,
अपनी भाषा अपनी हिन्दी अपनाने का,
अगर अभी भी चूके, महत्व इसका हम,
भूले,मिट जाएगा प्रयत्न 70 सालों का।
हिंदी पर अंग्रेजी के प्रभाव से हिंदी के कई शब्द प्रचलन से हट गए हैं, यह दु:खद है,
इन शब्दों में है कोई अतिरेक नहीं,
भाषा भाव सभी अव्यक्त व्यक्त हैं,
सधे हुये है, शायद कोई मतभेद नहीं,
राजभाषा हिंदी किसी को त्यक्त नहीं।
करूँ प्रशंसा भी कैसे हिंदी अपनी माँ है,
माँ की ममता, असमंजस में होठ बंद हैं,
आदित्य देश व्यापी तो हो ही जाये हिंदी,
भारत का मान बढ़े, विश्वव्यापी हो हिंदी।